उदयपुर। सेक्टर 4 श्री संघ में विराजित श्रमण संघीय जैन दिवाकरिया महासाध्वी डॉ श्री संयमलताजी म. सा.,डॉ श्री अमितप्रज्ञाजी म. सा.,श्री कमलप्रज्ञाजी म. सा.,श्री सौरभप्रज्ञाजी म. सा. आदि ठाणा 4 के सानिध्य में धर्म सभा को संबोधित करते हुए साध्वी संयमलता ने कहा जीवन में जितना मोल पानी का है उतना ही मोल वाणी का है। व्यर्थ में पानी बहाना,अग्नि, वायु, वनस्पति का अनावश्यक दोहन करना पाप है।हमारे घरों में महिलाएं बाल्टी में कपड़े रखती है और नल चालू रखती है। हमारे स्नान ग्रह और शौचालय में अनावश्यक पानी बर्बाद किया जाता है। एक बूंद पानी में और संख्या जीव राशि होती है। पाप किसी का सगा नहीं होता और पुण्य किसी को दगा नहीं देता।
साध्वी ने आगे कहा- पानी और वाणी को सहेज कर रखिए। पानी और वाणी आदमी की प्रतिष्ठा है, प्राण है उसे व्यर्थ ना गवाएं। खारा पानी और खारी वाणी दोनों हानिकारक है। मीठे पानी की तरह वाणी भी मीठी रखें। सारे विवाद वाणी से पैदा होते हैं। वाणी से बड़ा कोई आभूषण नहीं। इसलिए पानी और वाणी दोनों का मितव्ययता से इस्तेमाल करो। पानी की एक-एक बूंद और वाणी का एक-एक शब्द अनमोल है।
साध्वी सौरभप्रज्ञा ने कहा – पांच इंद्रियों में जीभ का विशेष महत्व है। जीभ का प्रमुख कार्य है बोलना और स्वाद लेना। कई लोग स्वाद के वशीभूत होकर अनंत अनंत पाप बंद कर लेते हैं। इस जिव्हा के पीछे न जाने कितने निरपराध मूक पशुओं की रोज हत्या की जा रही है। दूसरों को दुख देने वाला भला सुख को कैसे प्राप्त कर सकता है। अनेक अनेक दुख एवं बीमारी का मूल जीभ की लोलुपता ही है। अतः सुख के इच्छुक, खाने में विवेक व संयम रखकर राग द्वेष उत्पन्न करने वाले रसों के स्वाद से बचें। महिला शिविर का आयोजन हुआ।