उदयपुर। समता मूर्ति साध्वी जयप्रभा की सुशिष्या साध्वी डा. संयमज्योति ने चांडाल चौकडी पर प्रवचन देते हुए कहा कि सबसे भयंकर और खतरनाक मोहनीय कर्म है। मोहनीय कर्म की संतान राग-देष है और राग-द्वेष की संतान क्रोध, मान माया और लोभ है। राग की संतान माया और लोभ है वही द्वेष की संतान क्रोध और मान है।
साध्वी ने कहा कि क्रोध, मान, माया और लोभ को चांडाल चौकड़ी कहा गया है। क्रोध तो महाचांडाल है। क्रोधी व्यक्ति की आखों से अंगारे बरसते है। वो अन्यों को जलाये या न जलाये परंतु क्रोधी को तो जला ही देते हैं
साध्वी ने कहा-एक अंग्रेज विद्वान ने कहा है जैसे ही क्रोध भीतर में प्रवेश करता है, बुद्धि बाहर निकल जाती है व्यक्ति विवेकशून्य हो जाता है।
साध्वी ने कहा- व्यक्ति मान पत्र पसंद करता है, नाम पसंद करता है। नाम लिखवाने के लिए लाखों का दान करने को तैयार हो जाता है वही घोटाले होने पर ब्लैकलिस्ट में से नाम कटवाने के लिए लाखों रुपये देने को तैयार हो जाता है।
साध्वी संयम साक्षी ने महापुरुषों के जीवन में जो उपसर्ग आये उनको उन्होने कितने समभाव से सहन किया उसका वर्णन करते हुए कहा हमे भी महापुरुखो के जीवन से प्रेरणा लेते हुए सहन शक्ति का विकास करना चाहिये। साध्वी ने कहा कि सहना ही जिंदगी है। सारे शास्त्रों का सार है। जप तप भी सहने को बड़ा बताया है।