– शांतिनाथ जिनालय हिरण मगरी सेक्टर 3 से विहार कर सेक्टर 4 मंदिर पहुंचे जैनाचार्य
उदयपुर, 18 जून। जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेन सूरीश्वर महाराज आदि ठाणा 5 हिरण मगरी सेक्टर 3 से विहार कर श्री शांतिनाथ जैन संघ हिरण मगरी सेक्टर 4 जैन मंदिर में पहुंचे। प्रात: 8 बजे श्री संघ के अल्पाहार के पश्चात् 9.15 बजे धर्मसभा का आयोजन हुआ। कोषाध्यक्ष राजेश जावरिया ने बताया कि धर्मसभा में प्रवचन देते हुए जैनाचार्य श्री ने कहा कि हमे प्राप्त हुए मानव जीवन, दीर्घ आयुष्य, आरोग्य, सुख-समृद्धि आदि सभी सुखों का मुख्य कारण परमात्मा की भक्ति है। अत: प्रतिदिन परमात्मा की सेवा-पूजा करना हमारा परम कर्तव्य है। परमात्मा की भक्ति में उदारता पूर्वक अच्छी से अच्छी सामग्री का उपयोग करना चाहिए। परमात्मा के द्रव्य पूजा के साथ-साथ भाव पूजा करना श्रावक का परम कर्तव्य है।. भावपूजा अर्थात् प्रभु के गुणगान करके आत्महित हेतु प्रार्थना करना । याचना और प्रार्थना में बड़ा अन्तर है। भिखारी की मांग को याचना कहते है और परमात्मा से भक्त की मांग को प्रार्थना कहते है। परमात्मा के पास क्या मांगना और क्या नहीं मांगना यह भी पूर्वाचार्यो ने प्रार्थना सूत्र के माध्यम से बताई है। इस सूत्र में बताई 13 प्रार्थनाओं में सबसे महत्त्वपूर्ण है समाधि मरण प्राप्ति की प्रार्थना । मानव जीवन की सफलता और सार्थकता गाड़ी-बंगले खरीदने या विशाल साम्राज्य खड़ा करने में नहीं है। क्योकि यह सारी संपत्ति यही रह जाने वाली है। जिंदगीभर व्यक्ति जिस घर को बनाने के लिए अथक मेहनत करता है। परंतु मरने के बाद उसी के परिवारजन उसको बांध कर श्मशान में जला देते है। जिस परिवार के पालन-पोषण के लिए व्यक्ति दिन-रात कड़ी मेहनत करता है, वही परिवार मृत्यु के बाद व्यक्ति को कुछ दिनों में ही भूल जाते हैं। संसार में जिसका जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु निश्चित है। परंतु मृत्यु समय शरीर आत्मा की भेद रेखा का ज्ञान एवं परमात्मा का शुभ ध्यान होना अत्यंत ही कठिन है। इस कठिन कार्य में सफल होने के लिए देव-गुरु की कृपा होना खूब जरूरी है। उसके साथ त्याग की मनोवृत्ति चाहिए। प्राप्त हुई सामग्री के प्रति त्याग का भाव नहीं है उसे समता भाव की प्राप्ति होना अति कठिन है।
इस अवसर कोषाध्यक्ष राजेश जावरिया, श्री जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जिनालय समिति के अध्यक्ष सुशील बांठिया, अशोक नागौरी, उत्सव लाल जगावत, अनिल भण्डारी, गौतम गांधी, जसवंत सिंह सुराणा आदि समस्त कार्यकारिणी सदस्य आदि भी उपस्थित रहे।
मृत्यु समय शरीर और आत्मा का भेदज्ञान अत्यंत कठिन है : जैनाचार्य रत्नसेन सूरीश्वर महाराज
