समाज धर्म के मूल तत्वों से विमुख होता जा रहाः डॉ संयमलता

उदयपुर। हिरणमगरी से 4 में चल रहे चातुर्मासिक प्रवचन के दौरान आज धर्मसभा में संबोधित करते हुए श्रमण संघीय साध्वी डॉ संयमलता ने कहा कि आज हमारा समाज धर्म के मूल तत्वों से विमुख होता जा रहा है। समाज के लोग भौतिक सुख के चक्कर में भागम-भाग की जिंदगी जीने लगे हैं। धर्म-साधना-आराधना, सत्संग, दान, धर्म आदि से दूर होते जा रहे हैं।
सामाजिक सरोकार मिटते जा रहा है। इस कारण हमारे बीच से शांति, प्रेम, भाईचारा समाप्त होते जा रहा है। हम अपने संस्कृति और सभ्यता के बिना पशु समान हैं। इस बात को आज कोई नहीं समझ पाते हैं। समाज में माता-पिता एवं गुरूजनों का सम्मान के बिना हम कुछ भी नहीं कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने अपने आदर्श माता-पिता, गुरूजनों का सम्मान कर संसार के पूजनीय हुए।
उन्होनें कहा कि सत्य जीवन का सार है और अहिंसा महान धर्म है। सत्य, जीवदया, परामर्श एवं सदमार्ग जीवन में जरूरी है। सत्य और अहिंसा से समाज को नई दिशा मिलती है। सत्य मानव जीवन की अनमोल विभूति है। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में एक लक्ष्य होना चाहिए, जैसे एक नदी नाले का लक्ष्य होता है। वे सागर से जाकर मिलती हैं। लक्ष्यहीन व्यक्ति अपने जीवन को यूं ही गंवा देता है। इसलिए अपने जीवन की दिशा तय करो।
साधवी सौरभप्रज्ञा ने कहा कि जहां सब कुछ पहले से ही नियत हो, वहां किसी को उपदेश देने से कोई फायदा नहीं, अंधे को रास्ता बताने का कोई फायदा नहीं, बहरा सुन नहीं सकता, परंतु आज का इंसान सब देख और सुन सकता है फिर भी चल नहीं पाता। संसार की यही स्थिति है। मानव आगे बढ़ने के रास्ते को देखते जानते हुए भी , गुरु के निर्देशों को समझते हुए भी आगे नहीं बढ़ पाता है।
चातुर्मास समिति के अध्यक्ष ललित लोढ़ा ने जानकारी देते हुए बताया कि रविवार से सुबह साढ़े 8 बजे जैन आगम सूत्र “अन्तकृत दशांग सूत्र” का  मूल व भावार्थ के साथ वाचन पश्चात् स्वाध्याय के विशिष्ट गुणों, सेवा, संयम, साधना, ध्यान, सद्व्यवहार पर प्रवचन होंगे। प्रतिदिन सुबह व सांयकाल प्रतिक्रमण होंगे जो आत्मशुद्धि के लिए नितांत आवश्यक हैं।

आंखो से अच्छे-बुरे दृश्य दिखाई देने के आधार पर कभी अनुमान नहीं लगाना चाहियेःसंयमज्योति  
उदयपुर। सुरजपोल बाहर स्थित दादाबाड़ी में श्री जैन श्वेताम्बर वासुपूज्य महाराज मन्दिर का ट्रस्ट द्वारा आयोजित किये जा रहे चातर्मास में समता मूर्ति साध्वी जयप्रभा की सुशिष्या साध्वी डॉ. संयम ज्योति ने कहा कि आँख शरीर का महत्वपूर्ण पार्ट है, आंख है तो जान है। जो लोग अंधता के शिकार है, वो लोग जो वेदना झेलते है, वो ही जानते है।
साध्वी ने कहा कि आंखों से अच्छे बुरे दृश्य दिखाई देते हैं। उनके आधार पर कभी भी अनुमान नही लगाना चाहिये। आखों से दिखने वाला सत्य ही हो, जरूरी नहीं। कई बार व्यक्ति किसी दृश्य को आंखों से देखकर सामने वाले पर कलंक लगा देता है, उसे चरित्रहीन कह देता है, उसकी अफवाह फैला देता है उसका दुष्परिणाम उसे भोगना पड़ता है।
साध्वी ने कहा- व्यक्ति की जीवन पद्धति ऐसी होनी चाहिए जिससे कोई गलत मनुमान नही लगा सके। व्यक्ति भले ही कितना भी पवित्र हो, पवित्र दिखना भी जरूरी है।
साधी ने कहा- आँखें तो प्रभु को निहारने के लिए, स्वाध्याय करने के लिए मिली है। आँखों में अमृत है आखो से करुणा की वर्षा होनी चाहिए। आँखों से गलत अनुमान लगाकर किसी की पर भी कलंक लगाना क्रूरता है। आँखो का दुरुपयोग है। जिस इन्द्रिय का व्यक्ति दुरुपयोग करता है वह इन्द्रिय उसको नहीं मिलती है अथवा अस्वस्थ मिलती है।

 

By Udaipurviews

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