अपेक्षा को विसर्जित करें : साध्वी वैराग्यपूर्णाश्री  

आयड़ जैन तीर्थ में चातुर्मासिक प्रवचनों की श्रृृंखला जारी  
उदयपुर 14 अगस्त। श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्वावधान में तपागच्छ की उद्गम स्थली आयड़ तीर्थ पर बरखेड़ा तीर्थ द्वारिका शासन दीपिका महत्ता गुरू माता सुमंगलाश्री की शिष्या साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री एवं वैराग्य पूर्णाश्री आदि साध्वियों के सानिध्य में मंगलवार को परमात्म भक्ति के स्वरूप में अष्ट प्रातिहार्य पूजन पर विशेष प्रवचन हुए।  महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में सुबह 7 बजे दोनों साध्वियों के सानिध्य में अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की गई।   चातुर्मास संयोजक अशोक जैन ने बताया कि प्रवचनों की श्रृंखला में प्रात: 9.15 बजे साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री व वैराग्यपूर्णा ने प्रवचन के माध्यम से बताया कि अपेक्षा का विसर्जन कैसे किया जाए? इसके लिए भगवान ने एक सुन्दर और सरल मार्ग बताया कि “अपेक्षा को दु:खरूप समझकर उसका विसर्जन करते जायो। धीरे-धीरे उसके ऊपर नियन्त्रण करते जाओ। जैसे सिगरेट और बीडी के व्यसन से फेफड़ा बिगड़ता है, यह समझ में आ जाने के बाद एक झटके में सिगरेट-बीडी छोडने की इच्छा से जाती है। लेकिन एक झटके में अगर सिगरेट- बीड़ी छोडने जाएं तो बिस्तर से उठा भी नहीं जाता, चक्कर आने लगते अत: बीड़ी एक झटके से न छोड़ सके तो धीरे-धीरे छोडऩे का प्रयत्न करता है। आगे उन्होंने बताया कि इसी प्रकार अपेक्षाही दु:ख हैं यह समझ में आ जाने के बाद अपेक्षापूर्ति के जितने भी साधन है। हैं उन्हें छोडऩे का मन होता है। भले एक झटके से उन्हें नहीं छोड़ सकें तो धीरे धीरे भी है उन्हें छोडऩे का प्रयास करना चाहिये। धीरे-धीरे छोडऩे से अपेक्षाएं कमजोर पड़ती जाएंगी और हमारी आत्मा चलवान चनती जाएगी। फिर शक्ति आ जाने से के बाद एक दिन एक झटके से सबकुछ छूट जाएगा और इसके कारण हमारी आत्मा संपूर्ण और स्थायी रूप से सुखी हो जाएगी। अगर हमें सुखी होना है तो सुखी होने का यही उपाय है। अपेक्षा को छोड़ हो/जादिकाल के संस्कार के कारण ही अपेक्षाए उठती है इसकी जितनी पूर्ति होगी बढ़ती जाएगी।  जैन श्वेताम्बर महासभा के अध्यक्ष तेजसिंह बोल्या ने बताया कि आयड़ जैन तीर्थ पर प्रतिदिन सुबह 9.15 बजे से चातुर्मासिक प्रवचनों की श्रृंखला में धर्म ज्ञान गंगा अनवरत बह रही है।

By Udaipurviews

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