विश्व गोरैया दिवस (20 मार्च) पर प्रकाशनार्थ विशेष आलेख
-डॉ. कमलेश शर्मा
चीं-चीं कर आती और घर-आंगन में फुदकती… नन्हीं सी चिड़िया…जो कभी घरों की शान थी। कच्चे घरों की खपरैल के बीच, दिवार की दरारों, तस्वीरों के पीछे, गर्डर के कोनों, टीन-टप्परों व छज्जों के नीचे तथा छत पर पानी के नालदों में तिनकों से बनाये हुए इनके घौंसले देखे जाते थे। इनकी चहचहाहट से वीरान घर भी आबाद और जीवंत होते रहते थे। इसी नन्हीं चिड़िया को दाना-पानी देकर देखभाल करते घर के छोटे बच्चों से लेकर बूढ़े हाथ कभी भी थकते नहीं थे। प्राचीन काल से ही हमारे संस्कृति, स्वतंत्रता, उल्लास और परम्परा की संवाहक वही गौरैया अब संकट में है। आज विकास की दौड़ में गांव-शहरों में उग आए सीमेंट के जंगलों और पेड़ों के स्थान पर उगे बिजली व मोबाईल के टावरों ने इस गोरैया को घरों से गायब सा कर दिया है।
गोरैया किसानों की मित्र मानी जाती है। गोरैया कीटभक्षी है और यह हज़ारों वर्षों से खेतों और हमारे घर-आंगन में कीट-पतंगों, मक्खी, मच्छर, मकड़ियां, इल्लियां आदि को खाकर पर्यावरण को संतुलित करती है और हमारे जीवन को सहज बनाने में मदद करती है। वह अपने चूजों को भी वो इल्लियां खिलाती है जो फसल को नुकसान पहुंचाती हैं। इस मायने में गोरैया स्वस्थ पर्यावरण की जैव-सूचक है।
इसलिए गायब हो रही है गोरैया
यह सुखद है कि अब पशुपक्षियों के प्रति संवेदनशील लोगों के कारण नन्हीं गोरैया के लिए घरों में लकड़ी और गत्ते के कृत्रिम घौंसलें लगाने का प्रचलन बड़ा है और इन घौंसलों में अब ये अपनी वंशवृद्धि भी कर रही है।
अखिल विश्व में है गोरैया का गौरव:
प्राकृतिक रूप से गोरैया भारत के साथ यूरोप, अफ्रीका, एशिया, म्यांमार व इंडोनेशिया में आसानी से देखी जा सकती है। गोरैया का गौरव समूचे विश्व में है इसी कारण अब तक भारत सहित 20 से अधिक देशों में गौरैया पर डाक टिकट किए गए हैं। गोरैया पर युगोस्लाविया में 1982 में पहली बार डाक टिकट जारी की गई। भारतीय डाक विभाग ने 9 जुलाई 2010 को गोरैया पर पाँच रुपये मूल्य वर्ग का डाक टिकट जारी किया। इस डाक टिकट में एक नर व मादा गोरैया को दर्शाया गया है।
चिड़िया एक नाम अनेक
अलग-अलग बोलियों, भाषाओं, क्षेत्रों में गौरैया को विभिन्न नामों से जाना जाता है।
उर्दू— चिरया।
सिंधी— झिरकी ।
पंजाब— चिरी।
जम्मू और कश्मीर—चेर।
पश्चिम बंगाल—चराई पाखी ।
उड़ीसा— घराछतिया।
गुजरात — चकली।
महाराष्ट्र— चिमनी।
तेलगु— पिछुका।
कन्नड— गुबाच्ची ।
तमिलनाडू और केरल- कुरूवी