उदयपुर, 19 जुलाई। श्री वर्धमान गुरू पुष्कर ध्यान केन्द्र के तत्वावधान में दूधिया गणेश जी स्थित स्थानक में चातुर्मास कर रहे महाश्रमण काव्यतीर्थ श्री जिनेन्द्र मुनि जी म.सा. ने शनिवार को धर्मसभा में कहा कि दुखों का कारण हमारे अपने कर्म हैं। पहला सुख है-निरोगी काया। समरस भाव, कषायों की निवृत्ति और प्रमाद रहित जागरूक जीवन ही आत्मकल्याण का पथ है। यदि हमारी काया स्वस्थ होगी तो हमारा मन हर काम में लगेगा और यदि काया स्वस्थ नहीं है तो नहीं चाहते भी हमारा ध्यान बार-बार इस ओर जाएगा मुझे अनुकूलता नहीं है। इससे हमारा ध्यान भटकेगा और ध्यान भटकने के बाद कितने प्रयत्न कर लो एकाग्रता नहीं ला पाओगे और बिना एकाग्रता के तप-त्याग, धर्म-ध्यान आदि नहीं कर पाओगे। स्वस्थ तन में ही स्वस्थ मन का वास होता है। इसके लिए आवश्यक है कि व्रत-उपवास करें और बाजार के खाद्य पदार्थों का त्याग करें। रविंद्र मुनि ने फरमाया कि भगवान महावीर स्वामी के जीवन में भी संघर्ष था। यदि आंखें खुली रहें तो जीवन में उजियारा ही उजियारा है, लेकिन आंखें मूँदने पर अंधकार ही अंधकार छा जाता है।
केंद्र के अध्यक्ष निर्मल पोखरना ने बताया कि रविवार को दया एवं एकासन व्रत तपस्या का आयोजन किया जाएगा जिसमें 75 धर्मावलंबियों ने अपने नाम पंजीकृत कराए है। मीडिया प्रभारी संदीप बोलिया ने जानकारी दी कि आगामी 25 जुलाई को पूज्य आनंदऋषि जी म.सा. की जयंती के पावन अवसर पर सजोड़ों द्वारा नवकार मंत्र जाप का आयोजन किया जाएगा। इस अवसर पर श्रद्धालुओं के लिए 20 लक्की ड्रॉ भी खोले जाएंगे। मंत्री प्रवीण पोरवाल ने बताया कि चातुर्मास के दौरान प्रत्येक रविवार को कोई न कोई विशेष नवीन कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा। उन्होंने सभी धर्मप्रेमियों का स्वागत एवं अभिनंदन करते हुए बताया कि शनिवार को नौ की तपस्या लेकर नंदेशमा से आई सुश्राविका श्रीमती लीला बाई का संघ की ओर से बहुमान किया गया।
स्वस्थ तन में ही स्वस्थ मन का वास होता है : जिनेन्द्र मुनि
