उदयपुर। न्यू भुपालपुरा स्थित अरिहंत भवन में जैनाचार्य ज्ञानचंद्र महाराज ने कहा कि धर्म को संप्रदाय के कटघरों में डालने से धर्म की मौलिकता विकृत होती जा रही है।
आज संप्रदाय की दीवारें इतनी सख्त होती जा रही है कि सामान्य श्रावक-श्राविका को बड़ी समस्यायें हो रही है। कौनसे सम्प्रदाय की बातें सही माने ? यह जटिल प्रश्न बनता जा रहा है। संप्रदाय के नाम पर समाज को खण्ड-खण्ड किया जा रहा है। यह जानना चाहिये कि संप्रदाय के नाम, वाणी, आचरण से महावीर का नाम एवं जिनवाणी हट गयी, तो संप्रदाय खाली खोखा रह जायेगा। और खाली खोखा केवल धोखा ही दे सकता है।
संप्रदायवाद का विष समाज में फैलने का संकट गहरा रहा है। दानादि शुभ पुण्यकार्यों के बहाने भी अहंकार की दीवार खड़ी होती जा रही है। व्यक्ति सोचने लगा है- मैंने इतना दान दिया, मैंने इतना तप किया, मैंने इतनी सेवा की। इस प्रकार का अभिमान का प्रदर्शन अच्छे कार्य के सुफल को कलुषित कर रहा है। इसी अभिमान रूपी चट्टान के कारण आत्मा से सुख का झरना नहीं फूट पा रहा है। अगर हमें आत्मविकास करना है तो अहंकारादि को हटाना होगा। यह दुर्भाग्य है कि बड़े-बड़े अनेक महात्मा भी घोर अंधकर से घिरे हैं। वे भी धर्म के आधार से भटक कर यश लिप्सा की खाई में गिर रहे हैं। ज्ञानेश चातुर्मास समिति के अनुसार महिला जागरण के लिए गुरु संगीत प्रतियोगिता का आयोजन किया गया।
धर्म को संप्रदाय के कटघरों में डालने से धर्म की मौलिकता विकृत हो रहीःआचार्य ज्ञानेश
