मीरा पर भ्रांतियां दूर होकर व्यापक शोध की आवश्यकता – प्रो. सारंगदेवोत

मीरां महोत्सव का आगाज: 
उदयपुर, 21 फरवरी। समाज में प्रचलित भक्तिमती मीरां की छवि पर पुनर्विचार की आवश्यकता है और उनकी रचनाओं को व्यापक परिप्रेक्ष्य में समझने की जरूरत है।
यह विचार शुक्रवार को यहां साहित्य अकादमी, नई दिल्ली और जनार्दन राय नागर विद्यापीठ विश्वविद्यालय, उदयपुर के संयुक्त तत्त्वावधान में शुरू हुए दो दिवसीय मीरां महोत्सव में उभर कर आई। मीरां महोत्सव के पहले दिन विद्वानों और वक्ताओं ने मीरांबाई के व्यक्तित्व और कृतित्व पर नए दृष्टिकोण प्रस्तुत किए।
मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित अकादमी के अध्यक्ष के प्रतिनिधि प्रो. विजय बहादुर सिंह ने कहा कि मीरांबाई का जीवन जन सामान्य की तरह प्रतीत होता है, लेकिन वह चुनौतियों और संघर्षों से भरा असामान्य जीवन था। उन्होंने कहा कि राजप्रसाद में रहने के बावजूद मीरा ने उन भौतिक सुख-सुविधाओं को त्यागकर आत्मिक खोज और भक्ति का मार्ग अपनाया। उनकी कविताओं में संघर्ष की अभिव्यक्ति और असाधारण शक्ति है, जो उन्हें सामान्य मापदंडों से परे ले जाती हैं।
राजस्थान विद्यापीठ के कुलपति प्रो. एस. एस. सारंगदेवोत ने समाज में भ्रांतियों को दूर करने का आह्वान करते हुए कहा कि संतों ने समाज को सकारात्मक दिशा दी और उनकी विचारधारा पथ प्रदर्शक रही है। उन्होंने कहा कि समाज में मीरां के बारे में व्याप्त भ्रांतियों को शोध के माध्यम से दूर करने की आवश्यकता है और इस दिशा में विश्वविद्यालयों को सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।
साहित्य अकादमी की सामान्य परिषद के सदस्य प्रोफेसर माधव हाड़ा ने अपने वक्तव्य में कहा कि मीरां की वर्तमान छवि साहित्य और समाज में जेम्स टॉड द्वारा निर्मित है, जिसे हम अनजाने में अब तक दोहराते आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि मीरां के आरंभिक 5-6 पदों को उनके अस्तित्व तक सीमित करने का प्रयास किया गया, जबकि उनकी रचनाओं में अपार गहराई है। उन्होंने यह भी बताया कि पश्चिम क्षेत्र और विश्वभर में मीरां के प्रति रुचि बढ़ रही है और उनकी शुद्ध स्मृतियों और रचनाओं पर नए दृष्टिकोण से अध्ययन की आवश्यकता है। प्रो. हाड़ा ने कहा कि सभी लोक संतों में मीरां की लोक व्याप्ति सबसे अधिक है। उन्होंने समाज में मीरां को लेकर फैली भ्रांतियों को दूर करने की आवश्यकता जताई, ताकि उनकी वास्तविक छवि समाज के सामने आ सके।
देवेंद्र देवेश ने अकादमी की विभिन्न गतिविधियों पर प्रकाश डालते हुए मीरां के कार्यों को लेकर अकादमी की रुचि व्यक्त की। उन्होंने कहा कि मीरां की रचनाओं में भक्ति और प्रेम की अनूठी छवि है, जो आज भी प्रासंगिक है।
अध्यक्षता करते हुए कुलाधिपति भंवरलाल गुर्जर ने कहा कि विद्वानों और वक्ताओं को मीरांबाई के व्यक्तित्व को नए दृष्टिकोण से समझने के लिए निरंतर शोध करना होगा और नए शोधार्थियों को भी प्रोत्साहित करना होगा।
कार्यक्रम समन्वयक प्रो. प्रदीप त्रिखा ने बताया कि विभिन्न सत्रों में मीरां की बहुमुखी छवि पर विद्वानों ने विचार रखे। मीरां महोत्सव के प्रथम सत्र में वक्ता खजूर सिंह ठाकुर ने मीरां के प्रचलित स्वरूप को डोगरी भाषा के लोकगीतों के माध्यम से समझाते हुए उनके विविध रूपों को उजागर किया। उन्होंने बताया कि मीरां की कविता कला क्षेत्र सापेक्ष है, जो भिन्न-भिन्न रूपों में प्रकट होती है। डॉ. हेमेंद्र चौधरी ने जगत शिरोमणि मंदिर में स्थित मूर्तियों में मीरा के प्रमाणों को दर्शाया, जिससे उनके ऐतिहासिक अस्तित्व की पुष्टि होती है। सत्र की अध्यक्षता कर रहे मलय पानेरी ने मीरां को नए सिरे से परखने और उनके कृतित्व पर पुनर्विचार की आवश्यकता पर बल दिया।
द्वितीय सत्र में विशाल विक्रम सिंह ने मीरां की भक्ति में निहित वेदना को कविता से जोड़ते हुए नारी चिंतन का नया आयाम प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि मीरां की रचनाओं में वेदना और समर्पण का गहन भाव है। मंजू चतुर्वेदी ने कहा कि मीरां ने अपने मनोयोग से सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ा और उनके पद कृष्ण से मिलन की आकांक्षा में रचे गए हैं। सत्र की अध्यक्षता कर रहे विजय बहादुर सिंह ने मीरां की कृष्ण भक्ति को बहुरंगी और वैविध्यपूर्ण बताते हुए उनकी कविताओं में आनंद और वेदना के विरोधाभास पर शोध की आवश्यकता बताई।
भजन संध्या में गूंजे मीरां के पद और लोकगीतों की धुनें
-मीरां महोत्सव के तहत आयोजित भजन संध्या में भक्ति और लोकगीतों की सरिता बहती रही। मुंबई से आईं भजन गायिका निहारिका सिन्हा ने मीरां के प्रसिद्ध पदों को अपने मधुर स्वर में प्रस्तुत कर श्रोताओं को भक्ति रस में डुबो दिया। उन्होंने ‘पायोजी मैंने राम रतन धन पायो’, ‘ए री मैं तो प्रेम दीवानी’, ‘दरस बिनु दुखन लागे नैन’, ‘ओजी हरि क़ित गए नेह लगा’ और ‘मैं तो श्री गिरिधर आगे नाचूंगी’ जैसे पदों की सुमधुर प्रस्तुति दी, जिनमें मीरां के प्रेम और समर्पण का भाव झलका।
भजन संध्या में राजस्थानी लोक गीतों की छटा भी बिखरी। पारंपरिक लोक गायक डॉ. भुट्टे खान मांगणियार और उनके समूह ने बाड़मेर की मिट्टी की खुशबू लिए मीरा के भजनों के साथ ‘पधारो म्हारे देश’, ‘निंबुड़ा’ और ‘दमादम मस्त कलंदर’ जैसे लोकप्रिय गीतों की सजीव प्रस्तुति दी। उनकी सुर-लय और वाद्य यंत्रों की धुनों ने श्रोताओं को झूमने पर मजबूर कर दिया।
भजन संध्या में उपस्थित श्रोताओं ने भक्ति और लोक संगीत के इस संगम का भरपूर आनंद लिया, जिससे मीरां महोत्सव का वातावरण संगीतमय और भावपूर्ण बन गया।

भजन संध्या के कार्यक्रम में विशेष उपस्थिति के रूप  में बी. एन. संस्था के मंत्री महेंद्र सिंह अगरिया , प्रबंध निदेशक मोहब्बत सिंह रूपाखेड़ी आदि उपस्थित थे।
By Udaipurviews

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