संस्थापक जनुभाई की 112वीं जयंती पर किया नमन

जनुभाई के सपनों को पूरा करने का लिया संकल्प
पं. नागर ने शिक्षा का जो आधार रखा वही नयी शिक्षा नीति के मुख्य घटक – प्रो. सारंगदेवोत
 जनुभाई ने श्रमजीवियों को शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ा – गुर्जर
पं. नागर भारतीय संस्कृति व परम्परा के सम्वाहक – प्रो. सारंगदेवोत
उदयपुर 16 जून / जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ डीम्ड टू बी विश्वविद्यालय के संस्थापक मनीषी पंडित जनार्दनराय नागर की 112वीं जयंती पर शुक्रवार को प्रतापनगर स्थित आईटी सभागार में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में जनुभाई की प्रासंगिकता विषय पर आयोजित संगोष्ठी का शुभारंभ कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत, कुल प्रमुख भंवर लाल गुर्जर, पीठ स्थविर डॉ. कौशल नागदा, प्रो. मुनेश चन्द्र त्रिवेदी, पीजी डीन प्रो. जीएम मेहता, प्रो. जीवन सिंह खरकवाल ने मॉ सरस्वती की प्रतिमा पर पुष्पांजलि एवं दीप प्रज्जवलित कर किया, इससे पूर्व परिसर में लगी जनुभाई की आदमकद प्रतिमा पर प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत के सानिध्य में विद्यापीठ के तीनों परिसरों के कार्यकर्ताओं ने पुष्पांजलि अर्पित कर उनके सपनों को पूरा करने और संस्था को ओर अधिक उंचाईयों पर पहुंचाने का संकल्प लिया।

प्रो. सारंगदेवोत ने कहा कि जनुभाई एक युग दृष्ट थे जिन्हांेने 85 वर्ष पूर्व शिक्षा के क्षेत्र में जो सोचा और जो वो करना चाहते थे उसकी क्रियांविति आज  राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के माध्यम से हो रही है। नयी राष्ट्रीय शिक्षा  नीति के मुख्य घटक बी.ई.आ.े का जनुभाई के हद्धय, सिर एवं भावनात्मक दृष्टिकोण का मुख्य हिस्सा होंगे। इस नीति में मातृ भाषा हिन्दी में कार्य करने व इसे बढावा देने की बात की जा रही, लेकिन जनुभाई ने आजादी के 10 वर्ष पूर्व 1937 में एक लालटेन, पांच कार्यकर्ता, एक रूपयें के किराये के भवन में हिन्दी के प्रचार प्रसार के लिए हिन्दी विद्यापीठ की स्थापना की, जिसे बाद में राजस्थान विद्यापीठ के नाम से जाना गया। उनकी सोच थी कि राजस्थान के दक्षिण अंचल की आदिवासी महिला, पुरूष को सशक्त कैसे करे यह उनका बहुत बड़ा स्वप्न था। जनुभाई ने 85 वर्ष पूर्व कहा कहते थे कि हमारी आने वाली पीढी को स्वावलम्बी नहीं बनायेंगे तब तक हमारी शिक्षा अधूरी है और जो भी हम रिसर्च करते है वह समाज के हित में हो, और यही बात नयी शिक्षा नीति में कही गयी है।  जनुभाई महात्मा गांधी व रविन्द्रनाथ टैगोर के काफी नजदीक थे, तत्कालीन महाराणा की प्रेरणा से शिक्षा ग्रहण करने काशी गये।  वहॉ मुंशी प्रेमचंद, मदन मोहन मालवीय के सम्पर्क मे आये और उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व का उन पर काफी गहरा  प्रभाव पड़ा और उन्होंने संकल्प लिया कि मेवाड़ की अशिक्षित जनता है उनके लिए शिक्षा की अलख जगाउंगा। उन्होंने शिक्षा को आम लोगों में जागरूकता फैलानेें की कुंजी माना। जनुभाई बहुुमूखी प्रतिभा के धनी थे, जिसमें सुप्रसिद्ध साहित्यकार, प्रबुद्ध चिंतक, समाज सुधारक, पत्रकार, कवि, शिक्षा शास्त्री, राजनेता, दार्शनिक एवं श्रेष्ठ रचनाकार भी थे। वे शिक्षा को लोकतंत्र के लिए जरूरी मानते थे। मनीषी पं. नागर शाश्वत नैतिकता एवं आचार विचारों शिलालेख के शिल्पी थे, जिन्होंने राष्ट्रीय चिंतन के साथ एक ऐसी संस्था खड़ी की, जिसका उद्देश्य भारत राष्ट्र के अभ्युदत के लिए संकल्प बद्ध आचार विचारों की क्रियांविति पर बल देते। भारतीय ज्ञान, जिसका हमारे वेदों,  उपनिषद्ो एवं आर्ष ग्रंथों में आज भी छिपा हुआ है, जिसमें खोजकर नयी परिभाषा के साथ उल्लेखित करने की जरूरत है। आज पूरे देश में शिक्षा का अन्तर्राष्ट्रीयकरण हो रहा है ऐसे में क्वालिटी एज्यूकेशन व रिसर्च के साथ अपने आप को बनाये रखने की चुनौती है। उन्होंने कहा कि जनुभाई कहा कहते थे कि कोई भी देश या राष्ट्र जमीनों, नदियों, पहाड़ों, कलकारखानों से नहीं बनता, राष्ट्र केवल वहॉ के नागरिकों से बनता है।  आने वाले समय के लिए किस तरह से सुयोग्य, सुदृढ, मजबूत और हमारी भारतीय संस्कृति के जो मूल्य और नेतिकता है उससे परिपूर्ण  नागरिकों की एक खेप तैयार करे, ये हमारे लिए बहुत बड़ी चुनौती है और इसके माध्यम से ही संस्कृति व संस्कार के माध्यम से ही हम राष्ट्र का निर्माण कर पायेगे।
मुख्य अतिथि  कुल प्रमुख भंवरलाल गुर्जर ने कहा कि जनुभाई संस्था में कार्य करने वाले व्यक्ति को कर्मचारी नहीं कार्यकर्ता मानते थे। वे संस्था को कार्यकर्ताओें की संस्था मानते थे। साहित्य अकादमी की स्थापना पंडित नागर ने की। पंडित नागर की सोच का ही परिणाम था कि वे शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति को साक्षर एवं प्रबुद्ध नागरिक बनाते हुए, जीविकोपार्जन के लिए तैयार करना है, लेकिन वास्तविक उद्देश्य मनुष्य को सभी पहलुओं से व्यापक बनाना एवं विकसित करना है। उन्हांेने संस्था की शुरूआत दिन भर काम करने वालों को पुनः शिक्षा की मुख्य धारा से जोडने के उद्देश्य से रात्रिकालीन श्रमजीवी कॉलेज की  स्थापना की।
अध्यक्षता करते हुए प्रो.़ मेहता ने नयी शिक्षा नीति को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में परीलक्षित करते हुए शिक्षा की चुनौतियों से अवगत कराया। संचालन डॉ. कुलशेखर व्यास ने किया जबकि आभार डॉ. कौशल नागदा ने दिया।

पुस्तक का हुआ विमोचन:-
समारोह में अतिथियों द्वारा कुलपति कर्नल प्रो. शिवसिंह सारंगदेवोत, डॉ. चन्द्रेश छतलानी द्वारा लिखित पुस्तक स्टेप बाई स्टेप डिजिटल मार्केटिंग का विमोचन किया गया।
इस अवसर पर  डॉ. तरूण श्रीमाली, प्रो. सरोज गर्ग, प्रो. मंजू मांडोत, प्रो. आईजी माथुर,  डॉ. पारस जैन, डॉ. भवानीपाल सिंह राठौड़, डॉ. धमेन्द्र राजौरा, डॉ. युवराज सिंह राठौड़, डॉ. दिलीप सिंह चौहान , डॉ. हीना खान, डॉ. नीरू राठौड़, डॉ. अमी राठौड, डॉ. रचना राठौड, डॉ. अपर्णा श्रीवास्तव, डॉ. राजन सूद, डॉ. शेलेन्द्र मेहता, डॉ. एसबी नागर, डॉ. बबीता रसीद, डॉ. हरीश शर्मा, डॉ. प्रकाश शर्मा, डॉ. मानसिंह चुण्डावत, राकेश दाधीच, उदयभान सिंह, डॉ. संतोष लाम्बा, डॉ. सपना श्रीमाली, डॉ. शिल्पा कंठालिया, डॉ. मधु मुर्डिया, डॉ. चन्द्रेश छतलानी, डॉ. भूरालाल श्रीमाली, डॉ. गुणबाला आमेटा, मनोज रायल, भगवती लाल सोनी, डॉ. हेमंत साहू,   सहित विद्यापीठ के डीन डायरेक्टर एवं कार्यकर्ताओं ने जनुभाई को पुष्पांजलि अर्पित करते हुए उनके द्वारा बताये मार्ग पर चलते हुए विद्यापीठ के उत्तरोत्तर विकास में सहयोग देने की शपथ ली।

By Udaipurviews

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