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पर्यावरण संरक्षण: सतत संवाद और समर्पित प्रयास बेहद जरूरी

पर्यावरण संरक्षण: सतत संवाद और समर्पित प्रयास बेहद जरूरी

विश्व पर्यावरण दिवस (5 जून) पर विशेष आलेख - राहुल भटनागर वैश्विक प्राथमिकता बनाए जाने के पचास वर्षों से अधिक समय बाद भी, पर्यावरण संरक्षण समूची दुनिया के लिए मुख्य चुनौती बनी हुई है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के अनेक प्रयासों के बावजूद संरक्षण और स्थिरता में सार्थक प्रगति सीमित ही हुई है। इस समस्या की जड़ सामूहिक मानसिकता में है कि कोई और इस पर्यावरणीय संकट को सुलझाएगा—यह एक खतरनाक भ्रांति है, जिसे रॉबर्ट स्वेन की उक्तिवाक्य "हमारे ग्रह के लिए सबसे बड़ा खतरा यह विश्वास है कि कोई और इसे बचाएगा" ने बखूबी दर्शाया है। इसका समाधान जागरूकता,…
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धर्म, संस्कृति व स्त्री शिक्षा के लिये समर्पित वीरांगना अहिल्याबाई होल्कर

धर्म, संस्कृति व स्त्री शिक्षा के लिये समर्पित वीरांगना अहिल्याबाई होल्कर

300वीं जयन्ती (31 मई) पर विशेष :- अहिल्याबाई होल्कर की तीन सौवीं का जयन्ती पूरे देश में उल्लास के साथ मनाई जा रही है। जीवन की तीन शताब्दियां व्यतीत होने बाद  राष्ट्र या समाज जिस शासक को स्मृत रखे, निसंदेह वह विशेष है। ऐसे शासक कम ही है, जिनको इतने वर्षों पश्चात भी देश ने श्रद्धाभाव से स्मृत रखा है। सामान्य परिवार में जन्म और अल्पायु में विवाह के बाद विधवा हुई, अहिल्याबाई ने लगभग 30 वर्ष तक शासन किया। उन्होंने अपने राज्य  के बाहर भी  विभिन्न तीर्थस्थानों पर निर्माण कराये, जो आज भी मौजूद है। अहिल्याबाई का जन्म 31…
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कांकरवा (मेवाड़) में जन्में थे, योगी आदित्यनाथ के दादा गुरु महंत दिग्विजयनाथ महाराज

कांकरवा (मेवाड़) में जन्में थे, योगी आदित्यनाथ के दादा गुरु महंत दिग्विजयनाथ महाराज

न्य धरा मेवाड़....... ◆जन्मदिन वैशाखी पूर्णिमा (इस वर्ष 12 मई 2025 ) पर विशेष  गोरखपुर के गोरखनाथमन्दिर को दशकों से देश में हिन्दुत्‍व की राजनीति का केन्द्र माना जाता रहा है। चर्चित व प्रसिद्ध गोरक्षनाथ पीठ पर मेवाड़ के महाराणा प्रताप के भाई के वंश में जन्मे एक योगी भी महन्त पद को सुशोभित कर चुके हैं। गोरखनाथ सम्प्रदाय के महन्त दिग्विजयनाथ महाराज ने ही इस मन्दिर को हिन्दुत्व की राजनीति का केन्द्र बनाया था। असाधारण प्रचण्ड व्यक्तित्व, ओज, तेजस्विता का सजीव श्रीविग्रह, गौर वर्ण, मोहक आकर्षक व्यक्तित्व, दक्षता और सत्यावृत्त निष्ठा के प्रतीक, लम्बा और विशाल शरीर, सुडौल तथा…
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आज भी प्रासंगिक हैं बाबा साहेब के विचार — प्रो. (डॉ.) मनोज कुमार बहरवाल

आज भी प्रासंगिक हैं बाबा साहेब के विचार — प्रो. (डॉ.) मनोज कुमार बहरवाल

शिक्षा शेरनी का दूध है, जो पियेगा दहाड़ेगा, ज्ञान जहां न हो सके, जीवन वहीं उजाड़ेगा... आज 14 अप्रैल है — भारतीय संविधान के शिल्पी, समाज सुधारक और विचार क्रांतिकारी बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर की जन्म जयंती। इस दिन को मैं व्यक्तिगत रूप से केवल एक स्मृति नहीं, बल्कि एक प्रेरणादायक यात्रा के रूप में देखता हूं। उनके विचारों की लौ आज भी हमें दिशा देती है। बाबा साहेब का जीवन इस बात का प्रतीक है कि कैसे कठिन संघर्ष, अद्वितीय विद्वता और व्यापक दृष्टिकोण के बल पर कोई साधारण व्यक्ति महामानव बन सकता है। वे न केवल दलितों…
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राजनीति के ऋषि – सुंदरसिंह भंडारी

राजनीति के ऋषि – सुंदरसिंह भंडारी

 (जयन्ती 12 अप्रैल पर विशेष आलेख)  राजनीति के क्षैत्र में सुन्दर सिंह जी भण्डारी ऐसा व्यक्तित्व है, जिसने अपने निजी जीवन में कठोर अनुशासन, सरलता, सहिष्णुता, सहनशीलता व मितव्ययिता को संजोकर कार्यकर्ताओं के सामने एक आदर्श प्रस्तुत किया। उनकी कार्यशैली भले ही कठोर थी, लेकिन उनका व्यवहार स्नेहिल व पथ प्रदर्शक रहा। मैं संगठन के उन कार्यकर्ताओं में सम्मिलित हुॅ, जिन्हें भण्डारी जी के संगठन कुशलता, लोकसंग्रहवृति, वैचारिक और सैद्धान्तिक दृढता को प्रत्यक्षतः अनुभव करने का अवसर मिला। उदयपुर में डाॅ. सुजान सिंह जी भण्डारी के घर में 12 अप्रेल 1921 माॅं फूल कुंवर जी के कोख से बालक सुन्दर…
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नारायण लाल शर्मा को अश्रुपूरित अंतिम विदाई

नारायण लाल शर्मा को अश्रुपूरित अंतिम विदाई

उदयपुर, 8 अप्रेल। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व जिला कार्यवाह, यूआई टी के पूर्व न्यासी, इतिहासकार, शिक्षाविद्,  लेखक  नारायण लाल शर्मा को आज उनके परिजनों, मित्रों, शुभचिंतकों, संघ व भाजपा पदाधिकारियों ने आज अश्रुपूरित नेत्रों से अंतिम विदाई दी। 84 वर्षीय शर्मा का निधन मंगलवार को प्रातः हो गया था, वे विगत दिनों से अस्वस्थ थे  संघ के तृतीय वर्ष शिक्षित स्वयंसेवक होने के साथ वे अनेक वर्षों तक संघ शिक्षा वर्गों में बौद्धिक विभाग प्रमुख रहे। 1962 से 1966 तक कोटपुतली राजकीय महाविद्यालय में प्राध्यापक थे, उस समय डॉ. महेश चन्द्र जी शर्मा(जो बाद में सांसद् व भाजपा के…
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उत्पल दत्त: हंसी और गंभीरता के रंगमंच के अनोखे कलाकार

उत्पल दत्त: हंसी और गंभीरता के रंगमंच के अनोखे कलाकार

उदयपुर: बचपन में टीवी पर एक फ़िल्म देखी थी, जिसमें अपनी मूंछो से प्यार करने वाले एक अभिनेता बार—बार एक डायलॉग बोलते हैं.....अच्छाआ.... जितनी बार भी वे ये संवाद बोलते उतनी ही बार दर्शकों को गुदगुदा जाते। उनके प्रशंसकों को शायद याद आ गया होगी कि हम मशहूर अभिनेता उत्पल दत्त साहब की बात कर रहें हैं। जिनके फिल्म गोलमाल में बोले गए हास्य संवादों में 'अच्छाआ....' कहना उनका ट्रेडमार्क बन गया था.....और उस जमाने में ये संवाद इतना प्रसिद्ध हुआ कि आज भी इसे मिमिक्री आर्टिस्ट अपनी परफॉर्मेंस में इस्तेमाल करते हैं। 29 मार्च 1929 को उस वक्त के…
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संघ मंत्र के जनक: डॉ हेडगेवार

संघ मंत्र के जनक: डॉ हेडगेवार

जन्मतिथि चैत्र शुक्ला प्रतिपदा (इस वर्ष 30 मार्च) पर विशेष :- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नाम देश की जनता के लिये अब अपरिचित नहीं है, देश के प्रधानमंत्री सहित विभिन्न विशिष्ट पदों पर आसीन व्यक्ति गर्व के साथ संघ से अपने सम्बन्धों को स्वीकार करते है। संघरूपी पौधा अपने एक सौ वर्षों के इतिहास के साथ अब विश्वपटल पर आज वटवृक्ष के रूप में अपना स्थान सुनिश्चित कर चुका है। संघ आज विश्व के सबसे बडा स्वयंसेवी संगठन हैं, आज विश्वभर में संघ की अपनी पहचान है, लेकिन एक शताब्दी पूर्व इस वटवृक्ष का बीजारोपण करने वाले संघ संस्थापक के…
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शिवकिशोर सनाढ्य : शिक्षक व कर्मचारी हितों का प्रखर स्वर

शिवकिशोर सनाढ्य : शिक्षक व कर्मचारी हितों का प्रखर स्वर

जन्म दिवस (24 मार्च) पर विशेष  राजस्थान ही नहीं देश के प्रमुख शिक्षक व कर्मचारी नेताओं में एक प्रमुख नाम है- शिवकिशोर सनाढ्य । एक कुशल संगठक, जनप्रिय राजनेता, सतत् प्रवासी, दक्ष शिक्षक, कर्मठ व शुचितापूर्ण सार्वजनिक जीवन जीने वाले शिवकिशोर सनाढ्य ने अपनी अलग पहचान बनाई। 24 मार्च 1935 को मथुरा (उत्तर प्रदेश) में पिता पं. ज्योतिप्रसाद व माता रामश्री के आंगन में बालक का जन्म हुआ। मात्र आठ वर्ष की आयु में माताजी का निधन होने के पश्चात बहिन किरण व बहनोई बिहारीलाल के साथ वे उदयपुर आये और फिर मेवाड़ व पूरा राजस्थान उनका कार्यक्षेत्र हो गया।…
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कहां खो गई है हमारे घरों की शान… नन्हीं चिड़िया ?

कहां खो गई है हमारे घरों की शान… नन्हीं चिड़िया ?

विश्व गोरैया दिवस (20 मार्च) पर प्रकाशनार्थ विशेष आलेख -डॉ. कमलेश शर्मा चीं-चीं कर आती और घर-आंगन में फुदकती... नन्हीं सी चिड़िया...जो कभी घरों की शान थी। कच्चे घरों की खपरैल के बीच, दिवार की दरारों, तस्वीरों के पीछे, गर्डर के कोनों, टीन-टप्परों व छज्जों के नीचे तथा छत पर पानी के नालदों में तिनकों से बनाये हुए इनके घौंसले देखे जाते थे। इनकी चहचहाहट से वीरान घर भी आबाद और जीवंत होते रहते थे। इसी नन्हीं चिड़िया को दाना-पानी देकर देखभाल करते घर के छोटे बच्चों से लेकर बूढ़े हाथ कभी भी थकते नहीं थे। प्राचीन काल से ही…
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