उदयपुर, 20 अक्टूबर , हाल ही में आए नए पानी व चादर चलने, ओवरफ्लो से हुई फ्लशिंग के बावजूद झील जल का काला, मैला दिखना चिंता में डालता है। रविवार को भीम परमेश्वर घाट पर हुए झील संवाद में इस पर चिंता व्यक्त करते हुए “स्वच्छ झील -पवित्र झील” विषय पर गहन विचार विमर्श किया गया। संवाद में कई झील प्रेमियों ने भाग लिया।
समिधा संस्थान के अध्यक्ष चंद्रगुप्त सिंह चौहान ने कहा कि मंदिर युक्त झील घाटों को धूम्रपान,नशे , अपसंस्कृति व गंदगी से मुक्त रखना बहुत जरूरी है। स्वैच्छिकता, सेवा भाव व प्रत्येक स्तर पर कर्तव्य पालन से ही झीलें स्वच्छ व पवित्र रह सकेगी।
झील संरक्षण समिति के डॉ अनिल मेहता ने कहा कि झील सतह का काला, मैला रंग टैनिन्स जैसे जटिल कार्बनिक यौगिकों और घुलित कार्बनिक कार्बन( डिजॉल्व्ड ऑर्गेनिक कार्बन) के कारण है। ये पदार्थ जलीय खरपतवार के अपघटन तथा पतियों, टहनियों के सड़ने से बन रहे हैं और पानी को रंग दे रहे हैं। झील स्वास्थ्य व पेयजल गुणवत्ता की दृष्टि से यह ठीक नहीं हैं।
झील विकास प्राधिकरण के पूर्व सदस्य तेज शंकर पालीवाल ने कहा कि जल ग्रहण क्षेत्र में हुए जंगल विनाश, पहाड़ों की कटाई तथा बढ़ती होटल रिजॉर्ट व्यावसायिक गतिविधियों के कारण बरसाती पानी प्रवाह के साथ गाद, सिल्ट, गंदगी झीलों तक पहुंच उन्हें मैला बना रही है। यह चिंताजनक है।
गांधी मानव कल्याण सोसायटी के निदेशक नंद किशोर शर्मा ने कहा कि झीलों में गंदगी विसर्जन, सिवरेज रिसाव से जलीय खरपतवार को पोषक तत्व मिल रहे हैं और उनकी बेतहाशा वृद्धि हो रही है। खरपतवार के सड़ने से बदबूदार स्थितियां व मैलापन पैदा हो रहे हैं ।
पर्यावरण प्रेमी द्रुपद सिंह, मोहन सिंह चौहान, सरदार खान, सुरेश सिंह ने कहा कि बरसात पूर्व सीसारमा नदी सहित सभी जल आवक नालों को कचरा, गंदगी मुक्त नही करने से झीलों में भारी मात्रा में कचरा पहुंचा है , वहीं झील घाटों,किनारों से भी झीलों में गंदगी विसर्जन हो रहा है। यह जनस्वास्थ्य के लिए संकट है।