कहानी कहने की मौखिक परंपरा का जश्न के साथ तीन दिवसीय स्टोरी टेलिंग फेस्टिवल सम्पन्न

डिजिटल दौर में किस्सागोई जैसी कहानी कहने की कला लोगों को पसंद आई
उदयपुर, 12 जनवरी। कोस-कोस पर पानी बदले, चार कोस पर वाणी, ये कहावत हम बरसो से सुनते आ रहे हैं जो भारत की की विविधता को दर्शाता है। इस विविधता का एक खुबसूरत हिस्सा हमें किस्सों और कहानियों में भी देखने को मिलती है, जो सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी हमारे बीच है। इसमें कहीं हसी ठहाकों का पुट है तो कहीं गंभीरता के साथ नपे तुले शब्दों में कही गई वास्तविक घटना, यह कही तो सीख देती है तो कहीं कानो में रस घोलते थे। मगर अब ये विधा धीरे धीरे विलुप्त हो रही है, इसे फिर पुर्नजीवित करने की जरूरत है।
छोटे से प्रयास के साथ शुरू हुआ मां माय एंकर फाउण्डेशन द्वारा स्थापित उदयपुर टेल्स की ओर से आयोजित उदयपुर स्टोरीटेलिंग फेस्टिवल आज अपना छठा संस्करण आज कहानी कहने की मौखिक परम्परा के जश्न के साथ सम्पन्न हुआ। यह कहानी कहने की सदियों पुरानी कला को पुनर्जीवित कर रहा है। इसमें विभिन्न पृष्ठभूमि के कथाकार, लेखक और उत्साही लोग एक साथ आते हैं। हर दो साल में एक बार आयोजित होने वाले इस उत्सव में आकर्षक सत्र होते हैं जो हमारी समृद्ध सांस्कृतिक, कहानी कहने की शैली और विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं।
इस तीन दिवसीय महोत्सव में देश के साथ ही विदेशी कहानीकार सम्मिलित हुए। इन सभी कहानीकारों ने अपनी-अपनी शैली में कहानिया सुनाई। इन तीन दिनों में बच्चों को प्रोत्साहित करने वाली कहानी के साथ-साथ लोक गीत, लोक कथा, व्यक्तिगत अनुभव की कहानी और जुमलेबाज़ी को प्रस्तुत किया गया।
इस फेस्टिवल में प्रतिदिन स्टोरीटेलिंग की शुरुआत बच्चों को कहानी सुनाने के साथ होती थी। ये मुख्या रूप से प्रतिदिन 3 कालखंड में सुबह, दोपहर और शाम में कहानिगंज और जमघट में शीर्षकों के तहत आयोजित किया गया।
इसके साथ ही देख पाने में अक्षम बच्चों के लिए वर्कशॉप आयोजित किया गया जिसमें उन्होंने चीजों को छूकर और महसूस कर कहानी कहने की कला सीखा।
रविवार को अंतिम दिन कहानीगंज नामक कार्यक्रम में प्रियंका चटर्जी,कहानीवाला रजत,नेहा बहुगुणा,श्वेता नाडकर्णी श्रेया पालीवाल,जमघट में एडल्ट स्टोरी टेलिंग,निहारिका एवं हांगकांग की रशेल वर्कशॉप,कारवां भारत,शाम को कहानीगंज में जुलियाना मारिन, फोजिया दास्तानगो,मकरंद देशपाण्डे एवं समीर राहत कहानियंा प्रस्तुत की।
पहले सत्र कहानीगंज की प्रस्तुतियों ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। प्रियंका चटर्जी की मंकी टेम्पल की पौराणिक कथा, जिसमें प्रेम, गलतफहमियां और शाही षड्यंत्र का अनूठा संगम दिखा।
कहानीवाला रजत की हास्य और पर्यावरण जागरूकता से भरपूर मछली जल की रानी है की पुनर्कल्पित कहानी, जिसमें जल और पर्यावरण से प्रेम का संदेश था। इसके साथ ही एक मार्मिक कहानी पेश की गई, जहां एक पठान सुल्तान ने सामाजिक बंधनों को तोड़ते हुए एक किसान की बेटी से प्रेम किया।
कहानीवाला रजत ने अपनी कहानी में मालवा के राजा बाघ बहादुर व रूपमति की प्रेम कहानी को दर्शाया के प्रेम को दर्शाया। अकबर ने मालवा पर आक्रमण किया तो रानी रूपमति ने अकबर के हाथों में आने से पहले ही जहर खा लिया और बाघ बहादुर राजा अकबर से लड़ते हुए वीर गति को प्राप्त हुए,दोनों मर जाते है लेकिन कहानी चलती रहती हैं।
नेहा भगुना की समकालीन लोक-कथा, जो उनके उत्तराखंड के बचपन, उनके दादा के ज्ञान और डिज़ाइनर से कहानीकार बनने की उनकी यात्रा पर आधारित थी। श्वेता नाटकरनी की प्रस्तुति में शेक्सपियर के रोमियो और जूलियट को नई दृष्टि से पेश किया गया। इसमें प्रेम और संगीत को ये रात ये मौसम नदी का किनारा की मधुर प्रस्तुति के साथ जोड़ा गया। श्रेया पालीवाल और प्रसिद्ध राजस्थानी संगीतकारों द्वारा लोक संगीत और फ्यूज़न नृत्य का रंगारंग प्रदर्शन, जिसने राजस्थान की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को जीवन्त कर दिया।
महोत्सव के अंतिम दिन ने दर्शकों को कहानियों, संगीत और सांस्कृतिक जीवंतता से भरी शाम का अनुभव कराया। उदयपुर टेल्स 2025 ने कहानी कहने की शक्ति और विविधता का उत्सव मनाते हुए, प्रतिभागियों और दर्शकों पर गहरी छाप छोड़ी है।
सह-संस्थापक सुष्मिता सिंघा ने बताया कि उदयपुर टेल्स कहानी कहने की कला का जश्न मनाने के लिए विविध आवाज़ों को एकजुट करता है। सलिल भंडारी ने बताया कि कहानियों और संगीत के माध्यम से, हमारा उद्देश्य पीढ़ियों में रचनात्मकता और संबंधों को प्रेरित करना है। यह उत्सव परंपरा और नवाचार के अपने मिश्रण से दर्शकों को मंत्रमुग्ध करना जारी रखेगा।

By Udaipurviews

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