हमारी सोच ही हमे अमीर-गरीब बनाती है : आचार्य कुशाग्रनंदी 

– अष्ठमी पर 108 कलशों से मूलनायक भगवान पद्मप्रभु का पंचामृत 

– शाम को भजन संध्या एवं आरती हुई 

उदयपुर, 21 जुलाई। पायड़ा स्थित पद्मप्रभु दिगम्बर जैन मंदिर में देवश्रमण आचार्य कुशाग्रनंदी महाराज, मुनि अजयदेव व भट्टारक देवेंद्र विजय संघ के सानिध्य में गुरुवार को अष्ठमी के अवसर पर विशेष आयोजन हुए। मंदिर में सैकड़ों श्राकव-श्रविकाओं ने नित्य नियम पूजा, शांतिधारा, जलाभिषेक व सामायिक किया। प्रचार संयोजक संजय गुडलिया एवं दीपक चिबोडिया ने बताया कि श्रावकों द्वारा अष्ठमी पर 108 कलशों से मूलनायक भगवान पद्मप्रभु का पंचामृत से महाअभिषेक किया गया। 

प्रवक्ता प्रवीण सकरावत ने बताया कि इस दौरान आयोजित धर्मसभा में आचार्य कुशाग्रनंदी महाराज ने कहा कि जिंदगी में बहुत मौके मिलते है जब हम छोटे होते हुए बड़े हो सकते है। हमारी सोच ही हमे अमीर-गरीब बनाती है। अच्छे कार्य करेंगे तो शुभ नामकर्म का बंध होगा। छोटे-छोटे कार्यो के माध्यम से हमे जिंदगी कई बार बड़ा बनने का अवसर देती है लेकिन हम कई बार उन मौकों को पहचान नहीं पाने से छोड़ देते है। हम चाहते यश है ओर मिलता अपयश है। जो नहीं चाहते वह गले पड़ जाना लाइफ की ट्रेजडी है। किसी को खुश करना चाहते ओर नाराज हो जाता है। ये सभी की जिंदगी में होता है। मन, वचन व काया में सामांजस्य नहीं होने से अशुभ नामकर्म का बंध होता है। उन्होंने कहा कि ऐसे यशस्वी बनों कि हम नहीं पहुंचे उससे पहले हमारा यश व ख्याति वहां तक पहुंच जाए। इसके लिए मन,वचन व काया की सरलता जरूरी है। ऐसा होने पर व्यक्ति बिना किए ही यश में भागीदार हो जाता है। सिर्फ दयामय धर्म ही सारे दु:खों का खात्मा कर सकता है जिसमें सत्य, अहिंसा व संयम का समावेश होता है। 

भट्टारक देवेंद्र विजय ने कहा कि कई बार ये देख मन विचलित हो जाता है कि हमारी अच्छाई दूसरा लेकर चला गया। हमारा जश दूसरों के खाते में क्यों चला जाता है। सेवा हमने की नाम किसी ओर का हो गया। बनाया आपने ओर जीम कोई और गया।  कहा कि अच्छा काम में कर रहा ओर प्रशंसा किसी ओर की हो रही ऐसी सोच कभी मत लाना। ऐसी सोच आती है तो भविष्य में तंदुलमच्छ बनने की तैयारी है। काम हम करें और नाम किसी ओर का हो तो अपनी सोच को मत बिगडऩे देना। यहां सामने वाले को मिल रहा है तो कोई कारण तो होगा। बिना कारण कोई कार्य होता नहीं है। उन्होंने कहा कि यश-अपयश मिलना नाम कर्म का भेद है। यदि अपयश नामकर्म का उदय है तो घर वालों की कितनी भी सेवा कर लेना कभी प्रशंसा नहीं होगी। ऐसे समय दूसरों के प्रति दुर्भावना लाने की बजाय ये चिंतन करे कि मेरा अपयश नामकर्म उदय चल रहा है। अशुभ नामकर्म का उदय है तो सिर्फ अपयश ही मिलेगा। उन्होंने कहा कि हमारे मन,वचन व काय अच्छे नहीं होंगे तो अशुभ नामकर्म का बंध होता है।  

By Udaipurviews

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