परिवर्तनशील समुदायों में संग्रहालयों का भविष्य विषय पर व्याख्यानमाला का हुआ आयोजन
भारतीय ज्ञान पम्परा को भावी पीढ़ी में रूपांतरित करने की जरूरत – प्रो. सारंगदेवोत
उदयपुर 20 जून / विश्व संग्रहालय दिवस पर भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण विभाग की ओर से आयोजित पांच दिवसीय समारेाह का समापन संस्थान के सभागार में सम्पन्न हुआ। समापन सत्र में परिवर्तनशील समुदायों में संग्रहालयों का भविष्य विषय पर आयोजित व्याख्यानमाला में मुख्य अतिथि राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय के कुलपति कर्नल प्रो. शिवसिंह सारंगदेवोत ने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा, हमारी धरोहर एवं विरासत विश्व में अद्भूत है इसके संरक्षण व भावी पीढ़ी में रूपांतरित करने की जरूरत है। संग्रहालय हमें अतीत को समझने का मौका देता है। तकनीक के युग में युवा इससे दूर होता जा रहा है। आधुनिकता के दौर मे ंहम अपनी विरासत को समाप्त करते जा रहा है। नयी शिक्षा नीति में भारतीय ज्ञान परम्परा को महत्व दिया गया है। उन्होंने कहा कि महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी, मीराबाई, रानी लक्ष्मी ऐसे नाम है जिन पर हमें गर्व होता है , हमारे पुराधाओं से भावी पीढ़ी को सिखाने के लिए बहुत बड़ा इतिहास है
प्रारंभ में कार्यालय प्रमुख डॉ. निलांजन खटुआ ने अतिथियों स्वागत किया। सहायक संग्रहालय पालक सुदिपा ने पांच दिवसीय समारोह की जानकारी देते हुए बताया कि अंतिम दिन की शुरुआत स्कूली बच्चों के लिए आयोजित रंग-बिरंगी चित्रकला एवं चित्रांकन प्रतियोगिता से हुई। भारत के रंग और मेरे सपनों का संग्रहालय विषयों पर आधारित इस प्रतियोगिता में प्रतिभागियों ने अपनी कल्पनाओं को कागज पर जीवंत कर दिया। बच्चों ने विविध रंगों और अनोखे दृष्टिकोणों से अपनी भावनाएँ अभिव्यक्त कीं, जिससे आयोजन स्थल एक जीवंत रंगमंच में परिवर्तित हो गया।
समारोह में डा. जय प्रकाश शाकद्वीपीय ने लोकनट एवं नटों की अद्भुत परंपरा पर आलेख प्रस्तुत किया। इस अवसर पर अतिथियों द्वारा भावार्थ शाकद्वीपीय द्वारा लिखीत कविता पुस्तक ट्रंक्युल (ज्तंदुनपस) का विमोचन किया गया।
प्रथम सत्र में विशेष अतिथि के रूप में डॉ. पारस जैन ने संग्रहालय की आर्थिक विकास में भूमिका विषय पर एक प्रेरणादायक व्याख्यान दिया। अपने व्याख्यान में प्रो. पारस जैन ने संग्रहालय की परिभाषा के साथ- साथ उसकी आर्थिक विकास में भूमिका पर अपना प्रस्तुतीकरण दिया। डॉ. जैन ने संग्रहालयों की सामाजिक एवं आर्थिक उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए बताया कि किस प्रकार संग्रहालय पर्यटन, शिक्षा और स्थानीय रोजगार के माध्यम से आर्थिक प्रगति में योगदान करते हैं। व्याख्यान के उपरांत, लोक कला मंडल, उदयपुर एवं स्थानीय कलाकारों द्वारा पारंपरिक कठपुतली कला का प्रदर्शन एवं कठपुतली बनाना सिखाया गया। इस प्रदर्शन ने दर्शकों को राजस्थान की समृद्ध लोक कला से परिचित कराया। कलाकारों की अद्भुत प्रस्तुति और भाव-भंगिमाओं ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। दर्शकों ने करतल ध्वनि से कलाकारों का उत्साहवर्धन किया और इस विलुप्त होती कला को जीवंत रखने के प्रयासों की सराहना की। कार्यक्रम का उद्देश्य न केवल बच्चों में रचनात्मकता को प्रोत्साहित करना था, बल्कि पारंपरिक लोक कलाओं एवं संग्रहालयों की महत्ता को समाज के समक्ष प्रस्तुत करना भी था।
भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण के निदेशक प्रो. बी. वी. शर्मा जी ने ऑनलाइन मीटिंग के द्वारा कार्यक्रम की सफलता पर सभी को बधाई दी ।