उदयपुर: बचपन में टीवी पर एक फ़िल्म देखी थी, जिसमें अपनी मूंछो से प्यार करने वाले एक अभिनेता बार—बार एक डायलॉग बोलते हैं…..अच्छाआ…. जितनी बार भी वे ये संवाद बोलते उतनी ही बार दर्शकों को गुदगुदा जाते। उनके प्रशंसकों को शायद याद आ गया होगी कि हम मशहूर अभिनेता उत्पल दत्त साहब की बात कर रहें हैं। जिनके फिल्म गोलमाल में बोले गए हास्य संवादों में ‘अच्छाआ….’ कहना उनका ट्रेडमार्क बन गया था…..और उस जमाने में ये संवाद इतना प्रसिद्ध हुआ कि आज भी इसे मिमिक्री आर्टिस्ट अपनी परफॉर्मेंस में इस्तेमाल करते हैं। 29 मार्च 1929 को उस वक्त के पूर्वी बंगाल और आज के बांग्लादेश के बारीसाल में जन्मे उत्पल दत्त न केवल एक बेहतरीन अभिनेता थे, बल्कि कुशल निर्देशक और नाटककार भी थे।
अंग्रेज़ी थिएटर से अपने करियर की शुरुआत करने वाले उत्पल दत्त को शेक्सपियर के नाटकों में शानदार प्रदर्शन के लिए अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली। सत्यजीत रे की फ़िल्म भुवन शोम (1969) में उनकी भूमिका ने उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार दिलाया। हालांकि उन्हें सबसे अधिक लोकप्रियता हास्य किरदारों से मिली। गोलमाल (1979) में भवानी शंकर की भूमिका आज भी लोगों के चेहरे पर मुस्कान ला देती है। उनकी अन्य प्रमुख हास्य फ़िल्में गुड्डी, नरम-गरम, रंग बिरंगी और शौकीन हैं।
उत्पल दत्त नाटक और सिनेमा के अलावा अपनी राजनीतिक विचारधारा के लिए भी जाने जाते थे। वे मार्क्सवादी विचारधारा के समर्थक थे और उनके क्रांतिकारी नाटकों के कारण उन्हें 1965 में जेल भी जाना पड़ा। इसके बावजूद उन्होंने अपने सामाजिक और राजनीतिक विचारों को कभी नहीं छोड़ा।
आज के युवा अभिनेताओं के लिए उत्पल दत्त की ज़िंदगी एक प्रेरणा है। उनके द्वारा अभिनीत फिल्मों ने दुनिया को बताया कि अभिनय केवल एक कला नहीं, बल्कि समाज को नई दिशा देने का माध्यम भी हो सकता है। आज उनके जन्मदिन पर उनके चाहने वाले भारतीय सिनेमा और थिएटर में उनके योगदान के लिए उनको नमन करते हैं।
ओमपाल,
फ़िल्म पत्रकार एवं समीक्षक।