पर्युषण पर्व का सातवंा दिन समता दिवस के रूप में मनाया

समता भाव धारण करने के लिए सबसे पहले काम, क्रोध, लोभ मोह माया सहित विभिन्न कषायो को खत्म करना होगाःसुकनमुनि
उदयपुर। श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रमण संघ की ओर से सिंधी बाजार स्थित पंचायती नोहरे में श्रमण संघीय प्रवर्तक सुकन मुनी जी महाराज के सानिध्य में पर्यूषण महापर्व का सातवां दिन समता दिवस के रूप में मनाया। महामंत्री एडवोकेट रोशन लाल जैन एवं सह मंत्री दिनेश हिंगड़ ने बताया कि पर्यूषण महापर्व के सातवें दिन बरसात के बावजूद बड़ी संख्या में श्रद्धालु पंचायती नोहरे में पहुंचे और सुकन मुनि महाराज से आशीर्वाद लिया। धर्म सभा में श्राविका संघ, युवक परिषद एवं जैन कांफ्रेंस के पदाधिकारियों एवं श्रावकों ने सालभर में मन वचन कर्म से हुई किसी भी भूल-चूक एवं गलती के लिए खामतखामणा एवं मिच्छामी दुक्कडम  बोलकर क्षमा याचना की। जैन ने बताया कि धर्मसभा में डाक्टर शिवमुनि जी महाराज एवं अमरीश मुनीश्री की जन्म जयंती मनाई एवं उनका गुणगान किया।
धर्म सभा में समता दिवस पर अपने प्रवचन में सुकनमुनि महाराज ने उपस्थित श्रावकों से कहा कि जीवन में समता भाव से बढ़कर कुछ भी नहीं है। जिसमें समता का भाव है उसका ही जीवन सफल है। समता भाव धारण करने के लिए सबसे पहले काम, क्रोध, लोभ मोह माया और विभिन्न कषायो को खत्म करना पड़ेगा। जब तक यह खत्म नहीं होंगे तब तक व्यक्ति के मन में समता भाव उत्पन्न नहीं हो पाएगा। जब भी मन में क्रोध का भाव आए अपने मन में समता भाव धारण करने का प्रयत्न करो। समता शब्द का उल्टा तामस होता है। हमें इससे दूर रहकर जीवन के हर क्षेत्र में समता धारण कर देश समाज परिवार को सुखमयी और उच्च कोटि का बनाने का प्रयास करना चाहिए।
मुनीश्री मैं कहां की समता भाव सिर्फ धारण करने से ही काम नहीं चलेगा समता भाव को अपनी आत्मा में उतरना पड़ेगा। जब तक अपनी आत्मा में समता नहीं बसेगी तब तक जीवन में समता भाव धारण नहीं हो पाएगा। बिना समता भाव के कोई भी धर्म साधना सफल नहीं होती है। जब अपनी आत्मा में समता भाव स्थापित हो जाएगा तो जीवन में केवल शांति और सुख के अलावा कोई भी कषाय का स्थान नहीं रहेगा। उन्होंने सभी श्रावकों कों सामायिक करने का आह्वान करते हुए कहा कि सामयिक का मतलब समता का जागरण होता है। सामयिक से ही समता मिलती है।
मुनिश्री ने कहा कि अपने परिवार में जितने भी सदस्य होते हैं सभी का स्वभाव अलग-अलग होता है। कई बार समता भाव के अभाव में परिवार बिछड़ने की संभावना बढ़ जाती है। लेकिन अगर परिवार के मुखिया में समता का भाव है तो वह सभी को साथ लेकर चल सकता है और अपने परिवार को टूटने से बचा सकता है। उन्होंने क्रोध और कषाय से बचने का उपाय बताते हुए कहा कि जब भी आपके मन में क्रोध आए, कषाय का भाव आए तो आप उस समय पांच मिनट का मौन धारण कर ले और उस जगह से पांच कदम पीछे हट जाए। ऐसा करने से अपने आप ही मन में समता का भाव आ जाएगा और परिवार पर आने वाली किसी भी परेशानी से आप बच जाएंगे। हर व्यक्ति को अपने परिवार में शुरुआत में ही क्षमता के बीज बोने चाहिए ताकि आगे चलकर वह क्षमता का बड़ा वृक्ष बने और वहां पर क्रोध और कषाय का कोई स्थान नहीं हो। जीवन में क्षमता का साम्राज्य स्थापित करने के लिए सबसे पहले अपने परिवार में अपने घर में अपने मन में समता के बीज बोने होंगे तब जाकर के ही जीवन में समता का साम्राज्य स्थापित हो पाएगा।

By Udaipurviews

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