बांसवाड़ा के तलवाड़ा में आयोजित हुआ आरएसएस का भव्य पथ संचलन

संगच्छध्वम् संवदद्धम् संवों मनांसि जानताम्, देवाभागम् यथा पूर्व संजानाना उपासते…. विकासराज
राष्ट्रभक्ति लें हृदय में हो खड़ा यह देश सारा, संकटों पर मात कर यह राष्ट्र विजयी हो हमारा… विकासराज

बांसवाड़ा, 27 अक्टूबर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, बांसवाड़ा खंड का विराट त्रिवेणी संगम पथ संचलन तलवाडा में आयोजित हुआ ।
सभी स्वयंसेवक दोपहर 2 बजे सीनियर स्कूल में एकत्रित होकर तीन अलग-अलग स्थानों में विभक्त होकर आयोजित हुआ। संचलन तीन सन डेयरी ,पावर हाउस, पुष्प वाटिका से 04:03 पर प्रारंभ हुआ और तीनों संचलन चलकर के गांधी मूर्ति एक स्थान पर 04:22 पर विराट संगम हुआ।
इसमे 4 पंक्तिया तीन स्थानों से एक साथ चलकर आई व 12 पंक्तियों में संगम के साथ चलकर पथ संचलन किया।
तलवाड़ा कस्बे में पथ संचलन का 45 स्थानों पर पुष्पवर्षा व नारे लगाकर उपस्थित जन मेदिनी ने स्वागत किया।
स्वागत के लिए पूरा गाँव उमड़ पड़ा।
दृश्य देखते ही बन रहा था।
लोग छतों पर खड़े होकर पुष्प वर्षा कर रहे थे।
यह वागड़ का पहला सबसे बड़ा एक खण्ड का विराट पथ संचलन निकला।
एवं सभी गांवों से देखने वाले 5000 से अधिक लोग व मातृशक्ति सम्मिलित हुई।

इसमें तलवाडा खण्ड के सभी 114 गांवों के 1750 से अधिक स्वयंसेवको ने कदम ताल व घोष के साथ भाग लिया एवं समापन पुनः सीनियर स्कूल में बौद्धिक व उद्धबोधन के साथ समापन हुआ।
समापन कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पूज्य संत श्री विद्यासागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य संत शिरोमणि 108 श्री अजित सागर जी महाराज रहे।
विशिष्ट अतिथि 108 संत श्री 108 निराग सागर जी महाराज, 105 संत श्री विवेकानंद सागर जी महाराज रहे।
मुख्यवक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विभाग प्रचारक विकासराज थे।उन्होंने अवतरण एवं काव्यगीत के उपरान्त उपस्थित स्वयंसेवकों व जनसमूह को संबोधित करते हुए कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक सामाजिक संगठन है…
99 वर्षो की साधना के साथ संघ 100 वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है।
संघ की यह यात्रा संघर्षों के साथ रही है,तीन बार संघ पर प्रतिबंध भी लगाएं, परन्तु पवित्र ध्येय के साथ यह धारा अविचल बढ़ती रही।आज भी समय चुनौतियों से भरा हुआ है,किन्तु दृढ़ प्रतिज्ञ स्वयंसेवक अपनी भारत माता के लिए निशिदिन समय के समर्पण के साथ समाज की सेवा में रत हो कर कार्य कर रहे हैं।
इसी का परिणाम है,आज विश्व पटल पर संघ व्याप बढ़ता जा रहा है।
इस अवसर पर उन्होंने पुण्य श्लोक रानी अहिल्याबाई होल्कर की 300 वीं जन्म जयंती वर्ष पर उनके कृतित्व का तथा भगवान बिरसा मुंडा के 150 वें जन्म जयंती वर्ष पर स्मरण करते हुई उन्हें ऐतिहासिक महत्व को बताया।
उन्होंने बताया इस वर्ष संघ ने देश के नागरिकों से पांच कर्तव्यों का आग्रह किया है ।
1.नागरिक कर्तव्य :- प्रत्येक नागरिक को अपने कर्तव्य को समझाना पड़ेगा।सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा से लगाकर सरकार द्वारा तय,संविधान सम्मत नियमों का पालन व्यवहार में आना चाहिए।
इसके लिए किसी के द्वारा रोक- टोक जाने पर नियम पालन करने की अपेक्षा मन से नियम पालन करना, यह व्यवहार सामान्य नागरिक का होना चाहिए।
2. पर्यावरण संरक्षण :– इस धरती को,प्रकृति को सुव्यवस्थित रूप से चलाना है,मनुष्य को और सभी प्राणियों को जीवन जीना है तो प्रकृति के साथ सामंजस्य अति आवश्यक है।
प्रकृति माँ है,हमने अगर उसका संरक्षण किया तो वह हमें पुत्रवत संभालेगी।
वर्तमान में पर्यावरण प्रदूषण,ग्लोबल वार्मिंग,ओजोन में छेद आदि
जिससे तापमान बदल रहा है,ऋतु चक्र में परिवर्तन आ रहे है, मौसम बदल रहा है। इन सब को नियंत्रित करने के लिए हमें कुछ कदम उठाने होंगे जैसे वर्षा काल में वृक्षारोपण, वर्षा के पानी को संरक्षण करने के लिए वाटर हार्वेस्टिंग,बिजली बचाना एवं बिजली के उत्पादन हेतु सौर ऊर्जा का अधिकतम उपयोग।
ऐसे ही यूस एंड थ्रो एंड, वन टाइम यूस प्लास्टिक को बिल्कुल निषेध करना चाहिए। इस ऐसे कुछ कदमों के द्वारा हम पर्यावरण को सुरक्षित कर सकते हैं।
3. सामाजिक समरसता :- सामाजिक ताना-बाना ही भारत की एक अपनी विशेषता रहा है, जाति व्यवस्था बहुत बड़े समाज को संभालने के लिए एक व्यवस्था मात्र है, परंतु स्वजाति गौरव के नाम पर समाज में यह जो विघटन दिखाई दे रहा है, उसे भी रोकना होगा। अस्पृश्यता पूर्ण रूप से पाप था,पाप है, और पाप रहेगा।
अस्पृश्यता को किसी भी मायने में सही नहीं ठहराया जा सकता।
ईश्वर की बनाई सृष्टि में मनुष्य मात्र एक जाति है,शेष सब व्यवस्थाएं हैं।
ऐसा भाव रखकर समाज में सभी को जगाना और सबको साथ में लेकर चलने का एक स्वभाव समाजिक समरसता का है।उसके लिए भी समझदार लोगों को पहल करने की आवश्यकता है।
4. स्व का बोध :- यह भी बहुत महत्वपूर्ण विषय है, जब तक हमें अपने स्व के प्रति गौरव का भाव उत्पन्न नहीं होगा, तब तक हम आगे नहीं बढ़ सकते।
भारत विश्व गुरु रहा है,भारत की सहिष्णुता और वसुधैव कुटुंबकम जैसे उदात्त विचारों के कारण से संपूर्ण सृष्टि में मानव के जीवित रहने के लिए इन भारतीय विचारों का स्थापित होना अति आवश्यक है ,परंतु कालांतर में देश में ऐसी स्थितियां- परिस्थितियों पैदा हुई, पाश्चात्य अंधानुकरण और अंग्रेजीयत के इस मोह के कारण से हमें स्व का बोध/गौरव खत्म हुआ, जब से हमने स्व बोध छोड़ा है, हमने बहुत कुछ खोया है। अतः हमें अपने स्व पर अभिमान करना होगा।
हमें आयुर्वेद पर भरोसा करना होगा ल,हमें प्रकृति की पूजा करनी ही होगी,हमें अपने पूर्वजों अपनी थातियों,अपने शास्त्रों,अपनी परंपराओं और अपनों पर निश्चित रूप से भरोसा करना ही पड़ेगा।
यह स्वाभिमान हमें आगे ले जाएगा और जैसे ही हमने स्व को छोड़ा,हम कहीं के नहीं रहेंगे।
इसलिए हमें स्व को तो अपनाना ही पड़ेगा।
5. कर्तव्य कुटुंब प्रबोधन परिवार ऐसी व्यवस्था है,जिसके कारण से भारत सनातन काल से एक सक्षम संस्कृति के रूप में खड़ा है।
विश्व की कई अन्य संस्कृतियों को हमने जन्म लेते और मरते हुए देखा है,लेकिन भारतीय सनातन संस्कृति सनातन काल से जीवित है,उसका आधार परिवार व्यवस्था है। यहां परिवार का मुखिया अपना दायित्व समझता है,परिवार को पालना यह एक सामाजिक जिम्मेदारी है,माता-पिता का पालन पोषण करना एक संतान का कर्तव्य है।संतान को श्रेष्ठ बनाना उससे आगे ले जाना उसे दिशा देना यह माता-पिता का कर्तव्य।
पति-पत्नी का रिश्ता भी ऐसा ही है यह सब बातें केवल भारतीय संस्कृति और भारतीय कुटुंब व्यवस्था में देखने को मिल सकती है,अन्य संस्कृतियों में नहीं।
जब तक भारतीय कुटुंब व्यवस्था स्थाई रूप से थी लागू थी, तब तक समाज बहुत शांत भाव से और उन्नति करता हुआ नजर आ रहा था ।
जब से एकल परिवार की व्यवस्था हुई है,तब से भारत में यह वृद्ध आश्रम और अनाथालय खुलें ।
भारत को आगे बढ़ाने के लिए आवश्यक है यह जो पांच कर्तव्य हैं।पांच कर्तव्यों का पालन हमें दुनिया में श्रेष्ठ बना सकता है।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जैन संत पूज्य श्री अजित सागर जी महाराज ने कहा कि आज समाज को जातिगत भेदों से ऊपर उठकर एक होने की आवश्यकता है।
संत और ऋषि राष्ट्र की धरोहर हैं,उनका कार्य ही समाज वो राष्ट्र को सही मार्ग दिखाना होता है।
आज की आवश्यकता है,हम सभी को एक होकर देशहित में काम करने की आवश्यकता है।
संगठित स्वरूप को ही विजयश्री मिलती है, बंटे हुए समाज को कोई भी शक्ति समाप्त कर सकती है।
अपने निज व्यवहार को सामूहिक स्वरूप में प्रकट करने का समय है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक इसमें हमारे लिए एक आदर्श है। इसे ओर अधिक बलवान,सामर्थ्यवान बनाने की आवश्यकता है।

By Udaipurviews

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