उदयपुर। मढ़ी मन मुकुंद श्री श्री 1008 दिगम्बर खुशाल भारती महाराज के सान्निध्य में उदयपुर के बलीचा स्थित बड़बड़ेश्वर महादेव मंदिर में सनातनी चातुर्मास चल रहा है
नवरात्रि स्थापना के दिवस 15 अक्तूबर को विश्व में पहली बार 54 कुण्डिय माँ बगलामुखी यज्ञ का शुभारंभ होगा। इस यज्ञ की विस्तृत जानकारी मां कामाख्या से पधारे कोलात्रंत्राचार्य मां बगलामुखी साधक आचार्य माई महाराज ने इस महायज्ञ की विस्तार जानकारी दी कहा की जहा भी मां बगलामुखी यज्ञ होते वहां सुख शांति समृद्धि से युक्त ह़ो जाता है यहा तक सता भी परिवर्तन तक भय से मुक्ति मिलती है।
मां बगलामुखी आठवीं महाविद्या हैं। मां बैसाख शुक्ल पक्ष अष्टमी मंगलवार को इनका प्रकाट्य स्थल गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में माना जाता है। ह्रिद्रा नाम के सरोवर से इनका प्रकट होना बताया जाता है। हल्दी का रंग पीला होने से इन्हें पीताम्बरा देवी भी कहते हैं। इनके कई स्वरूप हैं। इस महाविद्या की उपासना रात्रि काल में करने से विशेष सिद्धि की प्राप्ति होती है। इनके भैरव महाकाल हैं। आनंद भैरव है।
मां बगलामुखी स्तंभव शक्ति की अधिष्ठात्री हैं अर्थात यह अपने भक्तों के भय को दूर करके शत्रुओं और उनके बुरी शक्तियों का नाश करती हैं। इन्हें पीला रंग अति प्रिय है इसलिए इनके पूजन में पीले रंग की सामग्री का उपयोग सबसे ज्यादा होता है. देवी बगलामुखी का रंग स्वर्ण के समान पीला होता है अत: साधक को माता बगलामुखी की आराधना करते समय पीले वस्त्र ही धारण करना चाहिए।
देवी बगलामुखी दसमहाविद्या में आठवीं महाविद्या हैं यह स्तम्भन की देवी हैं। संपूर्ण ब्रह्मांड की शक्ति का समावेश हैं माता बगलामुखी शत्रुनाश, वाकसिद्धि, वाद विवाद में विजय धन की सुरक्षा के लिए इनकी उपासना की जाती है। इनकी उपासना से शत्रुओं का नाश होता है तथा भक्त का जीवन हर प्रकार की बाधा से मुक्त हो जाता है। बगला शब्द संस्कृत भाषा के वल्गा का अपभ्रंश है, जिसका अर्थ होता है दुलहन है अत: मां के अलौकिक सौंदर्य और स्तंभन शक्ति के कारण ही इन्हें यह नाम प्राप्त है।
बगलामुखी देवी रत्नजडित सिहासन पर विराजती हैं। वाए हाथ मे शत्रु की जिह्वा व दाहिने हाथ मे मुदगर लिए हरत्नमय रथ पर आरूढ़ हो शत्रुओं का नाश करती हैं। देवी के भक्त को तीनों लोकों में कोई नहीं हरा पाता, वह जीवन के हर क्षेत्र में सफलता पाता है पीले फूल और नारियल चढाने से देवी प्रसन्न होतीं हैं। देवी को पीली हल्दी के ढेर पर दीप-दान करें, देवी की मूर्ति पर पीला वस्त्र चढ़ाने से बड़ी से बड़ी बाधा भी नष्ट होती है, बगलामुखी देवी के मन्त्रों से दुखों का नाश होता है
बगलामुखी, जिसे बगला के नाम से भी जाना जाता है, एक हिंदू देवी है जो दस महाविद्याओं में से एक के रूप में प्रतिष्ठित है। बगलामुखी की पूजा करने से भक्तों का भ्रम और गलतफहमी दूर होती है। यह उनके जीवन को स्पष्ट नजरिया देते हैं। बगलामुखी वह देवी हैं, जो अपने उपासकों की समस्याओं को दूर करने के लिए गदा धारण करती हैं।
महाविद्या, पार्वती के दस आदि पराशक्तियों का रूप हैं। बगलामुखी, जिसे “दुश्मनों को शक्तिहीन बनाने वाली देवी” के रूप में जाना जाता है, हिंदू धर्म की दस महाविद्या की आठवीं देवी हैं। इसमें दुश्मनों को निस्तब्ध कराने और स्थिर कराने की क्षमता है। चूंकि वह सुनहरे/पीले रंग से संबंधित है, इसलिए उन्हें “पीतांबरी” के नाम से भी जाना जाता है। स्तम्बिनी देवी, जिन्हें ब्रह्मास्त्र रूपिनी के नाम से भी जाना जाता है, एक शक्तिशाली देवी हैं, जो अपने उपासकों को सहने वाली कठिनाइयों को नष्ट करने के लिए एक गदा या हथौड़े का इस्तेमाल करती हैं।
देवी बगलामुखी ब्रह्मांड की मां के सबसे शक्तिशाली रूपों में से एक हैं। बगलामुखी को उनकी असीमित क्षमताओं के कारण सद्गुणों की संरक्षक और सभी बुराईयों का नाश करने वाला माना जाता है। मां की उत्पत्ति ब्रह्मा द्वारा आराधना करने की बाद हुई थी। त्रेतायुग में मां बगलामुखी को रावण की ईष्ट देवी के रूप में भी पूजा था। रावण ने शत्रुओं का नाश कर विजय प्राप्त करने के लिए मां की पूजा की। लंका विजय के दौरान जब इस बात का पता भगवान श्रीराम को लगा तो उन्होंने भी मां बगलामुखी की आराधना की थी। द्वापर युग में पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान एक ही रात में की थी। उन्होंने कहा की मां बगलामुखी यज्ञ में सभी लोगों कों अपनी भागीदारी योगदान देने का निवेदन किया।