शिक्षा का अर्थशास्त्र’ विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ आयोजन
सामाजिक विकास में निवेश और बेहतर मानव संसाधन का निर्माण ही शिक्षा का एकमात्र पर्याय – प्रो श्रीवास्तव
2030 तक भारत ज्ञान के माध्यम से बनेगा विश्व गुरू – प्रो. सारंगदेवोत
उदयपुर 23 अक्टुबर / जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ के कुलपति सचिवालय सभागार में बुधवार को ‘ शिक्षा का अर्थशास्त्र’ विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में मुख्य वक्ता राष्ट्रीय शैक्षिक योजना एवं प्रशासन विश्वविद्यालय (नेपा) की प्रो.आरती श्रीवास्तव ने कहा कि सभी विकसित राष्ट्र केवल शिक्षा में निवेश करके ही विकसित हुए हैं, इसका आधार विमान, परमाणु, कंप्यूटर जैसी प्रौद्योगिकी और अच्छा इंफ्रास्ट्रक्चर था तथा इन सभी का मूल शिक्षा था। तकनीकी और चिकित्सा शिक्षा की मांग है, क्योंकि इनकी शिक्षा व्यवहारिक और बाजार की मांग पर आधारित है। भारतीय शिक्षा में चिकित्सा शिक्षा के अतिरिक्त अन्य सभी पाठयक्रमों में अर्थशास्त्र पढ़ाया जाता है। उन्होंने कहा कि अच्छी शिक्षा का मतलब है सामाजिक विकास में निवेश और बेहतर मानव संसाधन का निर्माण। शिक्षा एक सार्वजनिक पदार्थ है। संयुक्त राष्ट्र के एसडीजी लक्ष्यों में चौथा लक्ष्य गुणवत्तापूर्ण शिक्षा है, हालांकि अन्य सभी सौलह लक्ष्य भी केवल उचित शिक्षा द्वारा ही प्राप्त किए जा सकते हैं। उन्होंने बताया कि मानव पूंजी तथा ज्ञान की चोरी नहीं की जा सकती। उच्च शिक्षा पर अधिक बजट से बेहतर मानव पूँजी में निवेश किया जा सकता है। भारत में आर्थिक दृष्टि से असमानता घटाने में भी शिक्षा एक शक्तिशाली हथियार साबित हो सकती है। इनके अतिरिक्त राष्ट्रीय शिक्षा नीति में चार वर्षों के अनुसार कमरे व शिक्षकों की आवश्यकता है, जो कि फिलहाल महाविद्यालयों में तीन वर्ष के अनुसार ही उपलब्ध हैं।
अध्यक्षता करते हुए कर्नल प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने कहा कि शिक्षा के माध्यम से भारत 2030 तक विश्व गुरू बनेगा इसके लिए नवाचार एवं नवीन शोध करने की जरूरत है। शिक्षा का अर्थशास्त्र, शिक्षा और आर्थिक सिद्धांतों के बीच संबंधों का अध्ययन है. यह मानव व्यवहार और आर्थिक विकास के बीच संबंधों को समझने में मदद करता है। शिक्षा के अर्थशास्त्र से आर्थिक सिद्धांतों को शिक्षा के क्षेत्र में लागू करने का तरीका पता चलता है, इससे शिक्षा से जुड़े आर्थिक निवेश विकल्प बनाने में मदद मिलती है। शिक्षा के अर्थशास्त्र से मानव व्यवहार और आर्थिक विकास के बीच संबंधों को समझने में मदद मिलती है। प्रो सारंगदेवोत ने कहा कि शिक्षा के अर्थशास्त्र को अनुसंधान का एक स्वतंत्र क्षेत्र माना जाता है। थिओडोर शुल्ज़ ने 1960 के एईए बैठकों में शिक्षा के अर्थशास्त्र पर अपने अध्यक्षीय भाषण में इस बात पर ज़ोर दिया था। शुल्ज़ द्वारा संपादित किताब ‘मानव में निवेश’ को शिक्षा के अर्थशास्त्र के उदय का एक शुरुआती उदाहरण माना जाता है।
आभार परीक्षा नियंत्रक डाॅ. पारस जैन ने जताया। संचालन डाॅ.यज्ञ आमेटा ने किया। इस अवसर पर रजिस्ट्रर डाॅ. तरूण श्रीमाली, परीक्षा नियंत्रक डाॅ. पारस जैन , प्रो. सरोज गर्ग, प्रो. जीवनसिंह खरकवाल, डाॅ. अमी राठौड़, डाॅ. रचना राठौड़, परीक्षा नियंत्रक , डाॅ. लाला राम जाट, डाॅ. चन्द्रेश छतलानी, डाॅ. दिनेश श्रीमाली, गजेन्द्र सिंह, डाॅ. अमित दवे आदि उपस्थित रहे।