उदयपुर। महेश्वरी सेवा सदन तीज का चौक धानमंडी में चल रही श्री भागवत कथा के पांचवें दिन कथावाचक अनंत राम शास्त्री ने कहां कि व्यक्ति को अपने कर्मबंध का भोग यहीं पर भोगना पड़ता है। कर्मबन्धो ने तो भगवान को भी नहीं छोड़ा। उन्होंने कहा कि प्रभु श्रीराम के राज तिलक की तैयारी पूरी हो चुकी थी। तीनों लोकों के देवता आकाश मंडल में पधार चुके थे। चारों ओर आनंद मयी और मंगलमयी माहौल था। सृष्टि के सारे देवी देवता प्रभु श्री राम के राजतिलक को देखने आतुर थे। लेकिन राजतिलक के होने से पहले उन्हें बनवास का दंश झेलना पड़ा। उनका राज तिलक नहीं हुआ और प्रभु को वन गमन करना पड़ा। प्रभु श्री राम ने संसार के जीवों को बताया चाहे भगवान भी क्यों ना हो सुख-दुख पाप पुण्य यश अपयश अपने कर्मों के आधार पर संसार के जीवो को भोगना ही पड़ता है।
शास्त्री जी ने प्रसंग वश कहा कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ। पूरे ब्रह्मांड में आनंद और खुशी का माहौल चल रहा था। माता यशोदा अपने लाडले को पालने में झूला रही थी। कभी गोद में खिला रही थी। श्रीकृष्ण ठुमक ठुमक कर छोटे-छोटे पांवो से इधर-उधर महल में अठखेलियां कर रहे थे। इधर भगवान शंकर को प्रभु के जन्म का एहसास हुआ। लेकिन वह तपस्या में लीन थे। उन्होंने अपनी साधना तपस्या तोड़ी और भेष बदलकर भगवान श्री कृष्ण से मिलने पहुंचे। उनके अद्भुत स्वरूप को देखकर माता यशोदा ने उन्हें कृष्णा लाला से मिलवानें को मना कर दिया। बड़ी अनुनय विनय के बाद माता यशोदा ने भगवान शंकर की गोद में कृष्ण लाला को दिया। भक्त और भगवान के इस अनूठे मिलन को देखकर सारी सृष्टि और सारे ब्रह्मांड में आनंद और हर्ष से छा गया।
पं. शास्त्री जी ने इस प्रसंग से शिक्षा दी कि जब भी भगवान के दर्शन करने जाओ भक्त बनकर जाओ अपने घमंड और अहंकार को बाहर छोड़कर जाओ। तभी प्रभु से आपका मिलन हो पाएगा।
इधर कृष्ण जन्म की सूचना जब मामा कंस को मिली तो उसने पूतना को कृष्ण के पास भेजा। पूतना कृष्ण की मां बनाकर उनसे मिलने पहुंची। कृष्ण को स्तनपान कराना चाहती थी लेकिन उसने पहले से ही अपने स्तनों पर विष लगा रखा था। प्रभु श्रीकृष्ण को इस बात का पता लग चुका था। फिर भी वह पूतना के पास गए। पूतना के पास जाने से पहले उन्होंने भगवान शंकर को याद किया और कहा कि हे प्रभु आप पधारिए क्योंकि जहर पीने का काम आपका है मेरा काम तो माखन मिश्री खाने का है। भगवान शिव शंकर कृष्ण में समा गए और पुतना के दूध में जो जहर था वह भगवान शंकर ने पी लिया। उसके बाद श्री कृष्ण ने पूतना का उद्धार किया।
इस प्रसंग से शास्त्री जी ने यह शिक्षा दी की भगवान सभी का उद्धार करते हैं। चाहे भक्त हो या उनका दुश्मन हो। इसलिए इस दुनिया में भगवान से बड़ा कोई नहीं है। हर समय हर क्षण हर दिन भगवान की भक्ति में लीन रहना चाहिए।
श्री भागवत महापुराण सेवा समिति उदयपुर के जगदीश चंद्र साहू, कैलाश साहू, हेमेंद्र साहू एवं महिला समिति की पुष्पा बाई एवं दुर्गा देवी ने बताया कि सात दिवसीय भागवत कथा के पांचवें दिन संगीतमयी भक्ति भजनों पर महिला पुरुष सभी श्रद्धालु झूम उठे। कथा एवं भक्ति भाव के आनंद मैं श्रद्धालु इस कदर डूबे की पूरा पांडाल भक्ति भजनों पर झूने लगा। शास्त्री जी ने उपस्थित श्रद्धालुओं को श्री कृष्ण जन्मोत्सव, भगवान शंकर और श्री कृष्ण का दिव्य मिलन और पूतना वध के प्रसंगों को विस्तार से समझाया।
उन्होंने कहां कि भगवान की कथा को चाहे कितनी ही बार सुने या श्रवण करें उसमें हर बार उतना ही आनंद आता है जितना की पहली बार कथा श्रवण करने में आता है। भगवान का परम तत्व ही ऐसा है कि आप जितनी बार इसे सुनेंगे इसके आनंद में डूब जाएंगे। भगवान की कथा रसमयी भक्ति मयी और आनंद मयी होती है। भगवान का स्वरूप ही आनंदमयी, रसमयी, चेतन्यमयी और भक्तिमयी होता है। रोज-रोज संसार में रहने से तो एक समय ऐसा आता है कि संसार भी हमें पुराना लगने लगते लगता है। लेकिन भगवान की रोज कथा सुने, रोज भक्ति करें लेकिन वह रोज नई ही लगती है।
व्यक्ति को अपने कर्मबंध का भोग यहीं पर भोगना पड़ता
