कृषि विज्ञान केन्द्रों के कार्याें की तीन दिवसीय समीक्षा कार्यशाला शुरू
देश को अब विपणन क्रान्ति की आवश्यकता: डाॅ. प्रताप सिंह
देशभर के 150 से ज्यादा कृषि वैज्ञानिक कर रहे शिरकत
उदयपुर, 12 नवम्बर। कृषि विज्ञान केन्द्रों का यद्यपि देश व देश के किसानों के विकास में अतुलनीय योगदान है, लेकिन हर केवीके को मौजूदा परिवेश में खेती- किसानी एवं किसानों की समस्याओं को सूचीबद्ध कर उनके समाधान की दिशा में पहल करनी होगी। यही नहीं देश भर में स्थापित प्रयोगशालाओं, कृषि विश्वविद्यालयों व शोधार्थियों को भी किसानों की समस्याओं को साझा करना होगा ताकि उनका सटीक अध्ययन कर किसानों को राहत पहुंचाई जा सके। ऐसा करने पर ही कृषि विज्ञान केन्द्रों की सार्थकता साबित हो सकेगी। यह बात बुधवार को यहां राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (एनडीआरआई) के निदेशक डाॅ. धीर सिंह ने कही।
डाॅ. सिंह प्रसार शिक्षा निदेशालय के प्रज्ञा सभागार में आयोजित राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली के कृषि विज्ञान केन्द्रों की वार्षिक क्षेत्रीय तीन दिवसीय कार्यशाला के उद्घाटन सत्र को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा हालांकि उनके सेवाकाल का अधिकांश समय लैब में बीता। लैब में विकसित तकनीक को किसानों तक पहुंचाने में कृषि विज्ञान केन्द्रों भूमिका अहम रही है।
डाॅ. सिंह ने कृषि वैज्ञानिकों का आह्वान किया कि कृषि में भविष्य देखने वाले युवाओं में आत्मविश्वास पैदा हो। कुछ इस तरह के माॅडल तैयार किए जाए, जिन्हें देख अधिकाधिक युवा कृषि से जुड़ने को लालायित हो। आज हमारे देश का दुग्ध उत्पादन 17 से बढ़कर 240 मिलियन टन हो गया। लेकिन युवाओं को जोड़ सके, ऐसी तकनीक या माॅडल तैयार नहीं है। कृषि विज्ञान केन्द्रों को चाहिए कि दुग्धोत्पादन, पशुआहार, विपणन प्रणाली जैसे कई क्षेत्र हैं जहां माॅडल तैयार कर युवाओं को इससे जोड़ा जा सकता है। एनडीआरआई ने लैब में अब तक 144 तकनीक विकसित की है जिन्हे किसानों-पशुपालकों के बीच ले जाकर उनमें आत्मविश्वास पैदा करने का कार्य केवीके को हाथ में लेना होगा। यही नहीं सीएसआर यानी काॅर्पोरेट सामाजिक उतदायित्व को अपनाते हैं तो केवीके खुद ही अपना विकास आसानी से कर लेंगे।
कार्यक्रम के अध्यक्ष महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलगुरू डाॅ. प्रताप सिंह ने कहा सर्वप्रथम हमारा हितधारक किसान है। जब केवीके के कार्यों की समीक्षा कार्यशाला है तो प्रशासनिक, वितीय एवं सुधारात्मक समस्याओं की समीक्षा भी की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर) से एमओयू की फिर से समीक्षा की जरूरत है। नीतियां कठोर नहीं वरन इस तरह बने जिन्हें फील्ड में आसानी से लागू किया जा सके और किसान सशक्त बन सके। देश में कई क्रान्तियां हुई लेकिन अब जरूरत है विपणन क्रान्ति की। किसान को आज केवल हम ही तकनीक नहीं दे रहे, बल्की सोशल मीडिया के दौर में यू-ट्यूब, व्हाट्सएप, रेडियो एवं स्वयं सेवी संस्थाएं जैसे अनेक माध्यम से कृषक सीख रहा है। कृषि विज्ञान केन्द्रों में जरूरत के मुताबिक सुविधाएं व संसाधन मुहैया कराए जाए तो केवीके और तन्मयता से कार्य कर सकेंगे।
विशिष्ट अतिथि बंगाल राज्य में स्थित विधानचंद्र कृषि विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डाॅ. एम.एम. अधिकारी ने कहा कि प्रधानमंत्री के विकसित भारत – 2047 स्वप्न को साकार करने में कृषि विज्ञान केन्द्रों की महŸाी भूमिका है। माननीय राज्यपाल के स्मार्ट विलेज इनिशिएटिव योजना को आत्मसात करते हुए केवीके को भी गांवों का गोद लेकर प्रमुख तकनीकों का प्रयोग करना चाहिए, ताकि आस-पास के किसानों को सीखने को मिल सके। उन्होंने कहा कि स्थानीय उत्पाद को किसान बखूबी जानता है। केवीके को भी उसी दिशा में किसानों को प्रोत्साहित करना होगा।
आरम्भ में प्रायोजक आईसीएआर-कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान, जोधपुर (अटारी जोन-2) के निदेशक डाॅ. जे.पी. मिश्रा ने कहा कि विगत एक वर्ष में जोन-2 के अधीन राजस्थान, हरियाणा व दिल्ली प्रदेशों के 67 केवीके ने अपूर्व मुकाम हासिल किये हैं। ये केवीके तीनों राज्यों के 71 जिलों में कार्यरत है। भौगोलिक परिदृश्य को देखते हुए हर केवीके अपनी विशिष्ट खूबियों से लबरेज हैं। देश में कुल 11 जोन है लेकिन जोन-2 अतिविशिष्ट है। देश का 94 प्रतिशत ईसबगोल के अतिरिक्त, जीरा व डेयरी उत्पादन में यह जोन शीर्ष पर है। केवीके जिला स्तर पर वैज्ञानिक खेती करने वाले महत्वपूर्ण संस्थान है।
निदेशक प्रसार शिक्षा डाॅ. आर.एल. सोनी ने कहा कि इस कार्यशाला के माध्यम से डेयरी, उद्यानिकी, दलहन उत्पादन के क्षेत्र में नये आयाम स्थापित होंगे। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. लतिका व्यास ने किया। कार्यक्रम में इस जोन में स्थित सभी विश्वविद्यालयों के प्रसार शिक्षा निदेशकों के अलावा तीनों राज्यों के 150 से ज्यादा प्रबुद्ध कृषि वैज्ञानिक भाग ले रहे है। कार्यक्रम में एमपीयूएटी के सभी एसओसी सदस्य डाॅ. अरविन्द वर्मा, डाॅ. लोकेश गुप्ता, डाॅ. धृति सोलंकी, डाॅ. मनोज महला, डाॅ. राम हरि मीणा व डाॅ. सुनील जोशी आदि भी उपस्थित थे।
कृषि साहित्य का विमोचन
उद्घाटन सत्र में अतिथियों ने डाॅ. सी.एम. बलाई, डाॅ. बी.एस. भाटी, डाॅ. मनीराम, डाॅ. आर.के. कल्याण, कैलाश खराड़ी द्वारा तैयार पुस्तक ’’रबी फसलों एवं बागवानी की उन्नत तकनीकियां’’ का विमोचन किया गया। इसी प्रकार डाॅ. सरोज चैधरी, डाॅ. बंशीधर एवं टीम द्वारा तैयार ’’प्राकृतिक खेती’’, डाॅ. रामनिवास, डाॅ. दशरथ प्रसाद एवं टीम द्वारा तैयार ‘‘राजस्थान के थार मरूस्थलीय क्षेत्र में वैज्ञानिक बकरी एवं भेड़ पालन’’ कृषि साहित्य का विमोचन किया। इसी प्रकार डाॅ. बंशीधर, नरेश कुमार अग्रवाल, डाॅ. प्रीति वर्मा एवं टीम द्वारा तैयार ‘‘रबी फसलों की वैज्ञानिक खेती’’ डाॅ. सुरेशचंद कांटवा एवं टीम द्वारा तैयार ‘‘फ्रूट ककड़ी की उन्नत खेती’’ तथा डाॅ. गोपीचंद सिंह द्वारा लिखित ‘‘सौंफ की उन्नत खेती’’ साहित्य का विमोचन किया।
