उदयपुर, 25 अगस्त। जीवन में सबसे बड़ा सौभाग्य है—किसी का हाथ थाम कर उसके संग हर परिस्थिति में चलने का संकल्प लेना। जब दो आत्माएं एक-दूसरे के सुख-दुख की साथी बनती हैं, तभी परिवार की नींव रखी जाती है। इसी भावना को समाज के हर उस व्यक्ति तक पहुँचाने के लिए, जो गरीबी या दिव्यांगता के कारण विवाह जैसे पावन संस्कार से वंचित रह जाते हैं, नारायण सेवा संस्थान इस बार फिर एक अद्भुत सामाजिक महायज्ञ रचने जा रहा है।
आगामी 30 और 31 अगस्त को लियों का गुड़ा स्थित सेवा महातीर्थ परिसर में 44वाँ नि:शुल्क दिव्यांग एवं निर्धन सामूहिक विवाह संपन्न होगा। इस अवसर पर 51 नवयुगल सात फेरे लेकर एक-दूसरे के जीवनसाथी बनेंगे और खुशहाल दांपत्य यात्रा पर कदम रखेंगे।
प्यार और आत्मबल की मिसाल
संस्थान जनसंपर्क प्रमुख भगवान प्रसाद गौड़ ने बताया कि इनमें कोई दृष्टिबाधित है, कोई हाथों या पैरों से लाचार है, तो कोई घिसट-घिसटकर जिंदगी की राहें तय करता है। कुछ जोड़े ऐसे हैं, जिनमें एक जीवनसाथी दिव्यांग है तो दूसरा सकलांग। परंतु हर जोड़ा इस बात का जीवंत उदाहरण बनेगा कि—
“सच्चा साथ केवल शरीर का नहीं, आत्मा और मन का होता है।”
गणपति की वंदना से आरंभ
30 अगस्त की सुबह 10:15 बजे संस्थापक पद्मश्री कैलाश ‘मानव’, सहसंस्थापिका कमला देवी तथा अध्यक्ष प्रशांत अग्रवाल गणपति स्थापना कर विवाह महोत्सव की मंगलध्वनि करेंगे।
मेहंदी, संगीत और बिंदोली की परंपराएँ इस उत्सव को रंगीन बनाएंगी, तो 31 अगस्त को तोरण, वरमाला और पाणिग्रहण संस्कार के साथ मंगलसूत्र की डोर इन युगलों को जीवनभर के लिए जोड़ देगी।
जीवन संवारने वाले लौटेंगे आशीर्वाद देने –
यह आयोजन केवल विवाह नहीं, बल्कि सामाजिक पुनर्जन्म का पर्व है। वे दिव्यांग जोड़े, जिनकी जिंदगी कभी निराशा में डूबी थी और जिन्हें संस्थान ने ऑपरेशन, कृत्रिम अंग और रोजगार प्रशिक्षण देकर आत्मनिर्भर बनाया, अब अपने बच्चों के साथ इन नए दूल्हा-दुल्हनों को आशीर्वाद देने आएँगे।
अब तक 43 विवाहों में 2459 जोड़े संस्थान के स्नेह और सहयोग से अपने घर-आंगन को संवार चुके हैं। इस बार भी आयोजन का सीधा प्रसारण होगा, ताकि पूरा देश इन युगलों के नए जीवन का साक्षी बने।
वैदिक परंपरा की अनुगूँज-
विवाह मंडप में 51 वेदियाँ सजेंगी। आचार्यों के वैदिक मंत्रों की पवित्र ध्वनि वातावरण में गूँजेगी। कन्यादानियों के आंसुओं के बीच जब पवित्र अग्नि के चारों ओर सात फेरे होंगे, तो यह दृश्य केवल धार्मिक नहीं, बल्कि मानवीय करुणा और सामाजिक उत्तरदायित्व की सबसे सशक्त तस्वीर बनेगा।
प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान जनसंपर्क प्रमुख भगवान प्रसाद गौड़, मीडिया प्रभारी विष्णु शर्मा हितैषी, विवाह संयोजक रोहित तिवारी और बंशीलाल मेघवाल ने सामूहिक विवाह का पोस्टर जारी किया।
नवजीवन का उपहार
नवविवाहित जोड़ों को संस्थान उनकी गृहस्थी बसाने हेतु आवश्यक हर सामग्री भेंट करेगा—बर्तन, पलंग, अलमारी, सिलाई मशीन, चूल्हा, पंखा, बिस्तर और श्रृंगार सामग्री तक। यह केवल सामान नहीं, बल्कि वह आशीर्वाद है, जिससे उनकी नई जिंदगी खुशियों से भर जाए।
डोली में विदाई का भावुक क्षण
समारोह का सबसे हृदयस्पर्शी पल तब आएगा, जब बेटियाँ प्रतीकात्मक डोली में बैठकर अपने जीवनसाथी के संग विदा होंगी। संस्थान की ओर से उन्हें उनके गृह ग्राम तक सम्मानपूर्वक पहुँचाने की व्यवस्था की जाएगी। यह केवल एक विदाई नहीं, बल्कि समाज के लिए एक संदेश होगा कि—
“हर बेटी, चाहे निर्धन हो या दिव्यांग, वह भी सम्मान और गरिमा से अपने घर की लक्ष्मी बनकर विदा हो।”
यह सामूहिक विवाह केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि मानवता का महोत्सव है—जहाँ समर्पण, करुणा और सामाजिक समरसता मिलकर जीवन के नए अध्याय रचते हैं।
कुछ जोड़े ऐसे भी –
“सामने ढेरों चुनौतियां थी। उपेक्षा, अनिश्चित भविष्य और गरीबी । लेकिन हिम्मत नहीं हारी। आज मैं अपने पांवों पर खड़ी भी हुं और आत्मनिर्भर भी हूँ।” यह कहना है ‘नारायण सेवा संस्थान के सिलाई प्रशिक्षण केन्द्र में कार्यरत निकिता सहदेव (25) का जो इस सामूहिक विवाह में दिव्यांग देवेन्द्र कुमार को अपने जीवन साथी के रूप में वरण करेंगी।
निकिता का जन्म उत्तरप्रदेश के मुरादाबाद में हुआ। श्रमिक पिता वीरेश सहदेव व माता प्रवेश देवी उसके जन्म से काफी खुश थे। एक भाई व दो बहिनों सहित पांच जनों का परिवार पिता की मजदूरी पर ही, आश्रित था। तीन साल की उम्र में बुखार से ग्रस्त हुई और उपचार के दौरान ही उसके दोनों पांवों को पोलियो ने चपेट में ले लिया। कुछ समय तक पता भी न चल पाया कि हुआ क्या है, उठना-बैठना कम हो रहा था, पांव कमजोर होते जा रहे थे। डाक्टरों ने कहीं इसे लाइलाज बताया तो किसी अस्पताल का खर्च इतना था कि वहन करना परिवार के बूते से बाहर था। उम्र बढ़ने के साथ हड्डियों में विकार बढ़ रहा था। लड़की की इस हालत से आसपास परिवारों की उपेक्षा और तानों से माता-पिता का दिल छलनी था। वर्ष 2017 में परिवार को नारायण सेवा संस्थान में निःशुल्क इलाज की जानकारी मिलने पर उदयपुर आए। यहां डॉक्टरों ने जांच कर दोनों पांवों के बारी-बारी ऑपरेशन किए। बाद में विशेष कैलिपर्स तैयार करवाए। संस्थान में ही सिलाई का निःशुल्क प्रशिक्षण लिया। संस्थान ने पारिवारिक हालातों के मद्देनजर यहीं इन्हें रोजगार से भी जोड़ दिया। पिछले 4 वर्ष से मैं वे सिलाई केन्द्र में कार्यरत हैं। हर तरह के कपड़े सिल लेती हैं। इनका विवाह म.प्र के सागर निवासी देवेंद्र से हो रहा है, जो स्वयं एक पांव से पोलियो ग्रस्त हैं और संस्थान में ही ऑपरेशन और प्रशिक्षण के बाद 7 वर्ष से सिलाई केन्द्र में काम कर रहें हैं।
इशारे बुनेंगे जिंदगी के सपने
नीमच (मध्य प्रदेश) की 24 वर्षीय आरती कामलिया जन्मजात मूक बधिर हैं। न सुन सकती हैं और न बोल सकती हैं, उनकी सांकेतिक भाषा ही उनके माँ की भावनाएं व्यक्त करती हैं। वर्तमान में 10वीं कक्षा में पढ़ाई कर रही आरती घर के सभी कामों में निपुण हैं। पिता को खोने के बाद वह अपनी मां कुसुम और भाई के साथ रहती हैं।
अब आरती का जीवन महत्वपूर्ण मोड़ पर पहुंच रहा है। संस्थान द्वारा आयोजित दिव्यांग एवं निर्धन विवाह समारोह में उनका विवाह उदयपुर के सेक्टर-14 निवासी 27 वर्षीय गजेंद्र सिंह चौहान से होगा।
जन्म से मूक बधिर हैं और सांकेतिक भाषा के माध्यम से ही संवाद करने वाले गजेंद्र कपड़े की दुकान पर कार्यरत हैं और स्वावलंबन के रास्ते पर अग्रसर हैं।
ये जोड़ी इस बात की मिसाल बनेगी कि सच्चा रिश्ता भाषा या शब्दों का मोहताज नहीं होता, बल्कि समझ और विश्वास से पल्लवित होता है। आरती और गजेंद्र एक-दूसरे के जीवन में नई उम्मीद और खुशियों के रंग भरने जा रहे हैं। उन्हें आपकी शुभकामनाएं चाहिए।
सकलांग नरेंद्र थामेगा दिव्यांग नीला का हाथ
सात साल की उम्र में मधुमक्खी दंश से बीमार हुई आदिवासी बहुल फलासिया तहसील की कारेल ढाणी निवासी भूरादास दगाचा की पुत्री नीला कुमारी के पैर धीरे-धीरे घुटनों से तिरछे होते गए और समय बीतने के साथ ही वे कमजोर हो गए। चलते समय भी दोनों घुटने परस्पर रगड़ाते रहे। जिससे असहनीय दर्द होता। गरीबी के चलते इलाज भी संभव नहीं हो पाया। बावजूद इसके नीला ने हार नहीं मानी। जैसे-तैसे स्नातक तक शिक्षा प्राप्त की और माँ माखानी देवी को घर के छोटे-छोटे कामकाज में मदद करने लगीं।
लेकिन जब भी शादी की बात आती, तो देखने आने वाले लोग यह सोचकर लौट जाते कि चलने-फिरने में दिक्कत के कारण वह घर-परिवार की जिम्मेदारियां नहीं निभा पाएगी। नीला के गांव के समीप ही
आमलिया गाँव के नरेंद्र कुमार भगोरा पिता पूनमचंद निर्धन परिवार से हैं। गरीबी के कारण पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी और खेती-बाड़ी में हाथ बंटाने लगे। वयस्क होने पर गृह निर्माण में मजदूरी करते-करते राजसमंद में फर्शी लगाने का काम करने लगे। इससे परिवार का गुजारा ठीक से होने लगा। माता-पिता को अब इनके परिवार की चिंता थी।
एक दिन काम से फलासिया आए नरेंद्र ने नीला को देखा और आसपास गांव के होने से उनमें बातचीत भी हुई। उन्होंने नीला के रिश्तेदार से फोन नंबर लिया और बातचीत शुरू करने की कोशिश की। शुरू में बात नहीं हो पाई, पर लगातार प्रयास से बातचीत शुरू हुई। जब नीला ने उन्हें अपनी दिव्यांगता के बारे में बताया, तो नरेंद्र ने सहज भाव से कहा— कोई बात नहीं।
धीरे-धीरे यह बातचीत दोस्ती और फिर रिश्ते में बदल गई। अब संस्थान की मदद से नीला और नरेंद्र विवाह के बंधन में बंधने जा रहे हैं, ताकि उनका साथ जीवन भर का हो सके।
दिव्यांग बखतराम और सविता
राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले के धरियावद क्षेत्र के बखतराम (24) बचपन से ही दिव्यांगता का दंश झेल रहे हैं। जन्मजात पैर टेढ़े होने के कारण वे सहजता से चल नहीं पाते, फिर भी मुंबई की एक होटल में काम करते हुए आत्मनिर्भर जीवन जी रहे हैं।बखतराम अब दिव्यांग सविता (18) का साथ पाकर गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने जा रहे हैं। प्रतापगढ़ जिले की सविता की गर्दन जन्म से टेढ़ी होने के कारण शारीरिक अक्षमता से जूझ रही हैं। आर्थिक दृष्टि से कमजोर परिवार से होने के बावजूद, उन्होंने हर कठिनाई का हिम्मत से सामना किया है।
अब यह दोनों दिव्यांग परिणय सूत्र में बंधने जा रहे हैं…। दोनों का परिचय बखतराम की भाभी ने करवाया। जो कुछ ही समय पर गहरी दोस्ती में बदल गया। बाद में परिजनों से बात कर एक-दूसरे का जीवन साथी बनने का फैसला किया। परिवार ने भी इस पर सहमति जताते हुए संस्थान में अपनी कमजोर आर्थिक हालत का हवाला देते हुए विवाह का पंजीयन करवाया।
दोनों पांवों से जन्मजात दिव्यांग डूंगरपुर की शकुंतला कटारा का जीवन हमेशा चुनौतियों से भरा रहा। पैरों से दिव्यांग होने के कारण वे घिसटकर चलती हैं, लेकिन कभी हार नहीं मानी। घर के सभी कार्यों में निपुण हैं। शकुंतला कहती हैं—
“मैंने भी सोचा था कि मेरी भी शादी होगी, हाथों पर मेहंदी और हल्दी लगेगी। मेरी सभी सहलियों ने अपनी गृहस्थी बसा ली, लेकिन मेरी बढ़ती उम्र, दिव्यांगता और गरीबी के कारण शादी दूर की कौड़ी लग रहा था। इस स्थिति में माता-पिता भी प्रायः चिंतित रहते थे।”
इसी बीच एक दिन डूंगरपुर में दिव्यांगजनों की एक बैठक के दौरान शकुंतला की मुलाकात कानड़िया निवासी गणेश लाल से हुई। वे भी दिव्यांग हैं—पीठ में कूबड़ के बावजूद उन्होंने हिम्मत और आत्मविश्वास से अपना जीवन आगे बढ़ाया है।
बैठक के दौरान हुई यह मुलाकात धीरे-धीरे दोस्ती में बदली और फिर दोस्ती ने जीवनसाथी बनने का सपना जगा दिया। शकुंतला और गणेश एक-दूसरे के सहारे, एक-दूसरे की मुस्कान में सुकून ढूंढने लगे।
अब यह जोड़ी जीवन के नए अध्याय की ओर कदम बढ़ा रही है। 30 और 31 अगस्त 2025 को नारायण सेवा संस्थान के निःशुल्क दिव्यांग एवं निर्धन सामूहिक विवाह समारोह में ये दोनों परिणय सूत्र में बंधेंगे।