सबसे बड़ा धर्म लोक कल्याण

उदयपुर, 8 जून। व्यक्ति को उस काम से संकोच करना चाहिए जिससे दूसरों का अहित हो। परमार्थ का काम तो हमेशा आगे बढ़कर करना चाहिए। उसी व्यक्ति को जीवन में सफलता मिलती है, जो भय और पाप का निडरता के साथ सामना करता है।
यह बात नारायण सेवा संस्थान में दिव्यांगजन के लिए आयोजित ‘ अपनों से अपनी बात’ कार्यक्रम में संस्थान अध्यक्ष प्रशांत अग्रवाल ने कही। उन्होंने कहा कि औरों के लिए जीना ही सबसे बड़ा धर्म है। प्रभु को वही व्यक्ति प्रिय होता है जो लोक कल्याण में दत्त चित्त रहता है। धर्म और अधर्म के बीच जगत में पल – पल सावधान होकर चलना है। उन्होंने संयुक्त परिवार पर जोर देते हुए कहा कि परिवार से बड़ी और महत्वपूर्ण संस्था कोई नहीं है। भगवान श्रीराम ने भी जीवन में परिवार को सदैव महत्व दिया।
भले इसके लिए उन्हें वन गमन करना पड़ा, किंतु उसमें भी इन्हें समाज का ही मंगल दिखाई दिया। उन्होंने माता- पिता को आदर्श माना । भगवान श्रीकृष्ण ने भी कहा था कि यदि परिवार में कोई सदस्य अहितकारी हो तो उसे उसका दण्ड देने अथवा उससे पृथक हो जाने में भी कोई बुराई नहीं है। परिवार में प्रेम महत्वपूर्ण है, अपने से वरिष्ठ को आगे रखो, उसे सम्मान दो। फिर आप उनसे जैसी अपेक्षा चाहते हैं, वह अवश्य मिलेगी। जीवन में ईश्वर का स्मरण कभी न छोड़े। मुश्किल के वक्त उनका नाम ही आपको उबार देगा। जीवन एक पाठशाला है, जो हमे हर क्षण कुछ न कुछ सीखने का ही मौका देती है।

By Udaipurviews

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