संचिया के 122 स्कूली बच्चों पर शासन और प्रशासन नही दे रहा ध्यान

– रोज 50 से अधिक विद्यार्थी 10 किमी. दूर टेम्पो और जीप में लटकर जाने को मजबूर
-: आठवी तक स्कूल क्रमोन्नत का प्रस्ताव सीबीईओ भेज चुके बीकानेर, फिर भी नही हुआ फैसला

जुगल कलाल
डूंगरपुर, 15 जुलाई(ब्यूरो)। बिछीवाड़ा ब्लॉक शिक्षा कार्यालय के अधीन संचिया गांव में 122 बच्चों के भविष्य का फैसला लेने वाला कोई नही है। करीब 50 बच्चे रोज ऑटो, जीप और अन्य वाहनों से लटकर कर 10 किमी. दूर साबली और कनबा जा रहे है। वही करीब 70 बच्चों ने पढ़ाई छौडक़र मजदूरी, बकरी चराने, खेतों में काम करने और गुजरात पलायन करने की तैयारी शुरु कर दी है। आर्थिक रुप से कमजोर बच्चों ने आसपास के गांवों में जाकर छोटा-मोटा काम करना शुरू कर दिया है। इसके कारण इन 122 बच्चों के भविष्य के साथ शासन और प्रशासन खिलवाड़ कर रहे है। स्कूल को क्रमोन्नत करने के लिए ब्लॉक शिक्षा अधिकारी आबूलाल मनात ने बताया कि मई माह में ही क्रमोन्नत के प्रस्ताव जिला शिक्षा अधिकारी के माध्यम से बीकानेर भेज दिए गए थे। वहां से अभी तक किसी भी स्कूल को क्रमोन्नत करने के आदेश नही आए है। इसके कारण बच्चों सहित पूरे गांव को असुविधा हो रही है।

दोपहर के भोजन को तरस गए बच्चे- सरकारी स्कूलों में पढ़ाई के अलावा सबसे बड़ा फायदा दोपहर का मिड-डे-मील भोजन होता है। इस भोजन को बच्चे सामूहिक रुप से रुचि के साथ खाते है। इससे उन्हें शारीरिक पोषण के साथ दिनचर्या में जुड गया है। पिछले तीन माह से स्कूल से टीसी कटने के बाद 122 बच्चों को मायूसी छाई हुई है। इन बच्चों को अब दिन का भोजन नसीब नही हो रहा है। कई घरों की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण संपूर्ण पोषण युक्त भोजन नही दे पा रहे है।

विधवा महिला सुरता सबसे ज्यादा दुखी-संचिया गांव की विधवा महिला सुरता भगोरा ने बताया की पति के मरने के बाद बच्चों को शिक्षित कर समाज में उठने-बैठने का सपना देखा था। अब गांव में स्कूल बंद होने के कारण रोज 10 किमी. दूर कनबा कैसे भेजे। वहां पर रोज आने-जाने के 30 रुपए खर्च करने पड़ते है। इसके अलावा बच्चों के लिए सही वाहन नही मिलने पर लटक कर जाना पड़ता है। ऐसे में वाहन के दुर्घटनाग्रस्त होने पर बच्चों की जान का खतरा रहता है।

अंग्रेजी स्कूल खोलकर सरकार ने गलत किया-गांव वार्ड 3 की वार्ड पंच हुकली भगोरा  ने बताया कि सरकार को अंग्रेजी स्कूल मनमर्जी से खोल दिए है। पहले आसपास की स्कूल की भौतिक स्थिति की जानकारी होनी चाहिए। आज गांव में 7 प्राथमिक स्कूल है। एक मात्र सीनियर स्कूल को अचानक अंगे्रजी में बदल देने से क्या शिक्षा का स्तर सुधर जाएगा। गरीब आदिवासी के बच्चों को अब पढऩा छौडक़र खेतों में काम करने, गुजरात पलायन करने और बाल मजदूरी में मन लग जाएगा तो उन्हें वापस स्कूलों से जोडना मुश्किल होगा।

विधानसभा में उठाएगा मुद्दा-डूंगरपुर विधायक गणेश घोघरा का कहना है कि, गांव के लोगों मेरे पास भी आए थे। जिला शिक्षा अधिकारी को निर्देश भी दिए थे। गांव की अन्य स्कूल क्रमोन्नत करूगा। विधानसभा में मुद्दा उठाएगा। बच्चो के लिए धरने पर बैठना पड़ा तो भी बैठूंगा।

By Udaipurviews

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