बुरागोरंग झील की तरह हमारी झीलों को भी बनाएंगे सुरक्षित व समृद्ध
सिडनी/ उदयपुर, 22 अप्रैल। ऑस्ट्रेलिया अवार्ड फेलोशिप पर सिडनी गए भारतीय दल ने मंगलवार को बुरागोरंग झील पर विश्व पृथ्वी दिवस परिचर्चा में भाग लिया । आई एफ एस डी की निदेशक डॉ बसुंधरा भट्टराई तथा वेस्टर्न सिंडनी विश्वविद्यालय के जल विशेषज्ञ प्रो बसंत माहेश्वरी के नेतृत्व में भारत व नेपाल के प्रतिभागियों ने झील संवर्धन की बुरागोरंग झील संरक्षण व्यवस्था को अनुकरणीय मॉडल बताया। भारतीय दल ने कहा कि भारत की जल परंपराओं, जीवन शैली तथा सामाजिक, सांस्कृतिक,आध्यात्मिक व्यवस्था में बुरागोरंग झील की तरह ही संरक्षण विधियां रही है जिन्हें हमने भुला दिया हैं।
भारतीय दल में सम्मिलित विद्या भवन के डॉ अनिल मेहता, डॉ सुषमा जैन, प्रहलाद स्वर्णकार , सी टी ए ई के प्रो मनजीत सिंह ,जयपुर की सुशीला यादव तथा गुजरात के मोहन शर्मा ने कहा कि झीलों के जल ग्रहण क्षेत्रों , बफर जोन तथा किनारों की पेयजल गुणवत्ता तथा जैव विविधता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका है।
डॉ अनिल मेहता तथा डॉ सुषमा जैन ने परिचर्चा में कहा कि पेड़, पहाड़, नदियां, झीलें पृथ्वी के शृंगार है। अरावली की पहाड़ियों ने उदयपुर को रेगिस्तान विस्तार से बचा कर रखा। पानी प्रवाह का सृजन कर नदियों, झीलों को जीवंत बनाए रखा। लेकिन विगत वर्षों में पर्यावरण, पेयजल तथा पर्यटन की आधार झीलों की सीमाओं को घटा कर इन्हें छोटा कर दिया है। छोटे तालाब जो भूजल भरण तथा बाढ़ नियंत्रण के लिए महत्वपूर्ण थे, उन्हें पाट दिया हैं। डॉ मनजीत सिंह तथा प्रहलाद सोनी ने कहा कि उदयपुर क्षेत्र में कई पहाड़ या तो गायब हो गए है , या फिर बौने,सपाट और क्षत विक्षत हो गए हैं। परिणाम स्वरूप उदयपुर की जलवायु रेगिस्तान सदृश्य बनती जा रही है। गर्म हवाओं की आंधियां चलने लगी है। वन्य जीव भटक रहे हैं। झीलों में जल प्रवाह अनियमित व कमजोर हो गया है।
भारतीय दल ने बुरागोरंग झील की तरह उदयपुर, राजस्थान व भारत की समस्त पेयजल झीलों के संरक्षण व संवर्धन का संकल्प व्यक्त करते हुए ऑस्ट्रेलिया के ब्लू माउंटेन रेंज की तरह अरावली की पहाड़ियों के आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, पर्यावरणीय तथा भौगोलिक स्वरूप को अक्षुण्ण बनाए रखने का आग्रह प्रस्तुत किया।
झील विशेषज्ञ डॉ अनिल मेहता ने ऑस्ट्रेलिया से बताया कि सिडनी से लगभग 65 किलोमीटर पश्चिम में वार्रागाम्बा नदी पर उदयसागर बांध की ही तरह एक संकरी घाटी बनाए वार्रागाम्बा बांध से बनने वाली बुरागोरंग झील एक पेयजल झील है। पिचहतर वर्ग किलोमीटर में फैली यह झील 52 किलोमीटर लंबी है।इससे सिडनी के चालीस लाख लोगों को पेयजल आपूर्ति की जाती है।
लगभग नौ हजार वर्ग किलोमीटर के जलग्रहण क्षेत्र का, झील के समीप का लगभग 28 प्रतिशत हिस्सा विशेष सुरक्षित बफर क्षेत्र की तरह वर्गीकृत है। इसमें किसी भी तरह की मानवीय गतिविधि पर पूर्ण प्रतिबंध है। इस बफर क्षेत्र में भूमि उपयोग, विकास और पहुँच पर प्रतिबंध और नियंत्रण लगाए गए हैं। तैराकी, मछली पकड़ने, नौका विहार और शिविर जैसी गतिविधियाँ निषिद्ध हैं। यह बफर जोन जैव विविधता को तो बनाए ही रखता है, साथ साथ पानी की गुणवत्ता को खराब नहीं होने देता। चूंकि यह झील पेयजल झील है, इसके जलग्रहण क्षेत्र को “पेयजल जलग्रहण क्षेत्र” के रूप में सुरक्षित रखा गया है। पहाड़ियों के काटने पर रोक है। बांध यानि झील की पाल पर भी बिना अनुमति के प्रवेश निषिद्ध है। पूरा उद्देश्य बांध की सुरक्षा, झील में उच्च गुणवत्ता वाला पानी बनाए रखना, पारिस्थितिकी तंत्र की अखंडता सुनिश्चित करना और जलग्रहण क्षेत्रों की पर्यावरणीय गुणवत्ता में सुधार करना है।
भारत में झीलों व जल स्रोतों के लिए इसी प्रकार की व्यवस्थाएं कभी विद्यमान रही , जिनकी पुनर्स्थापना करना जरूरी है।

 
     
                                 
                                 
                                 
                                 
                                