उदयपुर। सेक्टर 4 श्री संघ में विराजित श्रमण संघीय जैन दिवाकरिया महासाध्वी डॉ श्री संयमलताजी म. सा.,डॉ श्री अमितप्रज्ञाजी म. सा.,श्री कमलप्रज्ञाजी म. सा.,श्री सौरभप्रज्ञाजी म. सा. आदि ठाणा 4 के सानिध्य में धर्म सभा को संबोधित करते हुए महासती संयमलता ने कहा कि जीवन है तो समस्याएं भी हैं। संपन्न हो या अभावग्रस्त, राजा हो या रंक सभी समस्याओं से घिरे हैं। जहां आकांक्षाएं हैं वहां समस्याएं हैं। आकांक्षाओं पर ब्रेक लगाना है तो जोड़ने के साथ साथ छोड़ने की भी आदत बनाओ, चोरी कर्म से बचें, आकांक्षा में नहीं अपितु आवश्यकता में जियो।
महासती ने आगे कहा आज के जमाने में भरोसे के रिश्ते कमजोर होते जा रहे हैं, पंख लगाकर कौवे भी मोर बनते जा रहे हैं, पहरेदार भी चोर होते जा रहे हैं। बिना मालिक की आज्ञा से कोई वस्तु लेना, यहां तक कि एक तिनका भी लेना चोरी कहलाती है।
साध्वी अमितप्रज्ञा ने मंगलवार की चर्चा करते हुए बताया की मंगल मुखी सदा सुखी । मंगल हमें कर्तव्यनिष्ठ बनने की प्रेरणा देता है। कर्तव्य जीवनरुपी मानसरोवर का हंस है। कर्तव्य मानव जीवन का अमृत है। कर्तव्य पालन के अभाव में मनुष्य मानव समाज में रहते हुए भी मानव की आकृति में पशु है। रामायण का पन्ना-पन्ना कर्तव्य के रंग से रंगा हुआ है। रामायण कर्तव्य का बोलता हुआ चलचित्र है।
मानवता का पौधा लगानें हेतु पुण्य का बीज आवश्यकःसंयम ज्योति
उदयपुर। समता मूर्ति साधी जयप्रभा श्री जी म.सा. की सुशिष्या डॉ. साध्वी संयम ज्योति ने कहा कि मानवता का पौधा लगाने के लिये के पुण्य के बीज बोने आवश्यक है। पुण्य के बीज अंकुरित पल्लवित में और पुष्पित करने के लिये जीवन में उदारता, विशालता, गंभीरता और मधुरता आवश्यक है।
साध्वी ने कहा कि मन, वचन और काया द्वारा की गयी हर शुभ प्रवृति पुण्य कहलाती है इसीलिए पुण्य अनंत प्रकार के होते हैं परंतु परमात्मा ने नौ प्रकार के मुख्य पुण्य बताये है। उसमें प्रथम ही अन्न दान है। अन्न व्यक्ति की मूलभूत आवश्यकता है। रोटरी प्राण है।
उन्होंने कहा कि अभाव जनित लोगों को अन्न का दान करने से अन्न पुण्य का लाभ मिलता है। अपने परिचितों को रिलेशन मेंटेन के लिए दावत देना, मिष्ठान आदि खिलाना अन्न पुण्य नही है। भोजन के अभाव में भजन करना भी संभव नहीं है। तभी तो कहा है कि भूखे पेट भजन न होए गोपाला, लेलो अपनी कंठी माला ।श् प्यासे को पानी पिलाना पान पुण्य है तो जिसके पास रहने का स्थान नही है उसको स्थान देना लयन पुण्य है।
साध्वी संयम साक्षी ने कहा- पाप के बीज बोने से विषवृक्ष पैदा होता है। पुण्य के बीज बोने से अमृत वृक्ष पैदा होता है। पाप के भयंकर परिणाम भोगने पड़ते है वहीं पुण्य की पराकाष्ठ बाह्य और आन्तरिक सुख को देती है।