उदयपुर, 2 जून। जमीन धीरे-धीरे घट रही है और आबादी बढ़ते-बढ़ते आज 140 करोड़ हो चुकी है। ऐसे में उत्पादन बढ़ाने की गति को बनाए रखना जरूरी है। अब समय आ गया है कि शोध का शिक्षण हो। वैज्ञानिकों को किसान के खेत पर जाकर कार्य करना होगा ताकि तकनीक को किसान हाथों-हाथ आत्मसात कर सके। यह उद्गार सोमवार को महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. अजीत कुमार कर्नाटक ने व्यक्त किए। डॉ. कर्नाटक प्रसार शिक्षा निदेशालय, उदयपुर द्वारा आयोजित 15 दिवसीय खुदरा उर्वरक विक्रेता प्राधिकार पत्र प्रशिक्षण के समापन अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि सम्बोधित कर रहे थे। प्रशिक्षण में उदयपुर, राजसमंद, चित्तौड़गढ़, डूंगरपुर, बांसवाड़ा और सलूम्बर के 51 खुदरा उर्वरक विक्रेताओं ने भाग लिया जिनमें 7 महिलाएं भी शामिल थी।
उन्होंनेे कहा कि एक अच्छा विक्रेता बनने के लिए संपूर्ण जानकारी का होना जरूरी है। जानकारी सुनियोजित और स्तरीय प्रशिक्षण से ही संभव है जो एमपीयूएटी की नियमित गतिविधि है। दुख इस बात का है कि आम आदमी खाद के नाम पर केवल यूरिया को जानता है जबकि ऐसा नहीं है। उर्वरक के प्रमुख घटक, नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश का प्रतिनिधित्व करने वाले अनेक उर्वरक चलन में है। डॉ. कर्नाटक ने सलाह दी कि खुदरा उर्वरक विक्रेताओं को प्राकृतिक खेती से जुड़ी सामाग्री भी अपने स्टोर में रखनी चाहिए ताकि प्राकृतिक खेती को बढ़ाना मिल सके।
प्रसार शिक्षा निदेशक डॉ. आर. एल. सोनी ने कहा कि एक सफल खुदरा उर्वरक विक्रेता के लिए व्यापार में फाइव ’आर’ की काफी महत्ता है। ये पांच आर है- रिस्क, रिलेशन, रेग्यूलेटरी, रेपूटेशन और रेट। इन्हें आत्मसात कर व्यापार किया जाए तो सफलता सुनिश्चित है। उर्वरक विक्रेताओं को किसानों से सीधा सम्पर्क स्थापित कर विभिन्न प्रकार की नवीनतम एवं आधुनिक कृषि तकनीकों को अपनाने के लिए भी प्रेरित करना चाहिए और उनकी आमदनी को बढ़ाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए। डॉ. सोनी ने उर्वरकों के सन्तुलित उपयोग एवं मृदा परीक्षण के महत्व पर प्रकाश डालते हुए मृदा स्वास्थ्य कार्ड, पोषक तत्व प्रबन्धन, समन्वित पोषक तत्व के लाभ, जैविक खेती और उसके लाभ, कार्बनिक खेती आदि के बारे में भी चर्चा की।
कार्यक्रम के विशिष्ठ अतिथि छात्र कल्याण अध्यक्ष डॉ. मनोज महला ने प्रशिक्षणार्थियों को उर्वरक उपयोग दक्षता बढ़ाने के उपाय सुझाए। टिकाऊ खेती, समन्वित कृषि पद्धति की फसल विविधिकरण आदि विषयों पर जानकारी देकर उनका ज्ञानवर्धन किया।
प्रशिक्षण समन्वयक एवं कार्यक्रम संचालक डॉ. लतिका व्यास, प्राध्यापक ने बताया कि इस प्रशिक्षण में 15 दिन तक विश्वविद्यालय के विभिन्न कृषि वैज्ञानिकों एवं राज्य सरकार के कृषि अधिकारियों ने प्रशिक्षणार्थियों को उर्वरक प्राधिकार पत्र की महत्ता एवं इससे जुड़ी सैद्धातिंक एवं प्रायोगिक जानकारियां प्रदान की। सभी ने प्रशिक्षण का लाभ किसानों तक पहुंचाने की अपील की।
समारोह में खुदरा उर्वरक विक्रेता प्रशिक्षण में भाग लेने वाले सभी प्रशिक्षणार्थियों को कार्यक्रम के मुख्य अतिथि द्वारा प्रमाण-पत्र एवं प्रशिक्षण सम्बन्धी साहित्य प्रदान किये गये। साथ ही प्रशिक्षणार्थियों ने प्रशिक्षण के अनुभव भी साझा किये।
सफल उर्वरक विक्रेता के लिए सुनियोजित एवं स्तरीय प्रशिक्षण जरूरी: डॉ. कर्नाटक

15 दिवसीय खुदरा उर्वरक विक्रेता प्राधिकार पत्र प्रशिक्षण का समापन