उदयपुर, 23 जुलाई। श्री हुक्मगच्छीय साधुमार्गी स्थानकवासी जैन श्रावक संस्थान के तत्वावधान में केशवनगर स्थित नवकार भवन में चातुर्मास कर रही महासती विजयलक्ष्मी जी म.सा. ने बुधवार को धर्मसभा में कहा कि नरक गति, तिर्यंच गति, मनुष्य गति एवं देव गति में अनंतानंत जीवों का समावेश हो जाता है। प्रभु महावीर ने इन चार गति के जीवों को 24 दंडकों में विभक्त किया है। जीवों के कर्म भोग के स्थान को दंडक कहते हैं, जिनके अच्छे कर्म समाप्त हो चुके हैं। वे नरक के मेहमान बनते हैं। अशुभ कर्म के भोगने के स्थान को नरक कहते हैं। हिंसा करने में, झूठी साक्षी देने में, दुराचार करने में पल भर लगता है पर फल तो अत्यधिक भुगतना पड़ता है। प्रभु ने कहा है कि जियो और जीने दो। हमेशा जीवों के प्रति रहम रखें। हम जीव प्रेमी बनें, अपने सुख के लिए दूसरे जीवों का घात नहीं करें। हम हर पल यह सोचें कि हमारे निमित्त से सभी जीवों को सुखसाता व शांति प्राप्त हो, यदि ऐसे शुभ भाव दिन-रात बने रहें तो हम नरक गति के द्वारा बंद कर सकते हैं। इससे पूर्व महासती श्री सिद्धिश्री जी म.सा. ने कहा कि भाव ही आत्मा की प्रोपर्टी हैं। उत्कृष्ट दान देने के पश्चात् पश्चाताप करने से भोगान्तराय का बंध होता है, जिसके कारण मम्मण सेठ की तरह अकूत सम्पदा होने पर भी हम उसका उपभोग नहीं कर सकते, सुपात्र दान देकर हम अपने भवों को अर्थात संसार को सीमित कर सकते हैं। श्रीसंघ अध्यक्ष इंदर सिंह मेहता ने बताया कि बुधवार को महासती श्री नानु कुंवर जी म.सा. की पुण्यतिथि एवं आचार्य सम्राट आनंदऋषि जी म.सा. की जन्म जयन्ती के अवसर पर आयोजित तीन दिवसीय कार्यक्रमों के तहत अनेक श्रद्धालुओं ने नीवी तप की आराधना की गई। दोपहर में महासती जी ने 25 बोल पर महिलाओं की धार्मिक कक्षा ली।
आत्मा की गति यदि सच्चे मार्ग पर हो तो वह परमात्मा तक पहुँच सकती है : जिनेन्द्र मुनि
उदयपुर, 23 जुलाई। श्री वर्धमान गुरू पुष्कर ध्यान केन्द्र के तत्वावधान में दूधिया गणेश जी स्थित स्थानक में चातुर्मास कर रहे महाश्रमण काव्यतीर्थ श्री जिनेन्द्र मुनि जी म.सा. ने बुधवार को धर्मसभा में कहा कि हम सभी जीवन में बदलाव और रूपांतरण चाहते हैं। आदिकाल में मानव जंगलों में रहते थे, लेकिन उन्होंने अपने जीवन को रूपांतरित किया। आत्मा की गति यदि सच्चे मार्ग पर हो तो वह परमात्मा तक पहुँच सकती है। रवीन्द्र मुनि जी म.सा. ने कहा कि संसार परिवर्तन का नियम है। दुख आता है तो जाता भी है, सुख आता है तो वह भी स्थायी नहीं होता। यदि समयानुसार परिवर्तन नहीं होगा तो संसार की स्थिति दयनीय हो जाएगी। बहता हुआ पानी उपयोगी होता है, लेकिन ठहरा हुआ पानी सड़ता है। पेड़ को पानी देने से फल मिलते हैं, काटने से कुछ नहीं। धर्म संचय करना ही उद्देश्य नहीं होना चाहिए, बल्कि उसे आचरण में उतारना चाहिए। अंधविश्वास से ऊपर उठकर स्वाध्याय और साधना से आत्मकल्याण संभव है। स्वाध्याय व साधना से पूर्व स्थान की शुद्धि, भावों की पवित्रता और सच्ची भावना आवश्यक है। धर्म की आराधना केवल परंपरा नहीं, बल्कि आत्म-रूपांतरण का मार्ग है।
केंद्र अध्यक्ष निर्मल पोखरना ने बताया कि आज सुश्राविका काजल तलेसरा की 15 उपवास एवं दिव्या जी छाजेड़ की 5 उपवास तपस्याओं की अनुमोदना की गई। साथ ही आयंबिल, एकासना एवं उपवास जैसी कठोर तपस्याओं में लीन अन्य श्रावकों का भी सम्मानपूर्वक अभिनंदन किया गया। मीडिया प्रभारी संदीप बोलिया ने बताया कि यह चातुर्मास क्षेत्र के लिए एक आध्यात्मिक जागरण का अवसर है, जिसमें दिन-प्रतिदिन श्रद्धालुओं की भागीदारी और भावनात्मक जुड़ाव बढ़ता जा रहा है। आगामी दिनों में कई धार्मिक पर्व, प्रवचन श्रृंखलाएं एवं पुण्य आयोजनों की श्रृंखला प्रस्तावित है।