विकसित भारत 2047 : अर्थव्यवस्था, युवाशक्ति और समावेशी विकास पर राष्ट्रीय संगोष्ठी
अर्थशास्त्र विभाग की पहल पर विशेषज्ञों ने रखे विचार, युवाओं की भूमिका को बताया महत्वपूर्ण आधार।
उदयपुर, 25 जून। जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ (डीम्ड टू बी विश्वविद्यालय) उदयपुर के अर्थशास्त्र विभाग की ओर से “भारतीय अर्थव्यवस्था : विकसित भारत 2047” विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में विषय विशेषज्ञों और शैक्षणिक नेतृत्वकर्ताओं ने विकसित भारत की संकल्पना, उसकी आर्थिक रूपरेखा, युवाशक्ति, आधारभूत संरचना, प्रशासनिक बदलावों, तकनीकी विकास और सामाजिक समरसता जैसे विविध पहलुओं पर दृष्टिकोण साझा किया।
आयोजन सचिव डॉ. पारस जैन ने बताया कि उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि पूर्व संभागीय आयुक्त उदयपुर राजेंद्र भट्ट, विशिष्ठ अतिथि व वक्ता सीए व सरल ब्लड बैंक के श्याम एस सिंघवी, विशेष सानिध्य व मार्गदर्शक जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ के कुलपति प्रो कर्नल शिव सिंह सारंगदेवोत रहे। अध्यक्षता कुलाधिपति भंवर लाल गुर्जर ने की।
इस अवसर पर सान्निध्य व मार्गदर्शन के रूप में कुलपति प्रो. सारंगदेवोत ने भारत की सांस्कृतिक और सामाजिक विविधता की प्रशंसा करते हुए कहा कि अनेकताओं में एकता ही भारत की सबसे बड़ी शक्ति है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी द्वारा प्रस्तुत ‘विकसित भारत 2047’ की अवधारणा को मूर्त रूप देने के लिए युवा, महिलाएं, गरीब और किसान वर्ग की भागीदारी जरूरी है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था और कृषि को प्राथमिकता देने की बात करते हुए उन्होंने कहा कि मजबूत आधारभूत ढांचे, सामाजिक कल्याण की भावना और निवेशकों के लिए प्रभावी रणनीति से ही यह लक्ष्य संभव है।
उन्होंने कहा कि आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर जो संकल्प लिया गया है, वह पिछले दस वर्षों में वैश्विक मंच पर भारत की मजबूत स्थिति से प्रमाणित होता है। आत्मनिर्भर भारत की दिशा में बढ़ते कदम, सामाजिक समरसता और भारत की सांस्कृतिक विविधता ही हमारे विकास का मूल आधार हैं।
उन्होंने सिंधु घाटी सभ्यता का उदाहरण देते हुए भारत की ऐतिहासिक आर्थिक समृद्धि का उल्लेख किया और कहा कि औपनिवेशिक काल में जो व्यवधान उत्पन्न हुए, उसके बाद भारत ने अल्प समय में फिर से उन्नति की राह पकड़ी है।
विशिष्ट अतिथि व वक्ता डॉ. श्याम एस. सिंघवी ने जीडीपी और समग्र अर्थव्यवस्था की गहराई से विवेचना की। उन्होंने कहा कि समग्र दृष्टिकोण से विकास ही विकसित भारत की संकल्पना को साकार कर सकता है।
उन्होंने कहा कि सरकार की योजनाएं तीव्रता से क्रियान्वित हो रही हैं और रेलवे, इन्फ्रास्ट्रक्चर, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसे क्षेत्रों में ठोस प्रगति आवश्यक है। GST के पहले और अब के प्रभाव की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि गुणवत्ता युक्त शिक्षा, बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं, MSMEs की भागीदारी, आर्थिक साक्षरता और कर नैतिकता जैसे विषय नागरिकों की जिम्मेदारी हैं।
उन्होंने साउथ कोरिया का उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे 1950 में कमजोर स्थिति से उठकर आज वह एक मजबूत तकनीकी नेतृत्वकर्ता बन चुका है। उन्होंने कहा कि “नो ड्रीम इज बिग ड्रीम” की भावना से हर नागरिक को सरकार की योजनाओं को आत्मसात कर उन्हें सफल बनाना होगा।
कुलाधिपति भंवरलाल गुर्जर ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए शुभकामनाएं दीं और संगोष्ठी को सामयिक विषय पर सार्थक मंथन बताया।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. मोनिका सारंगदेवोत ने किया जबकि स्वागत भाषण और अतिथि परिचय आयोजन सचिव एवं अर्थशास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ. पारस जैन ने प्रस्तुत किया। धन्यवाद व आभार संयोजक डॉ शाहिद कुरेशी ने व्यक्त किया।
संगोष्ठी के शुरुआती तकनीकी सत्र में पैसिफिक से पूर्व डीन प्रो एनके दशोरा, काशी विद्यापीठ वाराणसी से डॉ हंसा जैन का व्याख्यान रहा जिसमें पैसिफिक के पूर्व डीन प्रो. एन. के. दशोरा के सत्र से हुआ। उन्होंने युवाओं को स्किल और लीडरशिप की दिशा में अग्रसर करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने MSMEs और स्टार्टअप्स को आत्मनिर्भर भारत की रीढ़ बताते हुए कहा कि इन्हीं से भविष्य की अर्थव्यवस्था का आकार तय होगा। उन्होंने बताया कि प्रशासनिक स्तर पर DAPRG जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से गरीबी हटाने, वंचित वर्ग को सशक्त बनाने तथा समावेशी विकास की दिशा में सरकार कार्यरत है। देश के तीन करोड़ से अधिक ग्रामीण गरीबों को बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने के प्रयासों का उल्लेख करते हुए उन्होंने जनजातीय विकास, किसान कल्याण, पीएम किसान योजना, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, मृदा स्वास्थ्य कार्ड जैसी योजनाओं के लाभों को रेखांकित किया।
इस अवसर पर डॉ. हंसा जैन ने लेबर मार्केट में आ रहे बदलावों, ग्रीन सस्टेनेबल ट्रांजिशन, शहरीकरण और आधारभूत ढांचे की दिशा में हो रहे विकास पर बात रखी।
संगोष्ठी के अंतिम तकनीकी व समापन सत्र में वक्ता के रूप में डीएवीवी विश्वविद्यालय इंदौर के स्कूल आफ इकोनॉमिक्स के फॉर्मेर डीन प्रो.गणेश कावड़िया विद्यापीठ की पूर्व प्रिंसिपल प्रो.सुमन पामेचा व अध्यक्षता राजस्थान विद्यापीठ के कुलपति कर्नल प्रो. शिव सिंह सारंगदेवोत ने की।
आयोजित संगोष्ठी में 60 शोधार्थी का पंजीकरण हुआ जिसमें लगभग 42 शोधार्थियों ने शोध पत्र प्रस्तुत किये।
संगोष्ठी के दौरान प्रतिभागियों ने यह स्पष्ट रूप से अनुभव किया कि यदि भारत को 2047 तक एक समृद्ध, समावेशी और वैश्विक नेतृत्वकर्ता देश बनाना है तो प्रशासन, नीति, नागरिक चेतना, तकनीकी नवाचार और सांस्कृतिक एकता सभी को मिलकर समन्वित प्रयास करना होगा।
इस अवसर पर कुलसचिव डॉ तरुण श्रीमाली, उपकुलसचिव दो धर्मेंद्र राजोरा, डीन फैकल्टी प्रो मलय पानेरी, एकेडमिक निदेशक डॉ हेमेंद्र चौधरी, संगोष्ठी संयोजक डॉ शाहिद कुरेशी, कन्वीनर डॉ मोनिका सारंगदेवोत, डॉ सीमा धाबाई , डॉ पंकज रावल, डॉ जयसिंह जोधा, डॉ दिलीप चौधरी, डॉ राजेश शर्मा, डॉ नरदेव सिंह, डॉ मोनिका दवे, डॉ चंद्रेश छातलानी, डॉ हेमंत साहू, निजी सचिव केके कुमावत, डॉ यज्ञ आमेटा, विद्यापीठ के डीन डायरेक्टर्स व शोधार्थी उपस्थित रहे।