देश विदेश के 258 से अधिक प्रतिभागियों ने लिया भाग
– शांति मन की स्थिति, सत्य, प्रसन्नता और आत्मविश्वास से संभव – प्रो. सारंगदेवोत
– सत्य और संतोष से मिलती है शांति – वाटरमैन डॉ. राजेन्द्र सिंह
उदयपुर 26 अप्रेल । राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय के संघटक लोकमान्य तिलक शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय की ओर से आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी ’शांति शिक्षा – विचार एवं कर्म’ का शनिवार को गरिमामय समापन हुआ। संगोष्ठी में देश-विदेश से 258 से अधिक शिक्षाविद्, शोधार्थी और विशेषज्ञों ने सहभागिता की। संगोष्ठी का शुभारंभ अतिथियों द्वारा माॅ सरस्वती की प्रतिमा पर पुष्पांजलि एवं दीप प्रज्जवलित कर किया।
अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने कहा कि शांति मन की स्थिति है, जो बाहरी और भीतरी दोनों स्तरों पर होती है। भीतरी शांति से ही आनंद की प्राप्ति संभव है। शांति, भाव और उसकी तटस्थता पर बहुत निर्भर करती है। प्रसन्नता और सत्य के साथ ज्ञान मिलने पर ही शांति प्राप्त होती है। विश्वास करना और विश्वास जीतने के लिए आत्मविश्वास आवश्यक है, जो संतोष और शांति के मार्ग को प्रशस्त करता है। शरीर और मस्तिष्क की शुद्धता तथा आध्यात्मिक प्रगति के बाद ही शांति के मार्ग पर बढ़ा जा सकता है। तनाव और संघर्ष के अंत के लिए सार्वभौमिक वैश्विक मूल्यों को अपनाना और व्यवहार में लाना आवश्यक है, क्योंकि विश्व जिस हथियारों की होड़ में खड़ा है, उस वातावरण में शांति बनाए रखने के लिए सकारात्मक विचारों वाले मानस, सामाजिक मूल्यों युक्त बंधनों और कृतज्ञता को अपनाना आवश्यक है। कर्म को करुणा से करने पर ही शांति संभव हो सकती है।
समापन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में ’जलपुरुष’ प्रो. राजेन्द्र सिंह (वाटरमैन ऑफ इंडिया) उपस्थित रहे। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि जल संरक्षण और प्रकृति के प्रति सद्भाव से भी शांति का मार्ग प्रशस्त होता है। उन्होंने आह्वान किया कि शिक्षा संस्थानों को सामाजिक सरोकारों से जुड़कर शांति स्थापना के प्रयासों में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। उन्होंने संतोष और शांति के माध्यम से संगोष्ठी के विषय पर विचार रखे। उन्होंने कहा कि शांति आत्मा से सीधे संबंधित है, जो हमारी आत्मा को पोषित करती है। शांति को बिना सत्य की खोज किए, बिना सत्य को जाने प्राप्त नहीं किया जा सकता। शिक्षा आज व्यक्तित्व को लालच और स्वार्थी बनाने की दिशा में काम कर रही है, जिससे हिंसा बढ़ रही है। शांति के लिए सत्य को जानकर उसका अनुसरण करना पड़ेगा। जब हम अनुशासन के साथ सत्य का अनुसरण करते हैं तो जान पाते हैं कि हम अपने जीवन में कहाँ हिंसा कर रहे हैं और कहाँ अहिंसा का पालन कर रहे हैं। शांति की खोज सत्य की खोज के साथ शुरू होती है। सत्य के साथ समाधान और संतोष की मदद से शांति प्राप्त की जा सकती है। शिक्षा को संस्कृति और प्रकृति के संबंध की समरसता और एकरूपता को पहचानते हुए समाज में आगे बढ़ाना चाहिए, तभी भारत फिर से विश्वगुरु बन सकता है। इसके लिए हमें लक्ष्मी के लालच का त्याग करना होगा।
विशिष्ट अतिथि प्रो. विजयलक्ष्मी चैहान ने कहा कि शिक्षा को केवल डिग्री प्राप्ति का माध्यम न मानकर मानवीय मूल्यों के संवाहक के रूप में देखना चाहिए। जब शिक्षा में करुणा, सहिष्णुता और सेवा का समावेश होगा, तभी वैश्विक शांति संभव होगी। उन्होंने शांति की वर्तमान आवश्यकता और परिप्रेक्ष्य को रेखांकित किया तथा 3भ् और मनोवैज्ञानिक आधारों से संगोष्ठी के विषय को स्पष्ट किया। साथ ही शिक्षक की बालक के निर्माण में भूमिका और शांति के निर्माण के सहसंबंध को भी रेखांकित किया।
प्रारंभ में प्राचार्य प्रो. सरोज गर्ग ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि शिक्षा के माध्यम से ही स्थायी शांति संभव है और यह विचारों तथा कर्मों के संतुलन से फलीभूत होती है।
संगोष्ठी की रिपोर्ट और अनुशंसाओं का वाचन डॉ. रचना राठौड़ ने किया। उन्होंने बताया कि दो दिनों में विभिन्न सत्रों में शांति शिक्षा के सैद्धांतिक और व्यावहारिक पहलुओं पर गहन मंथन हुआ। प्रतिभागियों ने संगोष्ठी को अत्यंत ज्ञानवर्धक और प्रेरणादायक बताते हुए अपने विचार साझा किए।
कार्यक्रम के दौरान डॉ. अमित दवे की लिखी पुस्तक ’सफलता के शिखरों से हुंकार न भर’ का विमोचन भी किया गया, जिसमें शांति शिक्षा से जुड़े नवीन शोध और विचारों को संकलित किया गया है।
संचालन डाॅ. अमी राठौड़, डाॅ. हरीश चैबीसा ने किया जबकि आभार डाॅ. सुनिता मुर्डिया ने जताया।
संगोष्ठी में गौरव भट्ट, इंडोनेशिया के बाली से आए आशीष दाधीच सहित अन्य विदेशी प्रतिभागियों ने संगोष्ठी में अपने बहुमूल्य अनुभव और विचार साझा किए।
ओपन हाउस एवं तकनीकी सत्रों में विविध विषयों पर विमर्श : संगोष्ठी में 6 विभिन्न देशों तथा भारत के 6 राज्यों से 258 प्रतिभागी शामिल हुए। दो दिवसीय कार्यक्रम के दौरान 238 से अधिक शोधपत्रों का वाचन किया गया। इनमें से 85 ऑफलाइन और 153 ऑनलाइन शोधपत्र प्रस्तुत किए गए। दूसरे दिन आयोजित तकनीकी सत्रों में ’सार्वभौमिक शांति को बढ़ावा देने में प्राथमिक, माध्यमिक तथा उच्च शिक्षा की जिम्मेदारियाँ’, ’पारिवारिक मूल्यों की विरासत’, ’शांति और लब्धि (आईक्यू, ईक्यू, एसक्यू)’, ’मूल्य तथा शांति को पोषित करने वाली नीतियाँ’, ’जल और शांति’ जैसे विविध विषयों पर गहन विमर्श हुआ। शोधपत्र प्रस्तुतियों के साथ-साथ प्रतिभागियों ने जिज्ञासाओं और तथ्यों पर भी गंभीर चर्चा की।
कार्यक्रम में कोटा विवि की डाॅ. रश्मि बोहरा, परीक्षा नियंत्रक डाॅ. पारस जैन, डॉ. युवराज सिंह, प्रो. मधु शर्मा, प्रो. एम.पी. शर्मा, डॉ. बी.एल. श्रीमाली, डॉ. अपर्णा श्रीवास्तव सहित डीन, डायरेक्टर, विषय विशेषज्ञ और संकाय सदस्य तथा शोधार्थी उपस्थित रहे।