उदयपुर, 3 सितम्बर। केशवनगर स्थित अरिहंत वाटिका में आत्मोदय वर्षावास में मंगलवार को हुक्मगच्छाधिपति आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. ने धर्मसभा में कहा कि जैन दो प्रकार के होते हैं-जन्म सिद्ध जैन एवं कर्म सिद्ध जैन। दोनों ही प्रभु को प्रिय हैं। सच्चे जैन वही हैं जो प्रभु के सिद्धान्तों को अपने जीवन में जीते हैं। जैन वही होता है जो नमस्कार में विश्वास रखता है, तिरस्कार में नहीं परिष्कार में विश्वास रखता है, उपेक्षा में नहीं, उपकार में विश्वास करता है, उपहास में नहीं सहयोग में, धन में नहीं धर्म में विश्वास करता है, द्वेष में नहीं प्रेम में विश्वास करता है। जैन धर्म रहेगा तो जीव बचेगा, जीव बचेगा तो जगत बचेगा। उपाध्याय श्री जितेश मुनि जी म.सा. ने कहा कि जहां मोह नहीं, माया नहीं, कर्म नहीं, काया नहीं, वहां अमिट सुख होता है। क्रियमाण कर्म निष्काम होते हैं। उदीयमान कर्म प्रतिपल बंधते व उदय में आते हैं। पाप से संचित व पुण्य से संचित कर्मों को भी भोगे बिना छुटकारा नहीं मिलता। कर्मोदय की वेला में भक्ति का अवलम्बन लेने से समभाव आ जाता है। श्रद्धेय श्री रत्नेश मुनि जी म.सा. ने फरमाया कि श्रावक को सौम्य होना चाहिएा। मन की सच्चाई हमें सौम्य बनाती है। मीडिया प्रभारी डॉ. हंसा हिंगड़ ने बताया कि महासती श्री कुमुदश्री जी म.सा., नन्दिता श्री जी म.सा. व सिद्धिश्री जी म.सा. ने चौदह स्वप्न पहचानो प्रतियोगिता करवाई। विजेताओं को महिला संघ द्वारा पुरस्कृत किया जाएगा।
सच्चे जैन वही हैं जो प्रभु के सिद्धान्तों को अपने जीवन में जीते हैं : आचार्य विजयराज
