उदयपुर। सकल जैन समाज की अग्रणी संस्था श्री मेवाड़ जैन युवा संस्थान द्वारा जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव आज जन्मोत्सव रविवार को उदयपुर मंे धूमधाम से मनाया जायेगा। जिसकी तैयारियंा पूरी की जा चुकी है। शहर में निकाली जाने वाली रैली के मार्ग में 14 स्वागत द्वार लगाये गये है। बीच राह में अनेक स्थानेां पर श्रद्धालुओं का स्वागत किया जायेगा एवं प्रभावना वितरीत की जायेगी।
ऐसे प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव का जन्म एवम् तप कल्याणक पूरे विश्व में आज के दिन तप त्याग साधना पूर्वक साधुजनों के लिये ,आप और हम सबके लिए प्रभु के कल्याणक प्रभु की पूजा- आराधना-शोभायात्रा-प्रवचन श्रवण के माध्यम से हमारी झीलो की नगरी उदयपुर में अपार जन समूह के मध्य भव्य शोभायात्रा श्रीजी के गजरथ के साथ मुनि-आर्यिका-श्रावक-श्राविका चतुर्विद संघ की उपस्थिति में के साथ अपूर्व उत्साह के साथ पंचायती नोहरे में मनाया जायेगा।
इस भव्य कार्यक्रम में गणिनी आर्यिका १०५ श्री सुप्रकाशमति जी ससंघ, गणिनी आर्यिका १०५श्री भरतेश्वरमति जी ससंघ,आर्यिकारत्न १०५ श्री प्रसन्नमति जी ससंघ की पावन निश्रा में सकल दिगंबर जैन समाज के प्रमुख शांतिलाल वेलावत, महेंद्र टाया, पारस सिंघवी,सेठ शांतिलाल गदावत,सुरेश पदमावत, ऋषभ जसींगोत,सुमतिलाल वालावत,जनकराज सोनी,अशोक गोधा,दिनेश सोनी,रमेश वगेरिया, सुन्दरलाल डागरिया,सुरेश पाटनी,बृजमोहन गर्ग,दिनेश नागदा, शांतिलाल नागदा, योगेश आखावत, राजेश परतीयोत आदि की गरिमामयी उपस्थिति में एवम् संस्थान के सभी पदाधिकारियों के कुशल नेतृत्व में उल्लास उमंग पूर्वक आयोजित की जा रही है।
बताया गया कि ऋषभदेव भगवान जिन्हें आदिनाथ ,वृषभदेव ,आदिब्रह्मा ,प्रजापिता युगसृष्ठा, पुरुदेव, नाभिदेव आदि १००८ नामों से जाना जाता है। ऐसे अनादिनिधन जैन धर्म के आदिनाथ भगवान का जन्म तृतीय काल के अंत में अयोध्या नगरी के महाराज नाभिराय माता मरुदेवी के आँगन में हुआ। ये वे ही आदिनाथ स्वामी है जिनका उल्लेख सनातन धर्म के वेदों में आठ अवतारों में उद्धृत है। अपने जीवन में 84 लाख पूर्व(वर्ष)की आयु धारण करने वाले महाराज ऋषभदेव का विवाह यशस्वती एवम् सुनंदा नाम राजकन्याओं से हुआ। जिनसे प्रथम पुत्र भरत चक्रवर्ती जिनके नाम से हमारे देश का नाम भारतवर्ष पड़ा। द्वितीय कामदेव बाहुबली जिनकी विश्व विख्यात प्रतिमा दक्षिण भारत के श्रवणबेलगोला में उत्तुंग खड़ी है ऐसे 101 पुत्र एवम् ब्राह्मी -सुंदरी नामक दो पुत्रिया हुई जिनसे प्राचीन काल में प्रचलित ब्राह्मी लिपि हुई। अपने जीवनकाल में महाराजा ऋषभदेव ने प्रजा को जीवनयापन हेतु असि ,मसि,कृषि, विद्या ,शिल्प, वाणिज्य ऐसे षट्कर्म का उपदेश दिया जिससे की सभी मनुष्य जीविकोपार्जन कर सकें।
चैत्र कृष्णा नवमी को जन्में प्रभु अपने जन्मोत्सव पर राज़दरबार में राजनर्तकी नीलांजना का नृत्य देख रहे है तत्क्षण मृत्यु को प्राप्त जीवन की नश्वरता का आभास होते ही प्रभु ने संसार को त्याग कर प्रयागराज वन में जाकर निर्ग्रंथ दीक्षा धारण कर ली। प्रभु को दीर्घ तप के उपरांत केवलज्ञान की प्राप्ति हुई एवम् अपनी आयु को निकट जानकर कैलाश पर्वत सिद्ध क्षेत्र से प्रभु आदिनाथ ने निर्वाण पद को प्राप्त किया। ऐसे आदिनाथ भगवान जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर उनसे लेकर वर्तमान शासन नायक श्री महावीर स्वामी चौबीसवंे तीर्थंकर हुए।
धमूधाम से आज मनेगा ’प्रथमेश ऋषभदेव का जन्मोत्सव, तैयारियां पूरी
