-अधिवक्ता परिषद इकाई एवं जनजाति सुरक्षा मंच की ओर से अनुच्छेद 342 एवं डॉ कार्तिक उरांव विषय पर संगोष्ठी आयोजित
उदयपुर। सांसद डॉ मन्नालाल रावत ने कहा कि अनुसूचित जाति की तर्ज पर ही अनुसूचित जनजाति की परिभाषा तय होनी चाहिए। देश की 700 से अधिक जनजातियों के विकास एवं उन्नति के लिए संविधान निर्माताओं ने आरक्षण एवं अन्य सुविधाओं का प्रावधान किया था, लेकिन इन सुविधाओं का लाभ उन जनजातियों के स्थान पर ऐसे लोग उठा रहे हैं जो अपनी जाति छोड़कर ईसाई या मुस्लिम बन गए हैं।
सांसद डॉ रावत ने बुधवार को डॉ कार्तिक उरांव के जन्म शताब्दी वर्ष के मौके पर अधिवक्ता परिषद इकाई एवं जनजाति सुरक्षा मंच, उदयपुर के सांझे में अनुच्छेद 342 एवं डॉ कार्तिक उरांव विषय पर आयोजित संगोष्ठी में बोल रहे थे। बुधवार को डॉ कार्तिक उरांव का जयंती दिवस भी था।
डॉ रावत ने कहा कि जनजातियों को अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में रखकर उनके लिए न्याय और विकास को सुनिश्चित करने के लिए आरक्षण एवं अन्य विशेष प्रावधान किए गए हैं। जैसे कि जनजाति उपयोजना हेतु वित्तीय प्रावधान, कस्टमरी लॉज (रीति – रिवाज), वन अधिकार एवं अन्य प्रावधान शामिल हैं। इन प्रावधानों पर विशेष निगरानी हेतु राष्ट्रपति तथा राज्यपाल को विशेष अधिकार दिए गए हैं। चूंकि जनजातीय समुदायों को यह सुविधाएं एवं अधिकार अपनी संस्कृति, आस्था एवं परंपरा की सुरक्षा करते हुए विकास करने हेतु सशक्त बनाने के लिए प्रदान किये गए थे। किंतु यह बहुत ही दुर्भाग्य की बात है कि कुछ जनजातीय समुदायों के धर्मांतरित लोग जो अपनी संस्कृति, आस्था, परंपरा को त्याग कर ईसाई या मुसलमान हो गए हैं, वह सभी इन सुविधाओं का 80 प्रतिशत लाभ मूल जनजाति समुदाय से छीन रहे हैं।
संवैधानिक विसंगति के कारण अपने अधिकारों से वंचित देश भर की जनजातियों ने 30 अप्रैल 2006 को रायपुर में जनजाति सुरक्षा मंच का गठन किया। इस मौके पर देशभर के 14 राज्यों के 85 जनजाति प्रतिनिधियों ने इस कार्य में अपनी भागीदारी सुनिश्चित की। इस मंच का एकमात्र उद्देश्य जनजाति समाज में से धर्मांतरित होकर अपने पूर्वजों (परंपरागत सनातन) के धर्म को छोड़कर ईसाई या मुस्लिम बनकर आरक्षण का लाभ उठाने वालों के विरुद्ध आवाज उठाना है और वास्तविक जनजाति समाज को उनका अधिकार दिलाने में सहायता करना है।
डॉ रावत ने समाज से अपेक्षा की कि जनजाति सुरक्षा मंच का मत यह है कि भारत की जनजातियों को उनका हक मिलना चाहिए ताकि वह अपना सार्वांगिक विकास कर सकें। मंच का राजनीतिक दलों से यह अनुरोध है कि वह अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित सीट पर धर्मांतरित व्यक्ति को टिकट नहीं दें। ऐसे लोग जो समाज के लिए कुछ करना चाहते हैं वे जनजातीय समाज के साथ हो रहे इस अन्याय की लड़ाई में हमारे साथ खड़े हो और ग्राम पंचायत से लेकर सामाजिक पदों पर बैठे धर्मांतरित व्यक्तियों को बेनकाब करें।
संगोष्ठी में राजस्थान वनवासी कल्याण परिषद के प्रदेश संगठन मंत्री जगदीश कुलमी, प्रदेश संयोजक लालू राम कटारा, अधिवक्ता परिषद के अध्यक्ष मनीष शर्मा तथा महामंत्री डॉ विष्णु शंकर पालीवाल ने भी अपने विचार रखे। संगोष्ठी में भाजपा जिलाध्यक्ष गजपाल सिंह राठौड, महामंत्री पंकज बोराणा, खूबीलाल सिंघवी, एडवोकेट दीपक शर्मा, दिनेश गुप्ता, गौरव जैन, नवरन मेनारिया, प्रकाश टेलर, रामलाल मेघवाल, वंदना उदावत, महेंद्र ओझा, पूनमचंद मीणा व राजेंद्र सिंह राठौड सहित कई अधिवक्ता उपस्थित थे।
अनुसूचित जाति की तर्ज पर ही अनुसूचित जनजाति की परिभाषा तय हो: सांसद डॉ रावत
