—हल्दीघाटी विजय सार्द्ध चतु: शती समारोह के प्रथम सोपान का समापन
—महाराणा प्रताप की शौर्यगाथा से जुड़ी लघु चित्र प्रदर्शनी ने सभी को किया आकर्षित
उदयपुर, 25 जून। सनातन संस्कृति और शिक्षा पद्धति को अंग्रेजों ने योजनाबद्ध ढंग से क्षतिग्रस्त किया, पर अब युवा पीढ़ी सही इतिहास से परिचित हो रही है।
यह बात राज्य के जनजाति विकास मंत्री बाबूलाल खराड़ी ने बुधवार को यहां प्रताप गौरव केन्द्र राष्ट्रीय तीर्थ के तत्वावधान में चल रहे हल्दीघाटी विजय सार्द्ध चतु: शती समारोह के प्रथम सोपान के समापन पर मुख्य अतिथि के रूप में कही। उन्होंने कहा कि महाराणा प्रताप की संघर्षमयी यात्रा कुंभलगढ़ में जन्म के साथ ही प्रारंभ हो गई थी। उन्होंने जीवन भर मातृभूमि की रक्षा के लिए संघर्ष किया और किसी भी प्रलोभन के आगे नहीं झुके। उन्होंने भामाशाह और राणा पूंजा के योगदान की सराहना की। उन्होंने भगवान श्रीराम के आदर्शों की चर्चा करते हुए राष्ट्र की रक्षा को सर्वोच्च कर्तव्य बताया और कहा कि यही भावना महाराणा प्रताप में भी विद्यमान थी।
प्रताप गौरव केन्द्र के निदेशक अनुराग सक्सेना ने प्रथम सोपान की जानकारी देते हुए कहा कि 18 से 25 जून तक के प्रथम सोपान के तहत हल्दीघाटी की धरा पर राष्ट्र चेतना यज्ञ, हल्दीघाटी से उदयपुर तक हल्दीघाटी विजय संदेश यात्रा के बाद मेवाड़ लघु चित्र शैली व पुरा लिपि कार्यशालाओं के आयोजन के दौरान वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप और हल्दीघाटी के इतिहास को लेकर जो विमर्श खड़ा हुआ है उसे एनसीईआरटी और अन्य राष्ट्रीय संस्थानों के सहयोग से वैश्विक स्तर पर स्थापित किया जाना चाहिए, ताकि महाराणा प्रताप की गाथा युवा पीढ़ी तक पहुंच सके।
समारोह में विशिष्ट अतिथि राजसमंद विधायक डॉ. दीप्ति किरण माहेश्वरी ने कहा कि मेवाड़ की धरा पर जन्म लेना हम सभी का सौभाग्य है। यह क्षेत्र दुनिया भर में शौर्य, बलिदान और संस्कृति के लिए जाना जाता है। उन्होंने कहा कि इतिहास में भ्रम फैलाने के प्रयास हुए, लेकिन प्रताप गौरव केंद्र की समर्पित टीम नई पीढ़ी तक सही जानकारी पहुंचाने का प्रशंसनीय कार्य कर रही है।उन्होंने इस मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए हरसंभव सहयोग का आश्वासन भी दिया।
विशिष्ट अतिथि के रूप में ही उपस्थित जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ डीम्ड टू बी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. शिवसिंह सारंगदेवोत ने अपने उद्बोधन में हल्दीघाटी युद्ध को भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम बताते हुए कहा कि राजस्व रेकॉर्ड, ताम्रपत्र और विभिन्न ऐतिहासिक प्रमाण यह सिद्ध करते हैं कि महाराणा प्रताप की ही विजय हुई थी। उन्होंने चेतक, हकीम खां सूर और अन्य योद्धाओं की वीरता का स्मरण करते हुए प्रसिद्ध इतिहासकार देवकरण राठौड़ के प्रसंगों को भी साझा किया। उन्होंने महाराणा प्रताप की दो तलवार रखने की परंपरा का उल्लेख करते हुए कहा कि अगर शत्रु की तलवार टूट जाती तो वे अपनी तलवार उसे दे देते थे, यह उनकी उदात्त सैन्य नैतिकता को दर्शाता है।
विशिष्ट अतिथि के रूप में ही पश्चिमी क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र के प्रोग्राम एग्जीक्यूटिव हेमंत मेहता ने इस आयोजन के तहत हुई कार्यशालाओं को मील का पत्थर बताते हुए इसे युवा पीढ़ी के लिए अत्यंत उपयोगी बताया, साथ ही ऐसे प्रयासों को निरंतर बनाए रखने की आवश्यकता जताई।
समारोह के अंतर्गत आयोजित पुरालेख, पुराभाषा एवं भाषा विज्ञान कार्यशाला तथा मेवाड़ की लघुचित्र शैली पर आधारित कला शिविर की गतिविधियों का अतिथियों ने अवलोकन किया। समापन दिवस पर शिविर के दौरान निर्मित चित्रों की प्रदर्शनी देख अतिथि अभिभूत हो गए। कला कार्यशाला के संयोजक प्रो. रामसिंह भाटी ने बताया कि भारतीय संस्कृति की पहचान मेवाड़ की लघुचित्र शैली है और इस शिविर के माध्यम से कला विद्यार्थियों और शोधार्थियों को इससे परिचित कराना प्रमुख उद्देश्य रहा।
वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप समिति के उपाध्यक्ष मदन मोहन टांक ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया। संचालन प्रताप गौरव शोध केन्द्र के शोध अधीक्षक डॉ. विवेक भटनागर ने किया। इससे पूर्व, अतिथियों का स्वागत समिति के सुभाष भार्गव, डॉ. सुहास मनोहर, जयदीप आमेटा, चंद्रगुप्त सिंह चौहान आदि ने किया।