दीक्षा वहीं ले जिसके मन में असंयम से संयम की ओर बढ़ने का भाव आयें :कृतार्थप्रभाश्री

उदयपुर। सूरजपोल स्थित दादाबाड़ी में साध्वी कृतार्थप्रभा श्रीजी ने कहा कि आज का दिन परमात्मा नेमिनाथ का जन्म कल्याणक है। हम तो आने जन्मदिन को जन्मदिन कहते हैं परमात्मा के जन्मदिन को कल्याणक कहते हैं। परमात्मा के कैवल्य ज्ञान दिवस को कैवल्य कल्याणक कहते हैं। परमात्मा को अपने जन्म के बाद मालूम है कि इसके बाद उनका कल्याण होना है। माता के गर्भ में आते हैं तब पहले इंद्र को पता चलता है कि परमात्मा ने जन्म लिया है। दीक्षा, मोक्ष, जन्म, कैवल्य कुछ भी हो कल्याणक इसीलिए कहते हैं।
देवलोक में सुख और दुख दोनों होते हैं। परमात्मा सुख त्यागकर यहां क्यों आये क्योंकि च्यवन कल्याणक के बाद जन्म कल्याणक होता है। जन्म कल्याणक यह संदेश देता है कि नौ महीने तक गर्भ रूपी कोठरी में उल्टा रहा। इसके बाद मुक्ति मिल जाएगी। आप भी प्रण लें कि ये अंतिम हो, इसके बाद जन्म नहीं लेना है। तीसरा दीक्षा कल्याणक। अंदर से वैराग्य जागे तभी दीक्षा ले सकते हैं। परमात्मा ने संयम का मार्ग बताया खुद के कल्याण के लिए। गरीब-अमीर का कोई अर्थ नहीं। दीक्षा वही लेगा जिसके मन में असंयम से संयम की ओर बढ़ने का भाव आता है। भगवान नेमिनाथ की शादी नही हुई। जो था सब दान देना शुरू किया। एक वर्ष बाद दीक्षा हुई। दान सिर्फ पुण्यशाली ही ले सकता था। जो ज्यादा पुण्य करके आया परमात्मा के हाथों से उसे दान मिला। दीक्षा कल्याणक का संदेश यह कि संसार मेजन जितने भी जीव हैं उनकी आत्मा को नही दुखाना हो तो आगे बढ़ो, कल्याणक के दिन संकल्प करो कि जीवों को दुख नाही देना है। कैवल्य कल्याणक यांकी शरीर की सेवा नहीं करनी। सिर्फ आंखों को छोड़कर सब त्याग दिया। दीक्षा के 56 दिन होते ही उन्हें कैवल्य ज्ञान हुआ। अंतिम मोक्ष कल्याणक यानी मोक्ष प्राप्त किया। साध्वी विरलप्रभा श्रीजी ने गीत प्रस्तुत किया।

By Udaipurviews

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