मित्रता की मर्मस्पर्शी व्याख्या के साथ भागवत कथा का भावपूर्ण समापन
उदयपुर, 31 मई। “जिसके पास देने को कुछ नहीं, फिर भी स्नेह और श्रद्धा से जब वह मित्र के द्वार पर आता है, तो प्रभु स्वयं दौड़ पड़ते हैं… यही है सुदामा-कृष्ण की मित्रता की पराकाष्ठा।”
छोटी ब्रह्मपुरी स्थित सहस्त्र औदीच्य धर्मशाला में चल रही सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के अंतिम दिन के प्रसंगों ने भक्तों को भावविह्वल कर दिया। पूर्णाहुति पर श्रीकृष्ण-सुदामा मिलन के प्रसंग के दौरान श्रद्धालुओं की आंखें नम हो गईं। कथावाचक पं. राकेश मिश्रा महाराज की वाणी में करुणा, प्रेम और आत्मीयता की अभिव्यक्ति ने पूरे पांडाल को मानो द्वारका बना दिया।
महाराजश्री ने कहा, “सुदामा ने न धन मांगा, न वैभव। उन्होंने तो मित्र मिलन की भावना से द्वारिका का मार्ग पकड़ा था। और कृष्ण, जो समस्त ऐश्वर्य के अधिपति हैं, वे नंगे पांव दौड़ पड़े अपने गरीब ब्राह्मण मित्र को देखने। यह कथा हमें सिखाती है कि सच्चा मित्र वही है जो आपकी स्थिति नहीं, आपके स्नेह को देखता है।”
पं. राकेश मिश्रा महाराज ने बड़े ही मार्मिक शब्दों में वर्णन किया कि— “सुदामा की झोली में भले ही चावल थोड़े थे, पर भाव गंगाजल सा निर्मल था। और कृष्ण ने उन्हें किसी राजा की तरह नहीं, एक आत्मीय प्रिय बंधु की तरह आलिंगन में भर लिया।” जब उन्होंने ‘मुझे तुमने दाता बहुत कुछ दिया…’ भजन गाया, तो कथा पंडाल में उपस्थित जनसमूह की भावनाएं छलक उठीं।
भावनाओं से भरे इस अंतिम दिवस पर भगवान श्रीकृष्ण के विभिन्न विवाह प्रसंगों, जरासंध के वध, शिशुपाल एवं दंतवक्र के उद्धार की घटनाओं का वर्णन हुआ। कथा में राजा परीक्षित के मोक्ष प्राप्ति का प्रसंग भी आया, जिसमें मृत्यु के सामने भी भागवत कथा श्रवण का महत्व बताया गया।
कथा संयोजक सुनील व्यास ने बताया कि कथा समापन के पश्चात भागवत पोथी की शोभायात्रा गाजे-बाजे और मंगलगीतों के साथ निकाली गई। आरती और महाप्रसाद वितरण के साथ आयोजन का समापन हुआ। समाजसेवी जितेंद्र व्यास, राजेंद्र त्रिवेदी, सुधीर व्यास, निधि व्यास, डोली व्यास, विपिन शर्मा, रंजन रावल और अनिता त्रिवेदी सहित कई श्रद्धालुओं ने महाराजश्री का पुष्पवर्षा कर अभिनंदन किया।
नंगे पांव दौड़े श्रीकृष्ण, लगाया सुदामा को गले, और छलक पड़ीं सभी की आंखें
