*21 सी सदी के विद्वानों का संस्कृत साहित्य को योगदान*
साहित्य संस्थान, जनार्दनराय नगर राजस्थान विद्यापीठ (डीम्ड टू बी विश्वविद्यालय), उदयपुर एवं राजस्थान संस्कृत अकादमी, जयपुर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी *21 सी सदी के विद्वानों का संस्कृत साहित्य को योगदान* विषय साहित्य संस्थान के सभागार में आयोजित की गई। कार्यक्रम के प्रारंभ में अतिथियों द्वारा मां सरस्वती वंदना के पश्चात कार्यक्रम को विधिवत रूप से प्रारंभ किया गया।
कार्यक्रम के प्रारंभ में डॉ महेश आमेटा ने संस्थान की गतिविधियों एवं संस्कृत दिवस के अवसर पर संस्कृत भाषा एवं 21वीं सादी के विद्वानों का संस्कृत साहित्य में योगदान पर अपने विचार व्यक्त किये।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रो जीवनसिंह खरकवाल, निदेशक, साहित्य संस्थान ने अपने विचार व्यक्त करते हुए बताया कि संस्कृत आमजन की भाषा रही है, परन्तु वर्तमान में यह आमजन की भाषा नहीं रही है, परन्तु हमें घबराने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि वेद संस्कृत में लिखे गए हैं और वर्तमान युग में इसकी बहुत प्रासंगिकता है। वैज्ञानिक वेदों का सहयोग ले रहे हैं। हमें सिर्फ इसमें छुपे ज्ञान को निकालना है।
कार्यक्रम के प्रथम मुख्यवक्ता प्रो नीरज शर्मा, संस्कृत विभागाध्यक्ष, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर ने 21वीं सादी के विद्वानों का संस्कृत को योगदान विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि 21 शताब्दी संस्कृत रचनात्मक योगदान की दृष्टि स्वर्णिमकाल कहा जा सकता है । 21 वीं शताब्दी की संस्कृत रचनाधर्मिता विविधता से परिपूर्ण है जिसमें एक ओर समकालीन जीवन और परिवेश के संघर्ष, पीड़ा और विषमताओं को विषय बनाया गया है वहीं दूसरी ओर पश्चिमी जगत और पूर्वी जगतके रचना विधान और विषयों को भी संस्कृत ने आत्मसात किया है । 21 में शताब्दी में परंपरागत महाकाव्य खंडकाव्य, नाटक आदि के साथ-साथ संस्कृत में अनेक यात्रा वृतांत, डायरी और जीवनियाँ भी लिखी गई हैं। संस्कृत में पत्रकारिता ने भी अपना स्थान बनाया है जहां आकाशवाणी और दूरदर्शन की संस्कृत वार्ता के अलावा भी आज दर्जनों संस्कृत पत्र पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही हैं।
कार्यक्रम के दूसरे मुख्य वक्ता डॉ भगवती शंकर व्यास, प्राचार्य, राजकीय वरिष्ठ उपाध्याय संस्कृत विद्यालय, उदयपुर ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि 21 वीं सदी में आधुनिक तकनी की और संचार माध्यम की क्रांति की सदी है। नित नूतन आविष्कारों में आज की युवा पीढ़ी अपनी संस्कृति और पवित्र संस्कृत भाषा को भूलती जा रही है। इसे पिछड़ेपन के प्रतीक के रूप में या पौराणिक भाषा के रूप में ही स्वीकार कर रही है ऐसे वातावरण में, संस्कृत भाषा के विद्वानो का दायित्व है कि इस वैज्ञानिक भाषा को आधुनिक युग के अनुरूप प्रचारित करने में योगदान करें।
संस्कृत भाषा में आयुर्वेद के अनेक ग्रन्थ है उन ग्रन्थों का सरल संस्कृत, हिन्दी व अन्य भाषाओं में अनुवाद करके संमृद्ध के प्रति युवाओं को जागरूक किया जा सकता है। विज्ञान शास्त्रीय (व्याकरणनिष्ठ) से संस्कृत को सुरक्षित रखते हुए सरल संस्कृत में आधुनिक विषयों पर साहित्य की प्रणयन करें। विद्वानो का दायित्व है कि आधुनिक तकनीकि का उपयोग करते हुए ऐसे ‘एप’ तैयार कराये जो छात्रों को अध्ययन में सहायक बने।
संस्कृत भाषा को विज्ञान के साथ जोड़ने के लिए प्राचीन ग्रन्थो में जो भी विज्ञान – ज्योतिष – चिकित्सा विषयक विशेषताएँ है उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसारित करने हेतु आलेख लिखें।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए डॉ कुलशेखर व्यास, ने कहा कि वेद हमारी निधि है, इसमें सभी विषयों का ज्ञान है, हमें इसका अध्ययन करना चाहिए और आगे आने वाली पीढ़ी को इससे रूबरू करना चाहिए। साथ ही उन्होंने संस्थान द्वारा प्रतिवर्ष संस्कृत दिवस पर आयोजित कार्यक्रम के बारे में जानकारी दी।
कार्यक्रम के अंत में मुख्य वक्ताओं को मानदेय, प्रमाण पत्र, मोमेंटो, उपरणा से नवाजा गया। साथ ही उदयपुर के विभिन्न स्कूलों के विद्यार्थियों को संस्कृत दिवस के अवसर पर संस्कृत श्लोक प्रतियोगिता का आयोजन भी किया गया, जिसके अंतर्गत प्रथम द्वितीय तृतीय विद्यार्थियों को पुरस्कृत किया गया।
कार्यक्रम में डा सुरेन्द्र द्विवेदी, डा उग्रसेन राव, चैनशंकर दशौरा, डा विवेक भटनागर, डा मनीष श्रीमाली, डा तिलकेश आयेगा, डा मिनेश भट्ट, डा लता श्रीमाली, लव वर्मा, यण पालीवाल, शोयब कुरेशी, संगीता जैन, कमला शर्मा, एवं शहर के गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।