– पाश्र्वनाथ साधना स्थली जमुनियाकलां में साध्वी देवेन्द्रश्रीजी का महाप्रयाण
उदयपुर 21 अक्टूबर। श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्वावधान में तपागच्छ की उद्गम स्थली आयड़ तीर्थ पर रविवार को मध्यप्रदेश में धर्मरत्न पाश्र्वनाथ साधना स्थली जमुनियाकलां में बिराजित दीर्घ संयमी, अनुशासन प्रिया साध्वी साध्वी देवेन्द्रश्रीजी का महाप्रयाण होने पर आयड़ तीर्थ में गुणानुवाद सभा एवं देव वंदना की गई। महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि साध्वी देवेन्द्रश्रीजी ने पूर्व में दो बार आयड़ तीर्थ में चातुर्मास प्रवास किया था। गुणानुवाद सभा में साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री एवं वैराग्य पूर्णाश्री ने साध्वी देवेन्द्रश्रीजी के गुणों के बारे में बताते हुए कहां कि प्रत्येक युग में किसी न किसी एक ऐसी भव्य आत्मा का जन्म होता है, जो अपनी आभा और महानता से संपूर्ण विश्व को आलोक मय कर देता है। वह अपने युग और काल में सड़े-गले एवं घिसे-पिटे आचार-विचार और विश्वास में नूतनता का संचार कर नई दिशा निश्चित करता है। वह मन के तेज से निष्ठा की प्रगाढता तथा अटूट आस्था और समाज को विकृति से हटाकर संस्कृति की ओर अग्रसर करता है। ऐसी ही बहुमुखी प्रतिभा की धनी थी पूज्य साध्वी देवेन्द्रश्रीजी जो कि मात्र 7 वर्ष की अल्पायु में दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा पर्याय उनका 69 वर्ष का रहा। वे अनुशासन प्रिय रही। जैन शासन के अनुरूप उनका हर क्षेत्र में कार्य करवाने की हरदम प्रेरणा रही। ज्ञान विकास में उनकी बाहुल्यता रही। श्रावक – श्राविका वर्ग को प्रश्नों के माध्यम से शिक्षा रहती थी! कैसा भी कार्य से उसे सफल करने में हर समय प्रयत्न शील रही। आज वल्लभ बगिया का एक फूल मुरझा गया। उनकी क्षति अपूर्णिय रहेगी। इस अवसर पर महासभा अध्यक्ष तेजसिंह बोल्या, महामंत्री कुलदीप नाहर, चातुर्मास समिति के अशोक जैन, अभय कुमार नलवाय एवं उषा बोल्या ने भी उनके संस्मरण बताये और श्रद्धा सुमन-वन्दन किया। चातुर्मास संयोजक अशोक जैन ने बताया कि आयड़ जैन तीर्थ पर प्रतिदिन सुबह 9.15 बजे से चातुर्मासिक प्रवचनों की श्रृंखला में धर्म ज्ञान गंगा अनवरत बह रही है।
आयड़़ तीर्थ में साध्वी देवेन्द्रश्रीजी की गुणानुवाद सभा एवं देव वंदना की
