भारतीय संत साहित्य एवं आध्यात्मिक चेतना विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ आयोजन
हर वर्ग के संतो ने जनजागरण कर समाज को एक करने का कार्य किया : प्रो. सारंगदेवोत
उदयपुर 11 नवंबर। गुजरात केंद्रीय विश्वविद्यालय के संत साहित्य अध्ययन केंद्र की ओर से मंगलवार को संस्थान के सभागार में “भारतीय संत साहित्य एवं आध्यात्मिक चेतना” विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। उद्घाटन में राजस्थान विद्यापीठ के कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने कहा कि भारतीय संत परंपरा ने समाज में सामाजिक चेतना, आध्यात्मिक उन्नति और मानवीय मूल्यों के संवर्धन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।
उन्होंने कहा कि संतों ने अपने साहित्य के माध्यम से समाज को एकता, समरसता और सौहार्द की दिशा प्रदान की। प्रो. सारंगदेवोत ने बताया कि संत काव्य में निहित लोकधर्म और मानवता का संदेश जाति, पंथ और धर्म की सीमाओं से ऊपर उठकर भक्ति और मन की शुद्धि की प्रेरणा देता है।
संत कवियों—कबीर, नामदेव, मीरा, चैतन्य महाप्रभु, तुलसीदास और नाथपंथ की परंपरा का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि इन संतों ने अपने आचार, विचार और साहित्य के माध्यम से समाज में समानता, सहअस्तित्व और सद्भाव की भावना को स्थापित किया। उन्होंने कहा कि संत साहित्य केवल भक्ति का नहीं, बल्कि समाज सुधार, स्त्री स्वतंत्रता, अद्वैत दर्शन, निर्गुण-सगुण भक्ति और ज्ञानमार्ग का भी प्रेरणास्रोत रहा है।
संगोष्ठी में प्रख्यात अंतरिक्ष वैज्ञानिक डॉ. ओमप्रकाश पांडे, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल, कुलपति प्रो. रामाशंकर दूबे ,अध्यक्ष प्रो. राजेश मकवाना ने भी अपने विचार व्यक्त किए। देशभर से आए विद्वानों, शोधार्थियों और प्रतिभागियों ने इस आयोजन में भाग लेकर संत साहित्य की समृद्ध परंपरा पर विमर्श किया।
कार्यक्रम के दौरान डॉ. प्रेमलता देवी द्वारा अनुवादित पुस्तक “फ्लाइंग मार्बल” का विमोचन मंचासीन अतिथियों द्वारा किया गया।
निजी सचिव कृष्ण कांत कुमावत ने बताया कि समारोह में उपस्थित अतिथियों का विद्यापीठ की ओर से कुलपति प्रो. एस. एस. सारंगदेवोत ने पगडी, उपरणा पहना एवं स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया।
