पर्युषण महापर्व : आयड़ तीर्थ में भगवान महावीर स्वामी के जन्म वांचन का अनुठा रंग जमा

कल्पसूत्र वाचन के तहत माता त्रिशला के 14 स्वप्न दर्शन की महिमा बताई
-जन्मों की परम्परा का अंत लाता है तीर्थंकर के जन्म कल्याणक का उत्सव : साध्वी जय दर्शिता
– पर्युषण महापर्व के पांचवें दिन आयड़ तीर्थ में उमड़े सैकड़ों श्रावक-श्राविकाएं
– आठ दिन तक धूमधाम से आयोजित हो रही है विविध धार्मिक क्रियाएं

उदयपुर, 24 अगस्त। तपागच्छ की उद्गम स्थली आयड़ जैन मंदिर में श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्वावधान में कलापूर्ण सूरी समुदाय की साध्वी जयदर्शिता श्रीजी, जिनरसा श्रीजी, जिनदर्शिता श्रीजी व जिनमुद्रा श्रीजी महाराज आदि ठाणा की चातुर्मास सम्पादित हो रहा है। महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि रविवार को आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में आठ दिवसीय पर्युषण महापर्व के पांचवें दिन सुबह 7 बजे साध्वियों के सानिध्य में ज्ञान भक्ति एवं ज्ञान पूजा, अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की गई।
महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि रविवार को आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में सुबह 7 बजे संतों के सानिध्य में पर्युषण महापर्व तहत आरती, मंगल दीपक, सुबह सर्व औषधी से महाअभिषेक एवं अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की गई। उसके बाद माता त्रिशला के 14 स्वपनों की अनुठी महिमा बताते हुए विविध प्रकार की पूजा-अर्चना के साथ अनुष्ठान हुए। जिसमें 13 स्वपनों की बोलियां लगाई गई एवं महावीर प्रभु के जन्म वाचन का उत्सव बड़े ही ठाठ-बाठ से मनाया गया। गाजे-बाजे व संगीतकार की स्वर लहरियों के साथ महावीर प्रभु के जन्म वांचन महोत्सव धूमधाम से मनाया गया। श्रावक-श्राविकाओं ने माता त्रिशला के 14 स्वप्नों को सिर पर लेकर नाचते-गाते चंवर ढोराते हुए आत्म वल्लभ सभागार में इस अनुष्ठान का आयोजन किया। नाहर ने बताया कि आचार्य हितवर्धन सुरिश्वर आदि ठाणा के सानिध्य में आठ दिन तक सैकड़ों श्रावक-श्राविकाएं प्रतिदिन सुबह व्याख्यान, सामूहिक ऐकासणा व शाम को प्रतिक्रमण तथा भक्ति भाव कार्यक्रम आयोजित हो रहे है।
रविवार को आयोजित धर्मसभा में साध्वी जयदर्शिता श्रीजी ने पर्यूषण महापर्व की विशेष विवेचना करते हुए बताया कि    पर्वाधिराज महापव्र पर्युषण की आराधना-साधना, उपासक का उपक्रम बहुत ही उल्लासमय वातावरण के साथ चल रहा है। आज पांचवें दिन के प्रवचन में कहां जिन शासन में जन्म का उत्सव सिर्फ तीर्थंकरों का मनाया जाता है। दूसरों का नहीं, इनका कारण है कि तीर्थंकर के जन्म कल्याणक का उत्सव भक्तों की जन्म परम्परा का अंत लाता है। अन्या के जन्मोत्सव में यह तत्व नहीं है।  साध्वी श्री ने कहा कि कर्म करने से पहले हजार बार सोचे क्यों कि आज किया हुआ कर्म कभी भी भुगतना पड़ सकता हैं। प्रभु महावीर ने अट्ठारहवें भव में शैय्या पालक के कान में गरम गरम तेल डलवाया था तो वो अंतिम भव मे उदय में आया और कान में खिले ठोके गए।  किसी भी चीज का अभिमान ना करें, क्योंकि हमारे कर्म हमें किसी न किसी रूप में भुगतने होते है। ऐसे में आवश्यकता इस बात की है कि मनुष्य भव मिलने के बाद अपने कर्मो से डरे चाहे भगवान से नहीं डरोगे तो चलेगा। क्योंकि कर्म ने भगवान को भी नही छोड़ा। भगवान की आत्मा ने कुल का अभिमान किया तो उनको भी भुगतना पड़ा। सत्ता संपत्ति रूप बल का अभिमान कभी नही करना चाहिए। जैसे अभिमान रावण का भी टूटा है। जो शक्ति मिली है उसका लोक कल्याण में सदुपयोग करें। प्रभु महावीर किसी के लिए एक शब्द हो सकते हैं तो किसी के लिए पूरी जिंदगी। प्रभु महावीर ने हमेशा पंच सिद्धांतों के आधार पर जीवन को जीने का संदेश दिया था इसलिए उनका जीवन चरित्र अद्भुत हैं। इससे पूर्व लाभार्थी परिवारों ने ज्ञान पूजा की तथा गाजे बाजे के साथ कल्पसूत्र वोराया तो पूरा पंडाल जिन शासन के जयकारों से गूंज उठा।
इस अवसर पर कुलदीप नाहर, भोपाल सिंह नाहर, अशोक जैन, अंकुर मुर्डिया, पिन्टू चौधरी, हर्ष खाब्या, गजेन्द्र खाब्या, नरेन्द्र सिरोया, संजय खाब्या, राजू पंजाबी, रमेश मारू, सुनील पारख, पारस पोखरना, राजेन्द्र जवेरिया, प्रकाश नागौरी, दिनेश बापना, अभय नलवाया, कैलाश मुर्डिया, चतर सिंह पामेच, गोवर्धन सिंह बोल्या, सतीश कच्छारा, दिनेश भंडारी, रविन्द्र बापना, चिमनलाल गांधी, प्रद्योत महात्मा, रमेश सिरोया,  कुलदीप मेहता आदि मौजूद रहे।

By Udaipurviews

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