पर्वाधिराज पर्युषण सर्व दु:ख नाशक सर्वस सुख प्रदायक है : प्रफुल्लप्रभाश्री

पर्युषण पर्व के तहत आयड़ तीर्थ पर हुए विविध धार्मिक अनुष्ठान
– साध्वियों के सानिध्य में अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की  

उदयपुर 18 सितम्बर। श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्वावधान में तपागच्छ की उद्गम स्थली आयड़ तीर्थ पर बरखेड़ा तीर्थ द्वारिका शासन दीपिका महत्ता गुरू माता सुमंगलाश्री की शिष्या साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री एवं वैराग्य पूर्णाश्री आदि साध्वियों के सानिध्य में सोमवार को पर्वाधिराज महापर्व पर्युषण के तहत धर्म-ध्यान, पूजा, पाठ, सामायिक, तप व तपस्या आदि में श्रावक-श्राविकाएं उमड़ रहे है। महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में सुबह 7 बजे दोनों साध्वियों के पर्युषण महापर्व के तहत आरती, मंगल दीपक, सुबह सर्व औषधी से महाअभिषेक एवं अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की गई।    जैन श्वेताम्बर महासभा के अध्यक्ष तेजसिंह बोल्या ने बताया कि पर्युषण महापर्व की आराधना सातवां दिन प्रवचनों की श्रृंखला में प्रात: 9.15 बजे साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री व वैराग्यपूर्णा की  निश्रा में पर्वाधिराज महापव्र पर्युषण की आराधना-साधना, उपासक का उपक्रम बहुत ही उल्लासमय वातावरण के साथ चल रहा है। श्रावक-श्राविकाओं में परमात्म भक्ति का अनुपम नजारा दृष्टिगोत हो रहा है तो प्रवचन श्रवण में भी उतना ही उत्साह नजर आ रहा है।  इस दौरान आयोजित धर्मसभा में साध्विायों ने कहा कि ने कहा कि आज पर्वाधिराज पर्युषण का सातवां मंगल दिवस है। मुझे प्रसन्नता है कि सर्वत्र जिनभक्ति-पूजन, जप, तप की लहर है। आज के कल्पसूत्र के प्रवचन में बताया कि तेईसवें तीर्थकर प्रभु पाश्र्वनाथ की लोकोत्तर महिमा तो विश्व विदित है। जैन जगत के आपके अनुपम चमत्कार विख्यात है। जीन जीवन में भक्ति की अनुपम ज्योति जागृत कर देता है प्रभु पाश्र्वनाथ का पावन चरित्र। पोष कृष्णा दशमी को विद्या की नगरी वाराणसी में राजा अश्वसेन और रानी बामा देवी के पुत्र के रूप में प्रभु पाश्र्व का जन्म हुआ। देवों ने जन्म महोत्सव मनाया। प्रभु बाल्यावस्था में ही सर्वजन प्रिय हो गए,  जो भी देखता को मन्त्रमुग्य हो था। ऐसी उनकी मनमोहक छटा थी। युवावस्था में उनका विवाह कुशस्थल के राजा प्रसेनजित की पुत्री प्रभावती के साथ हर्षोल्लास से सम्पन्न हुआ। एक बार या प्रभु पाने ज्ञान बल कमठ नामके तापस के पंचाग्नि तप कर रहा था प्रभु पा से काष्ट में जल रहे नाग-नागिन को देखा अपने सेवक के सुख से नवकार मंत्र सुनवा कर उनका उद्धार किया। प्रभु ने दीक्षा ग्रहण की। मेघमाली ने मूसलधार वर्षा करके उपसर्ग किया। आत्मसाधना करके केवलज्ञान प्राप्त कर प्रभु सम्मेतशिखर गिरी पर मोक्ष में पधारे । पश्चात् नेमिनाथ से लेकर ऋपय देव एवं बाईस तीर्थकरों के संक्षिप्त जीवनी का परिचय दिया। गणधरों की स्थिरावली का भी विवेचन बताया गया। चातुर्मास संयोजक अशोक जैन ने बताया कि आयड़ जैन तीर्थ पर पर्युषण महापर्व के तहत प्रतिदिन सुबह 9.15 बजे से चातुर्मासिक प्रवचनों की श्रृंखला में धर्म ज्ञान गंगा अनवरत बह रही है।

By Udaipurviews

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