सप्त दिवसीय कार्यक्रम की श्रृंखला में सामूहिक जाप, लघु नाटिका, 500 एकासन एवं चिकित्सकीय शिविर का आयोजन

जिनके पास सही दृष्टिकोण होता है वह अपने चिंतन को सम्यक् बना पाते हैं : आचार्य विजयराज
उदयपुर, 6 अक्टूबर। केशवनगर स्थित अरिहंत वाटिका मेें गतिमान आत्मोदय वर्षावास में आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. के जन्मोत्सव के तहत चल रहे सप्त दिवसीय कार्यक्रमों की श्रृंखला में रविवार को सामूहिक जाप, लघु नाटिका, 500 एकासन एवं चिकित्सकीय शिविर का आयोजन किया गया।
श्रीसंघ अध्यक्ष इंदर सिंह मेहता ने बताया कि रविवार को प्रातः नवकार मंत्र में नवकार मंत्र का सामूहिक जाप किया गया जिसमें 350 लोगों ने एक स्वर में नवकार महामंत्र का जाप किया गया। प्रवचन सभा में ही दिशा बड़ाला के नेतृत्व में बालकों की टीम द्वारा लघु नाटिका की प्रस्तुति दी गई। लघु नाटिका की प्रस्तुति इतनी प्रभावी रही कि हर कोई देखता ही रह गया। श्रीसंघ मंत्री पुष्पेन्द्र बड़ाला ने बताया कि इस अवसर पर अरिहंत वाटिका में निःशुल्क चिकित्सा जांच एवं परामर्श शिविर लगाया गया, जिसमें डॉ. हंसलता परमार, आयुर्वेद एवं पंचकर्म हॉस्पिटल से जुड़े डॉ. लक्ष्मीनंद भार्गव, डॉ. रविंद्र कुमार शर्मा, डॉ. नीतू जैन, डॉ. पवन जैन, डॉ. दीपक सहित 12 सदस्यों की टीम ने लभग 900 व्यक्तियों की ब्लड प्रेशर, शुगर, हिमोग्लोबिन की जांच कर परामर्श के साथ निःशुल्क औषधि भी दी। मीडिया प्रभारी डॉ. हंसा हिंगड़ ने बताया कि सप्त दिवसीय कार्यक्रम की कड़ी में रविवार को 500 सामूहिक एकासन की आराधना हुई। वहीं नारायण सेवा संस्थान के 70 से अधिक बच्चे भी आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. का आशीर्वाद लेने उपस्थित हुए, जिन्हें भी भोजन करा श्रीसंघ के द्वारा एवं राजेन्द्र नाहर के द्वारा स्टेशनरी व उपहार भेंट किए गए। जापकर्ताओं को नरपत निर्मला हरकावत की ओर से प्रभावना वितरित की गई। वहीं धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए हुक्मगच्छाधिपति आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. ने कहा कि आंखें सबको मिली हैं लेकिन दृष्टिकोण सबके पास नहीं है। दृष्टि होना एक बात है और दृष्टिकोण का होना दूसरी बात है। जिनके पास सही दृष्टिकोण होता है वे अपने चिंतन को सम्यक् बना पाते हैं। सम्यक् दर्शन का आलोक मिलने पर कर्मों का भार हल्का होता है। जरूरी है कि हम जीवन में सम्यक् चिंतन के साथ सृजन में लगें। सृजन में जो आनंद है वह संघर्ष में नहीं है। श्रद्धेय विनोद मुनि जी म.सा. ने कहा कि जिनके वचनों में सद्भाव होता है, जिनके मन में निरंतरता होती है,  जिनके मन में दूसरों के प्रति सम्मान होता है, जो विनम्र होते हैं और जो विकारों से रहित होते हैं वे सद्बोधलक्ष्मी को प्राप्त करते हैं। हम हमेशा आशावान रहें, ऊर्जावान रहें और अपने लक्ष्य को निर्धारित कर जीवन में आगे बढ़ें,  यही सद्बोध लक्ष्मी का फल है। महासती श्री सिद्धिश्री जी म.सा. ने कहा कि भक्ति तीन प्रकार की होती है-शब्दजीवी, बुद्धिजीवी और श्रद्धाजीवी। जो केवल शब्दों को पकड़ते हैं वे शब्दजीवी, जो अपनी बुद्धि का सदुपयोग करते हैं वे बुद्धिजीवी और जो गुरु के इशारे पर चलते हैं वे श्रद्धाजीवी  होते हैं। धर्म के मार्ग में हम श्रद्धाजीवी  बनें। आज के प्रवचन में अनेक वक्ताओं ने अपने विचार एवं गीत आदि प्रस्तुत किये।

By Udaipurviews

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