पांचवां दिन : साधु पद की आराधना से सिद्धत्व की प्राप्ति होती है  – साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री  

नवपद ओली के पांचवें दिन हुए विविध आयोजन
– आयड़ जैन तीर्थ में अनवरत बह रही धर्म ज्ञान की गंगा
– साध्वियों के सानिध्य में अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की  

उदयपुर 24 अक्टूबर। श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्वावधान में तपागच्छ की उद्गम स्थली आयड़ तीर्थ पर बरखेड़ा तीर्थ द्वारिका शासन दीपिका महत्ता गुरू माता सुमंगलाश्री की शिष्या साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री एवं वैराग्य पूर्णाश्री आदि साध्वियों के सानिध्य में मंगलवार को नवनद ओली के तहत विशेष पूजा-अर्चना के साथ अनुष्ठान हुए। महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में सुबह 7 बजे दोनों साध्वियों के सानिध्य में आरती, मंगल दीपक, सुबह सर्व औषधी से महाअभिषेक एवं अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की गई। जैन श्वेताम्बर महासभा के अध्यक्ष तेजसिंह बोल्या ने बताया कि विशेष महोत्सव के उपलक्ष्य में प्रवचनों की श्रृंखला में प्रात: 9.15 बजे साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री व वैराग्यपूर्णा   ने श्री नवपद की आराधना के पांचवें दिन साधु पद की आराधना के महत्व को समझाते हुए कहा कि साधुपद की आराधना से हमें ज्ञान का परम प्रकाश मिलता है। अज्ञान के अन्धेरे छूट जाते हैं। वातावरणीय कर्म निगलित हो जाते हैं ऐसा अनुपम, चमत्कारक साधुपद की निर्मत आराधना का । हमारे जैन शासन ने साधु पद का अत्यन्त ही महत्व बताया है। देवतत्त्व और धर्मतत्त्व को बताने वाले गुरु तत्व है। इसलिए उसे केन्द्र स्थान में रखा गया है। देव और धर्म के बीच मे गुरुपद का स्थान है। जिस तरह दो रूम के बीच में एक दीपक हो तो दोनों रूमों में प्रकाश हो जाता है।- उसी तरह गुरु पद का स्थान बीच में हैं। साधु पद भले ही पाँचने स्थान पर हो लेकिन चार पदों को प्राप्त करवाने वाला साधु पद है। साधुपद के बिना अरिहन्त, सिद्ध, आचार्य उपाध्याय नहीं बन सकते हैं। चार पदों को प्राप्त करने के लिए साधु पद को पहले स्वीकार करना पड़ता है। सायुपद स्तम्भ रूप है, साधुपद नींव रूप है, साधुपद मंजिल रूप है, साधुपद सिद्ध रूप हैं। ज्ञानियों ने कहा है साधु पद के बिना केवमजाल नहीं है और केवलज्ञान के बिना मोक्ष नहीं हैं। मरुदेवी माता को गृहस्थ वेश में केलकरसान हुआ था वह आम्चर्य अपवाद रूप है। भरत क्षेत्र में साधु-साध्वी, आवक-श्राविका रूपी चतुर्विध संघ विद्यमान है तब तक शासन रहेगा। जैसे ही राजु का काल धर्म हो जायेगा तब शासन जिनधर्म का भी विच्छेद हो जायेगा। इसलिए अरिहंत, सिद्ध, आत्याचे, उपाध्याय बनो पर सबसे पहले साधु बनता है । इस पद की आराधना से सबकुछ प्राप्त होता है।  चातुर्मास संयोजक अशोक जैन ने बताया कि आयड़ जैन तीर्थ पर प्रतिदिन सुबह 9.15 बजे से चातुर्मासिक प्रवचनों की श्रृंखला में धर्म ज्ञान गंगा अनवरत बह रही है।

By Udaipurviews

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