सेवानिवृत्त अधीक्षण अभियंता जी पी सोनी ने जताई चिंता
उदयपुर । शहर में आज़ादी के पहले तक शहरकोट के अंदर अधिकतर मकान एक मंजिले या दो मंज़िले होते थे। आज़ादी के बाद भी जो कॉलोनियाँ शहरकोट से बाहर विकसित हुईं, जैसे भूपालपुरा, अशोक नगर, सरदार पुरा, पंचवटी, आदि, तो इनमें भी एक दो मंज़िला भवन ही थे। नब्बे के दशक में पाँच छः मंज़िला कॉम्प्लेक्स बनने लगे और दो हज़ार दस के बाद आठ दस मंजिलें हुई व 2020 आते आते पंद्रह सोलह मंज़िला कॉम्प्लेक्स बनने लगे।
सेवानिवृत्त अधीक्षक अभियंता जी पी सोनी का फतहसागर की पाल से लिया गया यह फ़ोटो बताता है कि अब सूर्योदय पहाड़ों के बीच से न हो कर भवनों के बीच से होने लगा है, यानि कि प्राकृतिक छटाओं की संख्या अब घटती जा रही है।
वह बताते है कि बहुमंज़िला भवन या कॉम्प्लेक्स बनाने की प्रथा बढ़ने का कारण ज़मीन की बढ़ती कीमतें हैं और क़ीमतें बढ़ने का कारण उदयपुर के मूल निवासी तो कम , बाहर से आ कर बसने वाले ज़्यादा हैं। कोई भी व्यक्ति जो बाहर से आ कर यहाँ बसने का मन बनाता है उसका मुख्य आधार यहाँ की प्राकृतिक छटा, समसीतोष्ण मौसम, कम दूरियाँ और हरियाली है।
अब विडंबना यह है कि उदयपुर के। जो मुख्य आकर्षण है, वही इन विशाल बहुमंज़िला कॉम्प्लेक्सों के कारण बर्बाद हो रहे हैं। इस परिपाटी से आशंका यह है कि कुछ ही सालों में उदयपुर के ये आकर्षण ही समाप्त हो जाएँगे और उदयपुर भी मिनी गुड़गाँव बन जाएगा ।
क्या सजग नागरिकों व यहाँ के नीति निर्धारकों को मिलजुल कर अभी से इस बारे में विचार कर उदयपुर को अति आधुनिक उदयपुर न बनने देने के लिये सुनियोजित नीति का निर्धारण नहीं करना चाहिए ?
उदयपुर में भवनों की बढ़ती ऊँचाई पर चिंतन की आवश्यकता
