औद्योगिक क्षेत्रों में जल प्रबंधन में वर्तमान प्रवृत्ति और चुनौतियॉ
विषय पर तीन दिवसीय अन्तरराष्ट्रीय सेमीनार का हुआ समापन
सतत् विकास के साथ पर्यावरण संरक्षण जरूरी – सुशील कुमार
उदयपुर 27 जून / जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ विवि के संघटक विधि विभाग की ओर से प्रतापनगर स्थित आईटी सभागार में ‘‘ औद्योगिक क्षेत्रों में जल प्रबंधन में वर्तमान प्रवृत्ति और चुनौतियॉ विषय पर आयोजित तीन दिवसीय अन्तरराष्ट्रीय सेमीनार का समापन गुरूवार को हुआ।
मुख्य वक्ता सुप्रीम कोर्ट नई दिल्ली के वरिष्ठ अधिवक्ता सुशील गुप्ता ने कहा कि एक ओर हमें विकास की जरूरत है तो दूसरी तरफ प्राकृतिक संसाधनों का संवर्धन भी जरूरी है दोनों का संतुलन बनाये रखना जरूरी है जिससे हम आने वाली पीढ़ी के लिए भी वे प्राकृतिक संसाधन बचा सकें जो हमें मिले हैं। हर व्यक्ति पानी पर अपना अधिकार मानता है, जिसकी जमीन उसका पानी, हर व्यक्ति अपने घरों में बोरिंग कराता जा रहा है और धीरे-धीरे पानी के ग्राउंड लेवल भी कम होते जा रहे हैं। इसके रिचार्ज के बारे में कोई नहीं सोच रहा है। आवश्यकता, है इसे हमें हमारी आने वाली भावी पीढ़ी के लिए भी कुछ बचाना है, इसके लिए हर व्यक्ति को जागरूक होना होगा। इसके लिए सभी को वाटर हार्वेस्टिंग की ओर बढ़ना होगा और अपनी दैनिक दिनचर्या में सुधार लाना होगां
अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने कहा कि हम इस दुनिया में किरायेदार बन कर आये और मालिक बन बैठे। जल प्रकृति द्वारा दिया गया अमूल्य उपहार है इसके महत्व को हम नहीं समझ सके और विकास के नाम पर प्रकृति का निरंतर दोहन करते रहे। वन्य जीव शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। हमने हमारे निहित स्वार्थो के कारण प्राचीन कुंओं, बावड़ियों को बंद कर दिया है। हमें पुनः हमारी प्राचीन संस्कृति एवं सभ्यता को पुनर्स्थापित करने की जरूरत है। हमारा जीवन ग्लेशियर पर निर्भर है, धीरे धीरे यह पिघलने लगा है और इसका कारण ग्लोबल वॉर्मिंग है।
मुख्य अतिथि सुप्रीम कोर्ट नई दिल्ली के वरिष्ठ अधिवक्ता सुशील कुमार सतरावाला ने कहा कि आज आवश्यकता है जल, जंगल, जमीन की रक्षा करने की। सतत् विकास के साथ पर्यावरण संरक्षण भी जरूरी है। हमारी प्राचीन सभ्यता नदियों के किनारे पर बसा करती थी जिसने तालाब का रूप ले लिया उसके बाद कुंओं ने। वर्तमान में पानी नलों के द्वारा घरों तक पहुंच रहा है।
पानी की अधिकता के कारण हम इसके महत्व को नहीं समझ सके और आज स्थिति भयावह होती जा रही है। अगर समय रहते अभी नहीं संभले तो स्थिति गंभीर होने वाली है। पानी उपयोगिता अधिक एवं सप्लाई कम होेने से पानी धीर-धीरे बोतलों में आना शुरू हो गया है। उन्होंने कहा कि 1877 में पानी पर अधिकार अंग्रेजों का था। आजादी के बाद राज्य सरकारों का हो गया है।
विशिष्ठ अतिथि कुल प्रमुख भंवर लाल गुर्जर ने कहा कि भारतीय आस्थाओं तथा ज्ञान परम्पराओं और जीवन पद्धतियों की ही महानता है कि प्रकृति का संरक्षण और संवर्धन इसमें रचा बसा है, लेकिन आधुनिकता और विकास की हवा ने परम्परागत ज्ञान और विद्या के साथ हमारी पवित्र नदियों और सरोवरों ने अपना स्वरूप ही खो दिया है।
प्रारंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए प्राचार्य डॉ. कला मुणेत ने बताया कि तीन दिवसीय सेमीनार में देश-विदेश के 250 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया। मुणेत ने बताया कि सेमीनार के दौरान पर्यावरण को लेकर प्रतिभागियों से आये सुझावों को केन्द्र एवं राज्य सरकारों को भिजवाये जायेंगे। इस अवसर पर तीन दिवसीय सेमीनार की स्मारिका का अतिथियों द्वारा विमोचन किया गया। प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया गया।
संचालन ऋत्वि धाकड़, डॉ. केके त्रिवेदी ने किया जबकि आभार डॉ. मीता चौधरी ने जताया।
डॉ. प्रतीक जांगीण ने बताया कि सेमीनार में अतिथियों द्वारा औद्योगिक क्षेत्रों में जल प्रबंधन में वर्तमान प्रवृत्ति और चुनौतियॉ विषय पर आयोजित तीन दिवसीय अन्तरराष्ट्रीय सेमीनार पर प्रकाशित स्मारिका का विमोचन किया।
इस अवसर पर रमन सुद, डॉ. मीता चौधरी, डॉ. सुरेन्द्र सिंह चुण्डावत, अंजु कावड़िया, डॉ. प्रतीक जांगिड, डॉ. के.के. त्रिवेदी, भानु कुंवर सिंह, छत्रपाल सिंह, डॉ. ज्ञानेश्वरी सिंह राठौड़, डॉ. विनिता व्यास, डॉ. रित्वी धाकड, निरव पाण्डे्य, भानू कुंवर राठौड़, चिराग दवे सहित अकादमिक सदस्य एवं बड़ी संख्यॉ में शहर के पर्यावरण प्रेमी उपस्थित थे।