उदयपुर। सूरजपोल स्थित दादाबाड़ी में साध्वी विरल प्रभा श्रीजी ने कहा कि पांच इंद्रियों और 4 कषायों का मुंडन करना चाहिए। सिर का मुंडन तो करते ही हैं लेकिन ये 9 मुंडन जरूरी है। सिर का मंडन तो आसान है लेकिन इन 5 इंद्रियों और 4 कषायों का मुंडन मुश्किल है। मनुष्य जीवन मिल गया है। सम्यकत्व प्राप्ति करके ही जाना है। खाली हाथ आये और खाली हाथ चले गए तो वापस वहीं पुरानी यात्रा करनी पड़ेगी। आंखों को कैसे कंट्रोल करें। देखो मगर प्यार से, लज्जापूर्वक। जिनके पास आंखें नाही हैं, उन्हें पूछो कि दुनिया कैसी है। जिन्होंने पूर्व जन्मों में बहुत बुरा किया इसीलिए इस जन्म में उन्हें आंखें नही मिली।
उन्होंने कहा कि धृतराष्ट्र इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। उन्होंने पूर्व जन्म में मक्खियों के बाड़े में आग लगाई थी। आंखों में शर्म होती है तो जीवन शर्मपूर्ण हो जाएगा। पूर्व के समय में टीवी, फिल्मों में कुछ गंदा दृश्य आया तो बड़े इधर उधर हो जाते थे और आज, सब वहीं के वहीं बैठे रहते हैं। लज्जा खत्म हो गई है। विकास और मानसिकता का नाम देकर न जाने क्या क्या परोस रहे हैं। आंखों से कितना पाप कर रहे हैं।
साध्वी श्रीजी ने कहा कि किसी दूसरे की नजर आप पर पड़ गई तो उसका खमियाजा तो उसने भुगतान है लेकिन उस पाप का भागी आप भी बनोगे। जिसकी आंखों में लज्जा नाही, वो बेशर्म है। व्यवस्थित कपड़े पहनकर बाजार जाओ। शार्ट कपड़े पहनकर लड़कियां स्कूटी पर बाजार जाती है। गाड़ी बंद हो गई तो वहां किक लगते समय उसका क्या हाल होगा, सोच सकते हो।
स्वामी विवेकानंद ने स्त्री कप देख लिया और दो-तीन बार नजर पड़ गई। उन्होंने अपनी आंखों की गलती मानते हुए उसमें मिर्ची डाल दी कि अपराध आंखें कर रही हैं। लज्जा का एड्रेस आंखें हैं। लज्जा आती है तो काम भाग जाता है। काम आता है तो लज्जा भाग जाती है।
पांच इंद्रियों और 4 कषायों का मुंडन करेंःविरलप्रभाश्री
