उदयपुर। समता मूर्ति जयप्रभाश्री म.सा. की सुशिष्या साध्वी डॉ. संयम ज्योति ने कहा कि भावों का खेल जबरदस्त है जिसके प्रति व्यक्ति को रुचि है उसके प्रति अरुचि हो जाती है और जिसके प्रति अरुचि है उसके प्रति रुचि हो जाती है।
साध्वी ने कहा कि विडम्बना है जिसके प्रति रुचि होनी चाहिये उसके प्रति रुचि नहीं होती है और जिसके प्रति अरुचि होनी चाहिए उसके प्रति अरुचि नही होती है। उन्होंने कहा कि प्रीति अप्रीति, पसंद-नापसंद और रूचि अरुचि वस्तु का गुण धर्म नहीं है ये मन की उपज है।
साध्वी ने कहा कि व्यक्ति को अनुकूल विषयों के प्रति रुचि होती है परंतु उन्हीं विषयों का लगातार उपयोग करने पर व्यक्ति को विषय, वस्तुएं नीरस लगती है। मन ही व्यक्ति के मोक्ष और बंधन का कारण है। भावना ही भव नाशिनी और भावना ही भववाहिनी होती है। व्यक्ति की सोच है जिन्दगी का भरोसा नहीं है इसलिये इंश्योरेंस करा लूं ताकि परिवार दुःखी नहीं हो परंतु स्वयं की चिन्ता नहीं है कि जिन्दगी का भरोसा नहीं है इसलिये आत्मा के लिए इंश्योरेंस करा लूं ताकि आत्मा की सेफ्टी हो जाये आत्मा दुर्गति में नहीं जाये। अध्यात्म के क्षेत्र में व्यक्ति की सोच अभी धर्म करने की उम्र नहीं है बुढ़ापे में गोविन्द गुण गायेंगे।
मन ही व्यक्ति के मोक्ष और बंधन का कारणःसंयमज्योति
