– सैकड़ों श्रावक-श्राविकाओं के जयकारों से गूंज उठा आयड़ तीर्थ
– आयड़ तीर्थ में नवपद सिद्धचक्रजी की आराधना आज से
उदयपुर 19 अक्टूबर। श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्वावधान में तपागच्छ की उद्गम स्थली आयड़ तीर्थ पर बरखेड़ा तीर्थ द्वारिका शासन दीपिका महत्ता गुरू माता सुमंगलाश्री की शिष्या साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री एवं वैराग्यपूर्णाश्री आदि साध्वियों के सानिध्य में गुरुवार को विशेष पूजा-अर्चना के साथ हवन आहुति दी गई। महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में सुबह 7 बजे दोनों साध्वियों के सानिध्य में ज्ञान भक्ति एवं ज्ञान पूजा, अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की गई। उसके बाद श्रावक-श्राविकाओं द्वारा हवन कुण्ड में आहुतियां देते हुए विश्व शांति की मंगलकामना की। जैन श्वेताम्बर महासभा के अध्यक्ष तेजसिंह बोल्या ने बताया कि शांता देवी, लीला देवी, ललित कुमार -रेखा, कुलदीप नाहर, मीनू, पलक, रक्षित नाहर ने माणिभद्र देव का पूजन हवन अनुष्ठान में आहुतियां दी।
चातुर्मास संयोजक अशोक जैन ने बताया कि इस अवसर पर साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री व वैराग्यपूर्णा ने कहंा कि माणिभद्रजी पूर्व जन्म में सेठ माणक शाह के नाम से जाने गये, जो जैन धर्म और इसके संदेशों के प्रति पूर्णतया समर्पित थे। इनके पास अपार संपत्ति थी और इन्हें छत्तीस तरह के वाद्य यंत्रों का शौक था। वे एक निष्ठावान श्रावक थे। इनकी असीम निष्ठा भक्ति से इन्हें क्षेत्रपाल घोषित कर दिया गया था। माणिभद् वीट देव कर वाहन ऐरावत है, सफेद हाथी जिसकी एक से अधिक सूँड है। माणिभद वीर देव का जाप करने से सब कार्य सफल होते है। सुखडी और श्रीफल उनका पसंदीदा भोजन है और प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है। महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि शुक्रवार से नवपद सिद्धचक्रजी की आराधना प्रारंभ होगी। प्रतिदिन सुबह 9.15 बजे से चातुर्मासिक प्रवचनों की श्रृंखला में धर्म ज्ञान गंगा अनवरत बह रही है।
आयड़ तीर्थ में माणिभद्र देव वीर का हुआ पूजा-हवन अनुष्ठान
