संगत द्वारा ही सत्संग तक पहुंचा जा सकता है : जिनेन्द्र मुनि
उदयपुर, 15 जुलाई। श्री वर्धमान गुरू पुष्कर ध्यान केन्द्र के तत्वावधान में दूधिया गणेश जी स्थित स्थानक में चातुर्मास कर रहे महाश्रमण काव्यतीर्थ श्री जिनेन्द्र मुनि जी म.सा. ने मंगलवार को सम्बोधित करते हुए कहा कि महावीर स्वामी के 10 अनमोल श्रावक रत्न माने जाते हैं और गौतम स्वामी कुल 50 हजार साधु-साध्वी जी का नेतृत्व जिसमें 36 हजार साध्वीजी एवं 14 हजार संत का नेतृत्व बहुत ही अच्छे तरीके से करते थे। वह ज्ञानी विनम्र एवं घोर तपस्या के कारण आपको लब्धियां, रिद्धियां, सिद्धियां प्राप्त हो गई थी फिर भी अपने आप में बहुत संयमित थे। पूज्य गुरुदेव श्री प्रवीण मुनि जी ने अपने चिंतन व्यक्त किये। उन्होंने फरमाया कि संग का हमारे जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ता है। हम जिसकी संगत में रहता है उसका असर हम पर दिखाई देने लग जाता है। सदैव अच्छे व्यक्तियों की संगत करो। अच्छी संगत होगी तो नाम, यश, कीर्ति सब कुछ प्राप्त होगा। संगत द्वारा ही सत्संग तक पहुंचा जा सकता है। अध्यक्ष निर्मल पोखरना ने बताया कि धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए मेवाड़ गौरव रविंद्र मुनि ने जब भी कठिनाइयां आती है नवकार महामंत्र का जाप एवं गुरु चरणों में समर्पित होने से सारा संकट टल जाता है। मीडिया प्रभारी संदीप बोलिया ने बताया कि श्रीमती सुशीला जी तलेसरा ने 7 के पच्चक्खाण लिए एवं अन्य तपस्वियों का बहुमान गरिमा मेहता ने किया। मंच का संचालन प्रवीण पोरवाल ने किया। बाहर से पधारे हुए अतिथियों का स्वागत संरक्षक प्रकाश लोढा ने किया।
जिनवाणी पर श्रद्धा रखें : महासती विजयलक्ष्मी

उदयपुर, 15 जुलाई। श्री हुक्मगच्छीय साधुमार्गी स्थानकवासी जैन श्रावक संस्थान के तत्वावधान में केशवनगर स्थित नवकार भवन में चातुर्मास कर रही महासती विजयलक्ष्मी जी म.सा. ने मंगलवार को धर्मसभा में कहा कि 32 आगमों में से एक भगवती सूत्र में प्रभु ने कहा ‘चलमाणे चलिए’ अर्थात् चले को चला माना जाता है। कोई भी कार्य प्रारंभ कर दिया जाए तो उसे चलमाणे चलिए कहा जाता है। प्रभु महावीर के दामाद अणगार जमाली महावीर की वाणी पर शंका कर दर्शन विराधक बन गये। जमाली मुनि आस्तिक से नास्तिक बन गए जबकि राजा परदेसी एवं गौतम स्वामी नास्तिक से आस्तिक बन गए। साधु-साध्वी की दिनचर्या आगम के सूत्र कालोकालं समायरे के अनुसार होती है। हम जिनवाणी पर पूर्ण श्रद्धा रखें। महासती सिद्धिश्री जी म.सा. ने फरमाया कि जीव पुण्य व पाप करने के पहले स्वतन्त्र है, किन्तु कर्म बन्धन के पश्चात् जीव परतन्त्र हो जाता है. हम कर्म करने से पहले सावचेत रहें। श्रीसंघ अध्यक्ष इंदर सिंह मेहता ने बताया कि चातुर्मास के प्रथम दिन से ही महासती जी म.सा. की निश्रा में नवकार भवन में अखंड नवकार महामंत्र का जाप प्रारम्भ हो गया है, जिसमें श्रावक-श्राविकाएं उत्साह से भाग ले रहे हैं। वहीं प्रश्नोत्तर प्रतियोगिता में भी श्रोता उत्साहित हो भाग ले रहे हैं. आयम्बिल, एकासन, उपवास एवं तेले की लड़ी के साथ सभी तप – जप व धर्म-ध्यान कर रहे हैं।